हाल ही में TMC की एक रैली में ममता बनर्जी ने GST को लेकर भाजपा से नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा– अब तो मुरी (मुरमुरे) पर GST लग गई है। क्या भाजपा के लोग अब मुरी नहीं खाएंगे?
मुरमुरे पर GST शायद बहुतों के लिए हल्की बात होगी, लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए यह एक स्टेपल फूड, यानी मुख्य भोजन है। वहां के लोग इसे सब्जी के साथ भी खाते हैं।
राजनीति से निकलकर आज जरूरत की खबर में चर्चा मुरमुरे की ही कर लेते हैं। यह कैसे बनता है? यह कितना हेल्दी होता है? पहली बार मुरमुरे कहां खाया गया? ये सब आज जानेंगे।
मुरमुरे क्या हैं?
अंजू विश्वकर्मा, डायटिशियन- मुरमुरे चावल से तैयार किए जाने वाला एक फूड आइटम है। इसे तेज आंच पर तैयार किया जाता है। ये हेल्थ के लिए फायदेमंद होता है।
मुरमुरे में मौजूद पौष्टिक तत्व के बारे बताएं?
अंजू के मुताबिक मुरमुरे में कैलोरी और फैट की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है। 100 ग्राम मुरमुरे में 402 कैलोरी, 0.5 ग्राम फैट, 0.1 ग्राम सैचुरेटेड फैट , 0 एमजी कोलेस्ट्रॉल, 113 एमजी कैल्शियम, 90 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.7 ग्राम आहार फाइबर, 6 ग्राम प्रोटीन, 6 मिलीग्राम कैल्शियम, 25 मिलीग्राम मैग्नीशियम, 31.7 मिलीग्राम आयरन, 0.1 मिलीग्राम पाइरोडॉक्सिन (विटामिन बी 6) पाया जाता है। यही वजह हैं कि डायटिशियन भी इसे खाने की सलाह देते हैं।
कलिंग जीतने के बाद अशोक की रसोई में बना था 'मुड़ी मनसा '
'मुरी' सिर्फ बंगाल के लोगों का फेवरेट नहीं, यह मुंबई वाली भेल पुरी के लिए भी जरूरी है। आंध्र प्रदेश का स्वादिष्ट 'मुंठा मसाला', कोल्हापुर का 'भडंग मुरमुरा' भी मुरमुरे के बिना अधूरा है।
और हां, जो लोग ओडिशा गए होंगे या फिर जिनका संपर्क ओडिशा के लोगों से रहा होगा, उन्होंने मयूरभंज का फेमस 'मुड़ी मनसा' का नाम जरूर सुना होगा।
इस डिश में मटन करी को मिट्टी के बर्तन में धीमी आंच में पकाया जाता है और इसमें मुरमुरे और हरी मिर्च को मिलाया जाता है। इस डिश से जुड़ी कई किंवदंतियों में से एक यह है कि कलिंग के साथ युद्ध जीतने के बाद सम्राट अशोक की रसोई में यह पहली बार बना था।
मुरमुरे खरीदने और रखने का सही तरीका
मुरमुरा थोक और पैकेट दोनों तरह से मिलता है, खरीदते वक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें
घर लाने के बाद मुरमुरे को ऐसे रखें
मुरमुरे बिहार, झारखंड, असम और नेपाल के निचले हिस्से के लोगों के खाने में भी शामिल है। महाराष्ट्र की भेलपुरी का स्वाद हर किसी की जुबान पर है। मध्य प्रदेश के लोग नमकीन को मुरमुरे के बिना सोच नहीं सकते। छत्तीसगढ़ के घरों में मुरमुरे के लड्डू बनते हैं। और तो और देश के कई मंदिरों में और मजारों पर प्रसाद के तौर पर भी यह चढ़ाया जाता है।
15वीं शताब्दी से प्रसाद में चढ़ाया जा रहा मुरमुरा
मुरमुरा पहली बार कब बना, किसने बनाया इस बारे में सही तरह से कहना मुश्किल है। कुछ लोग मानते हैं कि प्राचीन काल से इसका जिक्र सुनने को मिल रहा है। वहीं कुछ का कहना है कि 15वीं शताब्दी में मुरमुरे की खोज पहली बार हुई थी। जब चावल खेत से कटते थे तब चौड़े मुंह वाले मिट्टी के बर्तन को आधे रेत यानी बालू से भरा जाता था।
उस बर्तन में चावल को डाल गर्म किया जाता था। गर्मी से चावल के ऊपर की भूसी निकल जाती है और वो फूल जाता है। इसे भगवान को प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता था।
1930 की बात है। केमिस्ट और इंडस्ट्रलिस्ट प्रफुल्ल चंद्र रे पहली बार ‘मुरी, चूड़ा और बिस्कुट में मौजूद पौषक तत्त्व के बार में एक आर्टिकल लिखा। उन्होंने इस आर्टिकल में तीनों की खाने की चीजों में मौजूद पोषक तत्त्व को कंपेयर कर एक टेबल बनाया और समझाया कि 'मुरी' और चावल, बिस्कुट से बेहतर है। प्रफुल्ल चंद्र रे ने ही देश में पहली दवा कंपनी बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स की स्थापना की थी।
चलते-चलते नीचे लगे क्रिएटिव पर एक नजर डालें
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