मैं वासु सोजित्रा। क्लाइंबर, स्कीयर, स्केटबोर्डर और पेशेवर फुटबॉलर भी। लेकिन सामान्य कैटेगरी में नहीं, बल्कि दिव्यांग कैटेगरी में। मेरा दायां पैर 9 महीने की उम्र में सेप्टीसीमिया (खून से जुड़ी बीमारी) के कारण काटना पड़ा। जब समझ आई, तो कई प्रॉस्थेटिक पैर आजमाए, लेकिन किसी से खास मदद नहीं मिली। ऐसा लगता था कि वह मुझे बांध रहा हो और आगे बढ़ने से रोक रहा हो। स्वतंत्र महसूस नहीं करता था। इसके बाद फोरआर्म प्रॉस्थेटिक क्रजेस (बैसाखी) का प्रयोग शुरू किया। इन्हें मैं ‘निंजा-स्टिक’ कहता। बहुत से लोग अक्षमता को भयानक घटना के रूप में देखते हैं। वे मेरे पास आकर दया की भावना दिखाते। लेकिन मेरे हिसाब से दिव्यांगता और अक्षमता कमजोरी की निशानी नहीं हैं। समस्याएं वे हैं, जो जिंदगी में बाधा डालती हैं।
मैं स्कीइंग, क्लाइंबिंग कर ऐसी बाधाओं और धारणाओं को तोड़ता हूं। मेरा मानना है कि हम इंसान हैं और हम लोगों में अक्षमता हमेशा रहेगी। बहरहाल, मैंने 11 साल की उम्र में सबसे पहले स्कीइंग की थी। मैं भाई के साथ कनेक्टिकट की स्थानीय पहाड़ी पर स्कीइंग करने गया था। वहां के अन्य स्कीयर ने मुझसे सिर्फ इतना कहा- गुड जॉब, ऐसे ही करते रहो। इससे मुझे काफी प्रेरणा मिली। मैं शुरुआत में भारत में पला-बढ़ा, जहां काफी गरीबी देखी थी। वहां के अनुभवों ने मुझे न केवल दिव्यांग समुदाय बल्कि हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। मैं और मेरे दोस्त पीट मैकेफी नॉर्थ अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी डेनाली फतह करने वाले पहले दिव्यांग एथलीट बने थे। मैं अमेरिका की दिव्यांग फुटबॉल टीम में एक पेशेवर खिलाड़ी भी हूं।
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