हरियाणा के झज्जर जिले के छारा गांव में एक दूध बेचने वाले परिवार में पैदा हुए दीपक पूनिया ने बर्मिंघम में कुश्ती में देश के लिए गोल्ड मेडल जीत लिया। 86 किलो वेट के फ्री स्टाइल में उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के मोहम्मद इनाम को हराया।
दीपक के पिता सुभाष, 2015 से 2021 तक रोजाना घर से रेल से पांच घंटे का सफर तय करके 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में दीपक के लिए दूध और फल खुद पहुंचाते थे। उनके परिवार वाले यही चाहते थे कि दीपक की डाइट बेहतर रहे।
गांव में ही सीखे शुरुआती दांव पेंच
सुभाष पूनिया ने बताया कि दीपक ने शुरुआती दांव-पेंच गांव के कुश्ती अखाड़े में ही कोच वीरेंद्र कुमार से सीखे। उन्होंने पांच साल की उम्र में ही अखाड़ा जाना शुरू कर दिया था। जब वे स्टेट और नेशनल में मेडल जीतने लगे तो अंतरराष्ट्रीय पहलवान और ओलिंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार उन्हें छत्रसाल स्टेडियम में ले गए। वहां पर सुशील और महाबली सतपाल ने उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने ही दीपक के रहने की व्यवस्था स्टेडियम में की।
पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बने चैंपियन
दीपक अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में ही चैंपियन बने। 2016 में कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने इस चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। वो महज 17 साल की उम्र में ही विश्व चैंपियन बने। 2019 में पहली सीनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में 86 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल जीता। यहां से ही उन्हें ओलिंपिक कुश्ती टीम का टिकट मिला।
नौकरी करना चाहते थे दीपक
दीपक पूनिया को कुश्ती की शुरुआत के साथ ही एक नौकरी की तलाश थी। वह अपने घर का खर्च उठाने के लिए कुछ पैसे कमाना चाहते थे, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और एक-एक करके वो कैडेट (2016) और जूनियर कैटेगरी (2019) में वर्ल्ड चैंपियन बन गए। टोक्यो ओलिंपिक में भी देश का प्रतिनिधित्व किया।
2018 से सेना में सूबेदार
दीपक पूनिया 2018 से सेना में सूबेदार हैं। पिता सुभाष ने भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि बेटे की नौकरी लग जाने के बाद घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। दीपक के कहने पर उन्होंने डेयरी का काम बंद कर दिया। दीपक तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। इनसे बड़ी दो बहनें हैं और दोनों की शादी हो चुकी है। दीपक की मां का निधन पिछले साल हो गया था।
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