यूटिलिटी डेस्क. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कहा है कि जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) करीब 12 साल पहले आवंटित प्लॉट की जगह नया प्लाट देने पर आज की दर से कीमत नहीं ले सकता। दौसा के रहने वाले महेशचंद्र गुप्ता को जयपुर विकास प्राधिकरण की डॉ. आंबेडकर नगर हाउसिंग योजना में एक प्लॉट आवंटित किया गया था। उन्होंने इसकी पूरी कीमत भी जमा करवा दी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें प्लॉट का पजेशन नहीं दिया गया। इस पर उन्हांेने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, जयपुर-IV के समक्ष शिकायत कर मामले का समाधान कराने की मांग की।
जिला फोरम ने 11 मई 2016 को दिए अपने आदेश में जयपुर विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह 60 दिन के भीतर महेशचंद्र गुप्ता को डॉ. अंबेडकर नगर हाउसिंग योजना में आवंटित प्लाट नं. 62 का फिजिकल पजेशन देने के साथ ही उनके पक्ष में लीज डीड भी जारी करे। ऐसा न करने पर उन्हें रोजाना 1000 रुपए की दर से हर्जाना देना होगा। जिला फोरम ने यह भी कहा कि अगर इस प्लॉट का पजेशन देना संभव न हो तो उन्हें किसी और योजना में इतना ही बड़ा और इतनी ही कीमत का प्लॉट का विकल्प दे सकते हैं। जिला फोरम ने इसके अलावा मानसिक कष्ट के लिए एक लाख और कानूनी खर्च के तौर पर पांच हजार रुपए देने को भी कहा।
जेडीए ने इस आदेश को राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग में चुनौती दी। प्राधिकरण ने बताया कि उसने शिकायतकर्ता को दूसरा प्लाट आवंटित कर दिया है, लेकिन पजेशन नहीं दी है। राज्य आयोग ने कहा कि शिकायतकर्ता को प्लाट के आवंटन पर तो कोई विवाद है ही नहीं। मामला तो पजेशन और लीज डीड का है। इस पर राज्य आयोग ने जिला फोरम के आदेश को बरकरार रखा। इस आदेश के खिलाफ जयपुर विकास प्राधिकरण ने राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण आयोग में अपील की। 15 जनवरी 2018 को सुनवाई के दौरान जेडीए के वकील ने कहा कि प्रधिकरण तीन योजनाओं में श्री गुप्ता काे प्लॉट देने को तैयार है, लेकिन इसके लिए उन्हें इस प्लॉट का बाजार दर से भुगतान करना होगा। इसके बाद हुई सुनवाई के दौरान आयोग ने निर्देश दिया कि जो भी नया प्लॉट दिया जाए वह उसी दर के हिसाब से होना चाहिए, जिसके लिए श्री गुप्ता ने 2007 में आवेदन किया था। बाद में इसे संशोधित कर आयोग ने कहा कि इस प्लॉट की अधिकतम दर 2008 के हिसाब से हो सकती है। प्राधिकरण की ओर से इस पर चार हफ्तों में निर्णय की बात कही गई।
2 जनवरी 2019 को जब यह मामला सुनवाई को आया तो जेडीए के वकील ने कहा कि पूर्व में प्राधिकरण की ओर से पेश तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के द्वारा दिए गए बयान उच्च अधिकारियों की ओर से मंजूरी पर आधारित नहीं थे, इसलिए वे इसे मानने को बाध्य नहीं हैं। उन्होंने साथ ही बाकी बयानों को भी नकार दिया।
राष्ट्रीय आयोग के पीठासीन अधिकारी जस्टिस आर.के. अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा कि जेडीए का यह आचरण हमारी नजर में उचित नहीं था। अपने ही अधिकारी के पूर्व के बयानों से मुकरना यह दिखाता था कि प्राधिकरण किस तरह से कानूनी मसलों पर काम करता होगा। इसके बाद जेडीए के वकील ने कोर्ट में मौजूद डिप्टी कमिश्नर की ओर से कहा कि उनके पास अगर श्री गुप्ता को देने के लिए प्लॉट होगा भी तो वह उसे 2008 की दर पर नहीं दे सकते। उन्हें आज की बाजार दर से भुगतान करना होगा।
इस पर आयोग ने कहा कि उनकी राय में प्राधिकरण की ओर से की गई देरी के लिए श्री गुप्ता को दंड नहीं दिया जा सकता। इसके अलावा उन्हें 2019 की दर से भुगतान क्यों करना चाहिए, जबकि वह 2007 में किए गए आवेदन के तहत प्लॉट पाने का हकदार है। इसलिए आयोग प्राधिकरण के इस आदेश के साथ उसकी याचिका का निपटारा कर रहा है कि वह खाली पड़े तीन प्लाटों में से एक श्री गुप्ता को आवंटित करे। इसके लिए 2008 की दर के आधार पर अगर कुछ बकाया बनता है तो वह श्री गुप्ता को देना होगा। ऐसा इस आदेश की प्रति मिलने के 30 दिन के भीतर किया जाए। आयोग ने हालांकि एक लाख रुपए का हर्जाना और रोजाना 1000 रुपए की पेनाल्टी को खारिज कर दिया। आयोग ने साथ ही स्पष्ट किया कि इस फैसले को ऐसे सभी मामलों में नजीर नहीं बनाया जा सकता।
संसार का हर व्यक्ति कंज्यूमर है। वो अपने जन्म के दिन से ही किसी न किसी वस्तु का उपभोग शुरू कर देता है। इसमें कई बार हमें धोखा मिलता है, तो कई बार भरोसा कर हम ठगे भी जाते हैं। ऐसे में हम इस सीरीज़ में आपको उन अधिकारों और मामलों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानना जरूरी है।