नई दिल्ली. केंद्र सरकार पिछले चार सालों से शहरों को स्मार्ट बनाने की कवायद में जुटी है। लेकिन देश के ज्यादातर शहर स्मार्ट सिटी के पैमाने पर महज पासिंग मार्क्स ही बटोर पा रहे हैं। किसी भी शहर के पास 60 फीसदी नंबर नहीं हैं। बेंगलुरू स्थित सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड डेमोक्रेसी (जनाग्रह) सालाना इंडियाज सिटी सिस्टम-2018 सर्वे में सामने आया है कि 54 फीसदी शहरी निकाय यानी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन इतनी भी कमाई नहीं कर पाते कि अपने स्टाफ को सैलरी दे सकें। कई शहरों के निकायों में तो 35 फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा शहरों के सुधार और विकास का जिम्मा संभालने वाले अधिकारियों और कमिश्नरों का औसत कार्यकाल भी महज 10 महीने का ही है।
- इस सर्वे में देश के 20 राज्यों के 23 शहर शामिल थे। सर्वे में शहरी प्रशासन से जुड़े नियम, कानून नीतियों और संस्थागत प्रक्रिया ढांचे को आधार बनाते हुए शहरों को रेटिंग दी गई।
- शहरी व्यवस्थाओं के मामले में फिलहाल पुणे टॉप पर है और बेंगलुरू सबसे निचले पायदान पर है।
- 10 के पैमाने पर पुणे ने 5.1 अंक हासिल किए हैं। वहीं बेंगलुरू को केवल तीन अंक मिले हैं। राजधानी दिल्ली इसमें छठे नंबर पर है। इस सर्वे में देश का कोई भी शहर 5 से ज्यादा अंक लाने में नाकाम रहा है।
पांच साल में बदल गए छह कमिश्नर
- रिपोर्ट के मुताबिक बीते पांच साल में पुणे, भुवनेश्वर, सूरत में तीन कमिश्नर बदले गए। तिरुअनंतपुरम में पांच साल में छह बार कमिश्नर बदले गए।
- वहीं, निचले पायदान पर मौजूद शहरों में पटना में पांच सालों में पांच से ज्यादा कमिश्नर रहे, देहरादून में भी पांच साल में छह से ज्यादा कमिशनर बदले गए, वहीं, चेन्नई, बेंगलुरू और चंडीगढ में चार बार कमिशनर बदल गए।
मेयर का कार्यकाल भी सिर्फ 1 साल का
- इसके अलावा नगर निगमों का मेयर का कार्यकाल भी एक बड़ी समस्या है, दिल्ली, बेंगलुरू, चंडीगढ़ जैसे शहरों में मेयर का कार्यकाल महज एक साल का है। यही वजह है कि दिल्ली का विकास सबसे ज्यादा प्रभावित रहता है।
- दिल्ली में तीन निगम है और तीनों नगर निगमों में मेयर हर साल चुने जाते हैं। चुनाव प्रक्रिया में ही दो महीने गुजर जाते हैं। वहीं मेयर को तीन से चार महीने कामकाज समझने में लग जाते हैं। छह महीने में जितनी फाइलें आगे बढ़ती हैं, उनमें से कई नए मेयर के आने के बाद कैंसिल भी हो जाते हैं।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.