मध्यप्रदेश के लड़कों ने रणजी ट्रॉफी में इतिहास रच दिया। उनकी टीम 88 साल के टूर्नामेंट इतिहास में पहली बार चैंपियन बनी है। मध्यप्रदेश को यह ऐतिहासिक जीत एक दिन में नहीं मिली है।
इसकी इबारत तीन साल पहले लिखनी शुरू हो गई थी। बीच में कई विवाद और कई अड़चने आईं। लेकिन, एमपीसीए के कुछ किरदार परदे के पीछे से अपने प्रयास करते रहे। चाहे वह बात कोच चंद्रकांत पंडित की नियुक्ति मामले की हो या फिर सिलेक्शन विवाद की। सभी ने अपना-अपना योगदान दिया। वैसे तो इस जीत को कलेक्टिव अफर्ट कहेंगे।
हम आपको मिलाने जा रहे हैं उन 5 किरदारों से जिन्होंने इस जीत की पठकथा लिखी...
खांडेकर-राव पंडित को लेकर आए
2019 में मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन (MPCA) की नई कमेटी का गठन हुआ। उसके बाद ही MP में रणजी ट्रॉफी जीतने के गंभीर प्रयास शुरू हुए। तब अभिलाष खांडेकर संगठन के अध्यक्ष बने। जबकि संजीव राव को सचिव बनाया गया।
इन दोनों ने CEO रोहित पंडित के साथ मिलकर कोच चंद्रकांत पंडित के सामने MP को कोचिंग देने का प्रस्ताव रखा। दोनों पक्षों में डेढ करोड़ की सालाना सैलरी पर सहमति बनी। लेकिन, MPCA के कुछ मेंबर्स पंडित की नियुक्ति का विरोध करने लगा कि पंडित में ऐसा क्या है कि उन्हें एक करोड़ की सैलरी दी जा रही है। ऐसे में अध्यक्ष और सचिव अपने फैसले पर अड़े रहे।
सिलेक्शन विवाद पर साथ खड़े रहे
पिछले साल रणजी टीम के सिलेक्शन पर विवाद खड़ा हुआ। तब सिलेक्शन कमेटी के चेयरमैन अमिताभ विजयवर्गीय का कहना था कि कोच हमारी नहीं सुनते हैं अपनी मनमानी करते हैं। जबकि कोच चंद्रकांत पंडित का कहना था कि जो परफॉर्म करेगा वहीं टीम में रहेगा। चाहे वह सीनियर हो या फिर जूनियर। ऐसे में खांडेकर-राव ने पंडित का सपोर्ट किया।
जगदाले का टैलेंट सर्च काम आया
करीब डेढ साल पहले MPCA ने संजय जगदाले की पहल पर एक टैलेंट सर्च प्रोग्राम शुरू किया था। जिसके तहत प्रदेश के बड़े शहरों से बच्चों को चुना गया गया। इस टैलेंट सर्च से चुने गए बच्चों को निखारने का जिम्मा अमय खुराशिया को दिया था।
हालांकि कुछ साल के बाद यह प्रोग्राम ठंडे बस्ते में चला गया। लेकिन, उस टैलेंट सर्च से चुनी गई पौध आज रिजल्ट दे रही है। आवेश खान, रजत पाटीदार जैसे खिलाड़ी उसी की देन हैं।
कोच पंडित और कप्तान श्रीवास्तव ने नैया पार लगाई
आखिर में कोच चंद्रकांत पंडित ने कप्तान आदित्य श्रीवास्तव के साथ मिलकर जीत की इबारत लिख दी। हालांकि इसमें पूरी टीम का योगदान रहा। लेकिन, कोच ने टीम को चैंपियन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पंडित ने वो कर दिखाया जो वे 23 साल पहले करने से चूक गए थे।
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