वीडियो गेमिंग एक लत है। इसलिए द. कोरिया, चीन से लेकर ब्रिटेन तक में गेमिंग एडिक्शन क्लीनिक खुल गए हैं। ब्रिटेन का रिट्जी प्रायोरी क्लीनिक गेमिंग को शॉपिंग व ड्रग्स की लत की श्रेणी रखकर इसका इलाज करता है। डब्ल्यूएचओ ने भी इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा संस्करण में इसे इसे बीमारी यानी गेमिंग डिसऑर्डर के रूप में वर्गीकृत किया है।
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी में मनोवैज्ञानिक रुन नीलसन कहते हैं, जिस तरह कोई व्यक्ति बरसों तक निकोटिन या मॉर्फिन जैसी चीजों का इस्तेमाल करने पर इनका व्यसनी हो जाता है, इसी आधार पर ऑनलाइन गेम्स को भी व्यसन माना गया। आईसीडी की लिस्ट में गैंबलिंग के अलावा सिर्फ गेमिंग को ही लत बताया गया है। अन्य व्यसनों की तरह गेमिंग डिसऑर्डर से ग्रस्त लोग इसी पर दांव लगाते रहते हैं, भले ही उनकी जिंदगी के बाकी पहलू बर्बाद क्यों न हो रहे हों।
2020 में गेमिंग से कमाई 12.65 लाख करोड़, 73% हिस्सा फ्री-टू-प्ले गेम्स से
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पहले वीडियो गेम खरीदना एक बार का लेन-देन होता था। पर अब ज्यादातर गेम्स ‘फ्रीमियम’ बिजनेस मॉडल पर आधारित हैं। ये या तो सस्ते हैं या मुफ्त। कंपनियां एक्स्ट्रा लाइफ, आभासी कपड़ों और चीजों के इन गेम पर्चेसिंग से पैसा बनाती है। रिसर्च फर्म न्यूजू के मुताबिक 2020 में इंडस्ट्री ने 12.65 लाख करोड़ रु. कमाए। इसका 73% हिस्सा फ्री-टू-प्ले गेम्स से मिला। यह सिनेमा व म्यूजिक से बहुत ज्यादा है। अमेरिकी कोर्ट में हाल में पेश किए गए दस्तावेजों से पता चला है कि एपल के एप स्टोर का 70% रेवेन्यू गेमिंग से ही आता है।
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