मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक में भारत को पहला मेडल दिला दिया है। उन्होंने 49 किलोग्राम वेट कैटेगरी में टोटल 202 किलो वजन उठाकर सिल्वर जीता। इस तरह देश को वेटलिफ्टिंग में 21 साल बाद ओलिंपिक मेडल मिला है। इससे पहले 2000 सिडनी ओलिंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज जीता था। मीराबाई की सफलता इस मायने में खास हो जाती है कि वे 2016 रियो ओलिंपिक में अपने एक भी प्रयास में सही तरीके से वेट नहीं उठा पाई थीं। उनकी हर कोशिश को डिस-क्वालिफाई कर दिया गया था।
मीराबाई ने ओलिंपिक में जाने से पहले भास्कर से कहा था, "मैं टोक्यो ओलिंपिक में जरूर मेडल जीतूंगी। मेरे पास ओलिंपिक खेलने का अनुभव है। मैं अपने पहले ओलिंपिक में मेडल जीतने से चूक गई थी। तब अनुभव की कमी के कारण मैं मेडल जीतने में सफल नहीं हो सकी थी।"
मीरा के 'डिड नॉट फिनिश' से चैंपियन बनने की कहानी
2016 रियो ओलिंपिक से ओलिंपिक चैंपियन बनने तक की उनकी कहानी जबरदस्त रही है। 2016 में जब वह भार नहीं उठा पाई थीं, तब उनके नाम के आगे - 'डिड नॉट फिनिश' लिखा गया था। किसी प्लेयर का मेडल की रेस में पिछड़ जाना अलग बात है और क्वालिफाई ही नहीं कर पाना दूसरी। डिड नॉट फिनिश के टैग ने मीरा का मनोबल तोड़ दिया था।
2016 ओलिंपिक में उनके इवेंट के वक्त भारत में रात थी। बहुत कम ही लोगों ने वह नजारा देखा होगा, जब वेट उठाते वक्त उनके हाथ अचानक से रुक गए। यही वेट इससे पहले उन्होंने कई बार आसानी से उठाया था। रातों-रात मीराबाई मेडल नहीं जीतने पर बस एक आम एथलीट रह गईं। इस हार से वे डिप्रैशन में गईं और उन्हें साइकेट्रिस्ट का सहारा लेना पड़ा।
इस हार ने उन्हें झकझोर कर रख दिया गया था। एक वक्त तो उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अलविदा कहने का मन बना लिया था। हालांकि, खुद को प्रूव करने के लिए मीरा ने ऐसा नहीं किया। यही लगन उन्हें सफलता तक ले आई। 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने गोल्ड और अब ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीता है।
2017 में वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता
इसके बाद 2017 में मीरा ने 194 किलोग्राम वजन उठाकर वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था। 22 साल में ऐसा करने वाली मीरा पहली भारतीय एथलीट बन गईं। इस इवेंट के लिए मीरा ने खाना तक नहीं खाया। तैयारी के लिए उन्होंने अपनी सगी बहन की शादी भी मिस की। इस मेडल को जीतने के बाद उनकी आखों में आंसू थे। 2016 की हार अब भी उनके जहन में थी।
वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय
मीराबाई वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर हैं। यह उपलब्धि उन्होंने 2017 में (49 किलो वेट कैटेगरी) हासिल की। उन्होंने 2014 के ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में 49 किलो वेट कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता था। मीराबाई ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता।
चोट के बाद 2019 में की शानदार वापसी
मीराबाई को 2018 में पीठ दर्द से जूझना पड़ा था। हालांकि उसके बाद उन्होंने 2019 के थाईलैंड वर्ल्ड चैंपियनशिप से वापसी की और चौथे नंबर पर रहीं। तब उन्होंने पहली बार 200 किग्रा से ज्यादा का वजन उठाया था। चानू बताती हैं, "उस समय भारत सरकार का पूरा सपोर्ट मिला। इलाज के लिए मुझे अमेरिका भेजा गया। इसके बाद मैंने न केवल फिर से वापसी की, बल्कि अपने करियर का सबसे ज्यादा वजन उठाने में भी सफल हुई।"
मीराबाई ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया
इस साल (2021) अप्रैल में हुए ताशकंद एशियन वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में मीराबाई चानू ने स्नैच में 86 किग्रा का भार उठाने के बाद क्लीन एंड जर्क में वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम करते हुए 119 किलोग्राम का भार उठाया था। वह कुल 205 किग्रा के साथ तीसरे स्थान पर रही थीं।
इससे पहले क्लीन एंड जर्क में वर्ल्ड रिकॉर्ड 118 किग्रा का था। चानू का 49 किग्रा में इंडिविजुअल बेस्ट परफॉर्मेंस कुल 203 किग्रा (88 किग्रा और 115 किग्रा) का है, जो उन्होंने पिछले साल फरवरी में नेशनल चैंपियनशिप में बनाया था।
11 साल की उम्र में वेटलिफ्टिंग में जीता था पहला मेडल
मीराबाई मणिपुर की इंफाल की रहने वाली हैं। उन्होंने वेटलिफ्टिंग में पहला गोल्ड 11 साल की उम्र में लोकल वेटलिफ्टिंग टूर्नामेंट में जीता था। उन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर वेटलिफ्टिंग करियर की शुरुआत वर्ल्ड और जूनियर एशियन चैंपियनशिप से की। वे कुंजरानी देवी को अपना आदर्श मानती हैं।
जीत के बाद मीराबाई ने मां को किया याद
जीत के बाद मीराबाई ने कहा कि मेरे लिए यह सपना सच होने जैसा है। मैं यह मेडल अपने देश और यहां के करोड़ों लोगों को डेडिकेट करती हूं। उन्होंने लगातार मेरे लिए प्रार्थना की। मैं अपने परिवार वालों को शुक्रिया अदा करना चाहती हूं। मेरी मां ने मेरे इस सफर में काफी साथ दिया। उन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मेरे लिए कई त्याग किए।
मीरा ने कहा कि सरकार की ओर से भी मुझे काफी मदद मिली। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI), इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन (IOA) और वेटलिफ्टिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने मेरा साथ दिया। मैं अपने कोच विजय शर्मा सर को भी थैंक यू कहना चाहती हूं। उन्होंने मुझसे लगातार मेहनत करवाई। जय हिंद।
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