सतीश कुमार देश के पहले बॉक्सर हैं, जिसने सुपर हैवीवेट में ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई किया है। 2016 के रियो गेम्स में तो वे ऐसा करने से चूक गए थे। लेकिन, इस साल मार्च में उन्होंने 91 किलोग्राम से ज्यादा भारवर्ग में टोक्यो का टिकट कटा लिया।
ये अलग बात है कि कोरोना की वजह से टोक्यो ओलिंपिक एक साल के लिए टल गए। हालांकि, सतीश मायूस होने की बजाए इसे भी एक मौके की तरह ले रहे हैं। उनका कहना है कि ओलिंपिक टलने की वजह से उन्हें अपनी स्ट्रेंथ पर काम करने का और मौका मिल गया।
वह इस एक साल में अपनी कमियों को दूर करेंगे। पूरे देश में लॉकडाउन के कारण कैंप स्थगित हैं और वह उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर स्थित अपने घर पर ही फिटनेस पर काम कर रहे हैं। करियर और ओलिंपिक तैयारियों को लेकर सतीश ने भास्कर से खास बात की....
सतीश: टोक्यो ओलिंपिक के एक साल टलने से मुझे प्रैक्टिस के लिए काफी समय मिल गया है। मैं इस एक साल में अपनी कमियों को दूर करूंगा। स्ट्रेंथ में मैं कमजोर हूं, इसलिए इस पर काम कर रहा हूं। ताकि 2021 में होने वाले गेम्स में बेहतर चुनौती पेश कर सकूं।
सतीश: स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए वेट ट्रेनिंग कर रहा हूं। इसके लिए घर पर ही इंतजाम किया है। इसमें डंबल, प्लेट्स और रॉड शामिल है। मैं हाथों में मजबूती लाने के लिए ट्रक के टायर पर हथौड़े मारता हूं, ताकि हाथों में मजबूती आए।
'इसके साथ ही वेट भी उठाता हूं। बुलंदशहर में अपने घर के पास ही पेड़ पर रस्सी बांधकर उस पर चढ़ता हूं। वहीं मेंढक जंप का भी अभ्यास करता हूं। स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए कई और एक्सरसाइज भी करता हूं। जो कोच ने बताई है।'
सतीश: ओलिंपिक में मेरा मुख्य मुकाबला तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बॉक्सरों से हैं। इन दोनों देशों के मुक्केबाज मुझसे स्ट्रेंथ और तकनीक में ज्यादा मजबूत हैं। उनकी तुलना में मेरी स्पीड ज्यादा है। इसलिए मैं स्ट्रेंथ पर काम कर रहा हूं।
सतीश: किसी भी खिलाड़ी का लक्ष्य ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करना होता है। इसे सोचकर ही खिलाड़ी अभ्यास करता है। हां, जिनकी उम्र ज्यादा हो गई है, उन मुक्केबाजों पर थोड़ा फर्क पड़ेगा। उन्हें फिटनेस पर ज्यादा काम करना होगा।
सतीश: अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक संघ (आईओए), जापान सरकार और अलग-अलग देशों के संघ खिलाड़ियों के स्वास्थ्य को जोखिम में नहीं डाल सकते। इसलिए जापान सरकार और आईओए सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेंगे। 2021 में भी अगर गेम्स नहीं होते हैं तो 2024 ओलिंपिक की तैयारी के लिए जुटना होगा। तब तक कई युवा खिलाड़ी सामने आ जाएंगे। तब ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी।
सतीश: लॉकडाउन के कारण मैं बुलंदशहर में ही हूं। बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से कोच ऑनलाइन प्लान भेजते हैं। उसी पर काम करता हूं। अभी केवल फिटनेस को लेकर प्लान आ रहा है। मैं उसी पर वर्क कर रहा हूं। इन दिनों जिम भी बंद है, ऐसे में कुछ इक्विपेंट का इंतजाम कर घर पर ही फिटनेस ट्रेनिंग कर रहा हूं।
तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बॉक्सरों के मैच के वीडियो देख रहा हूं। अपने पुराने मैच के भी वीडियो देखकर खेल का एनालिसिस कर रहा हूं।
सतीश: जी, इन दिनों गेहूं की कटाई का समय है। मैं कटाई करने तो नहीं गया। लेकिन, कटाई के बाद जब गेहूं और भूसे को अलग किया जाता है, तो उसमें जरूर परिवार की मदद की।
सतीश: हम चार भाई हैं। मैं दूसरे नंबर का हूं। बड़े भाई सेना में हैं। उनकी वजह से ही सेना में आया। आर्मी में आने से पहले तक बॉक्सिंग के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। जब मैं आर्मी में भर्ती हुआ तो, मुझे इसके बारे में पता चला। मैं रानीखेत में ट्रेनिंग कर रहा था। बैरक के पास ही बॉक्सिंग सेंटर था।
'आर्मी के बॉक्सिंग कोच ने मेरी हाईट (1.88 मीटर) और फिटनेस देखकर मुझे बॉक्सिंग खेलने का सुझाव दिया। इसके बाद मैं खेल से जुड़ गया। धीरे-धीरे सेना के अंदर होने वाले टूर्नामेंट जीते और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर भारतीय टीम में पहुंचा। इसकी मेहनत का नतीजा है कि मैं 2014 एशियन गेम्स में 91 किलो से ऊपर की वेट कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता।'
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