हर व्यक्ति को अपनी गाड़ी से खास लगाव होता है, कोई भी अपनी गाड़ी पर एक भी स्क्रैच नहीं देखना चाहता। लेकिन कुछ शरारती तत्व जानबूझकर गाड़ी पर अपनी कलाकारी दिखा जाते हैं, कोई चाबी तो कोई नुकीली चीज से स्क्रैच लगा जाता है तो कई बार रश ड्राइविंग करने वाले बाइकर्स गाड़ी में स्क्रैच मार कर निकल जाते हैं। ऐसे में अगर आप अपनी गाड़ी के कलर को चिंतित हैं और सालों साल नए जैसा रखना चाहते हैं ताकि उसके खूबसूरती बरकरार रहे तो उसपर पीपीएफ यानी पेंट प्रोटेक्शन फिल्म लगवा सकते हैं। इसके फायदे और नुकसान जानने के लिए हमने एक्सपर्ट राहुल श्योरान से बात की, जिन्होंने हमारे साथ पीपीएफ कोटिंग के बारे अहम जानकारियां साझा कीं...
क्या होती है PPF, क्यों लगवानी चाहिए?
इसे नई गाड़ी में ही कराए या पुरानी में भी करा सकते हैं?
कैसे लगाई जाती है पीपीएफ, कितना समय लगता है?
पीपीएफ लगवाने में लगभग 2 से 3 दिन का समय लगता है। क्योंकि गाड़ी के डोर-हैंडल्स, साइड मिरर्स, क्लेडिंग, बैज जैसी चीजों को पहले निकाला जाता है। कई गाड़ियों में हेडलाइट-टेललाइट्स पर भी पीपीएफ किया जाता है लेकिन कई गाड़ियों की हेडलाइट्स-टेललाइट्स काफी जिग-जैग होती है, ऐसे में उन पर फिल्म नहीं लग पाती। वैसे डोर हैंडल्स पर कभी भी पीपीएफ नहीं लगाया जाता। कुछ लोग जल्दी के चक्कर में गाड़ी के पार्ट्स खोलने से कतराते हैं, ऐसे में प्रॉपर फिनिशिंग नहीं आ पाती।
यह है पीपीएस की पूरी प्रोसेस...
1. डीप क्लीनिंग (Deep Cleaning)
किसी भी गाड़ी पर पीपीएफ करने से पहले उसे अच्छी तरह से कम से कम एक से दो बार वॉश किया जाता है। सुनिश्चित किया जाता है कि गाड़ी पर किसी भी तरह की गंदगी न हो। खास तौर से कोने पर जहां गंदगी लगने की सबसे ज्यादा संभावना होती है।
2. क्लेइंग (Claying)
वॉश करने के बाद कार क्लेइंग प्रोसेस से गुजरती है। इस प्रक्रिया में खास तरह कि चिकनी मिट्टी को लुब्रिकेंट के जरिए कार की बॉडी पर रगड़ा जाता है, जिससे बारीक से बारीक गंदगी निकल जाए, इससे सरफेस और ज्यादा साफ हो जाता है। इसे क्ले ग्लव्स पहन कर किया जाता है।
3. कम्पाउंडिंग (Compunding)
वॉशिंग और क्लेइंग के बाद सरफेस की कंपाउंडिंग होती है। इसके सरफेस पर पड़े स्वेलमार्क्स और हेयर लाइन स्क्रैच हटाए जाते हैं। स्वेलमार्क खासतौर से गाड़ी को कपड़े से साफ करने के दौरान पड़ते हैं, जो राउंड शेप में होते हैं, ये ज्यादातर ब्लैक और रेड कलर की गाड़ियों में ज्यादा दिखाई देते हैं। इन्हें क्लियर करने के लिए कंपाउंडिंग की जाती है। स्क्रैच के हिसाब से अलग अलग ग्रेड के कंपाउंड यूज किए जाते हैं। कम्पाउंडिंग डुअल एक्शन पॉलिशर से की जाती है, इसकी मोटर 4-वे यानी अप-डाउन और लेफ्ट-राइट तरीके से काम करती है।
4. आईपीए (IPA)
अंत में सरफेस को पूरी तरह से साफ करने के लिए आईपीए किया जाता है। इसके लिए आइसोप्रोपाइल अल्कोहल यूज किया जाता है, जो कम्पाउंडिंग के दौरान सतह पर छूटी पॉलिश को पूरी तरह से साफ करता है, ताकि पीपीएफ अच्छी तरह से सरफेस पर चिपके।
5. पीपीएफ प्रोसेस शुरू
आईपीए के बाद पीपीएफ प्रोसेस शुरू हो जाती है। पीपीएस गाड़ी पर लगने से पहले पूरे पीपीएफ पर एक सोपी (Soapy) सॉल्यूशन का छिड़काव किया जाता है और वहीं सॉल्यूशन गाड़ी की बॉडी पर भी स्प्रे किया जाता है। इसके बाद पीपीएफ को सरफेस पर लगाकर, स्क्वीजी (squeeze) की मदद से पानी बाहर निकाला जाता है। यह पूरी प्रोसेस कांच पर फिल्म चढ़ाने जैसी होती है। यह पूरी प्रक्रिया बंद कमरे में की जाती है, जहां डस्ट लगने की संभावना न के बराबर होती है। जिस जगह पर पीपीएफ नहीं हो पाती, उस जगह ग्राहकों को सिरेमिक कोटिंग करना की सलाह दी जाती है, ताकि प्रोटेक्शन मिल सके। इसे पूरी प्रोसेस में तीन दिन तक का समय लगता है जो गाड़ी के साइज पर निर्भर करता है, क्योंकि पीपीएफ लगने के बाद उसे सूखने के लिए भी पर्याप्त समय देना होता है खासतौर से सर्दियों के मौसम में।
पीपीएफ कराने में कितना खर्च आता है?
नोट- सभी पॉइंट राहुल श्योरान (WRAPAHOLIX, द्वारका, नई दिल्ली) से बातचीत के आधार पर।
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