बच्चों की पिटाई से करें तौबा:मासूम दिमाग के लिए थप्पड़ भी गंभीर हिंसा; रिसर्चर्स का दावा- पिटाई से खतरे के समय बच्चों के फैसले लेने की क्षमता पर पड़ता है असर

2 वर्ष पहले
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भारत में घर या स्कूल में बच्चों की पिटाई एक आम बात समझी जाती है। ज्यादातर लोग पिटाई को बच्चों को संस्कारी बनाने, उन्हें पढ़ाने और अनुशासित बनाने का एक जरूरी तरीका मानते हैं। लेकिन इसे एक मामूली बात समझने वाले मम्मी-पापा, गार्जियन और टीचर अब अलर्ट हो जाएं।

हार्वर्ड में हाल ही में हुई एक रिसर्च में पता चला है कि सामान्य पिटाई भी बच्चों के दिमाग पर हिंसा के बाकी तरीकों की तरह ही गहरा असर डालती है। आसान शब्दों में कहें तो बच्चों के मस्तिष्क के लिए थप्पड़ भी उनके साथ हुई किसी तरह की गंभीर हिंसा जैसा होता है।

चाइल्ड डेवलपमेंट जनरल में प्रकाशित इस रिसर्च के मुताबिक पीटे जाने वाले बच्चों का दिमाग किसी खतरे का सामना होने पर उसे अपने साथ हुआ दुर्व्यवहार ही समझता है और आदतन सही फैसला नहीं ले पाता।

बच्चों की spanking और उनसे गंभीर मारपीट में अंतर, लेकिन मस्तिष्क पर असर एक जैसा

यहां यह समझना जरूरी है कि बच्चों की पिटाई का मतलब उनके साथ होने वाली गंभीर हिंसा नहीं, जिसमें उन्हें चोट पहुंचाने की नीयत से बुरी तरह बड़ों की तरह लात-घूंसों या किसी हथियार से पीटा जाना शामिल होता है।

यहां पीटने का मतलब घरों या स्कूलों में होने वाली आम पिटाई से है, जैसे थप्पड़ मारना, छड़ी या रूलर से पीटना, पीठ पर या पीछे कूल्हों पर मारना आदि। अंग्रेजी में इसके लिए खास शब्द "spanking" का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इस रिसर्च के मुताबिक बच्चों के मस्तिष्क पर दोनों का असर एक जैसा होता है।

हार्वर्ड के रिसर्चर्स का कहना है कि जिन बच्चों को पीटा जाता है, उनके मस्तिष्क के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (पीएफसी) के कई हिस्सों की तंत्रिकाएं काफी तेज प्रतिक्रिया करती हैं। यानी उन हिस्सों का न्यूरल रिस्पॉन्स ज्यादा होता है।

इनमें वे हिस्से भी शामिल हैं जो आसपास किसी तरह का खतरा होने पर हमारे रिएक्शन को तय करते हैं। इससे फैसला लेने और हालात पर विचार करने की प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ता है।

रिसर्चर्स बोले- ज्यादातर लोग बच्चों की पिटाई को हिंसा नहीं मानते

इस स्टडी के सीनियर रिसर्चर और डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर केटी ए मैकलॉघिन कहते हैं, "हम यह तो जानते हैं कि जिन बच्चों के परिवार शारीरिक दंड का इस्तेमाल करते हैं, उनमें चिंता, डिप्रेशन, व्यवहार संबंधी परेशानी और मेंटल हेल्थ से जुड़ी दूसरी समस्याओं के पनपने की संभावना ज्यादा होती है, मगर ज्यादातर लोग बच्चों की पिटाई को हिंसा नहीं मानते हैं। इस स्टडी के जरिए हम यह जानना चाहते थे कि बच्चों की पिटाई का न्यूरो बायोलॉजिकल असर क्या होता है, खासतौर पर मस्तिष्क के विकास पर। "

चिंता, डिप्रेशन और ड्रग्स की लत का शिकार हो सकते हैं बच्चे

रिसर्चर्स के अनुसार कॉरपोरल पनिशमेंट यानी शारीरिक दंड मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। इससे बच्चे चिंता, डिप्रेशन, व्यवहार संबंधी परेशानी या ड्रग्स की लत का शिकार हो सकते हैं।

मैकलॉघिन और उनके साथी रिसर्चर्स ने 3 से 11 वर्ष के बच्चों पर की गई एक बड़ी स्टडी के डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने 147 ऐसे बच्चों पर फोकस किया जिनकी पिटाई तो की गई थी, मगर उन्हें किसी तरह की गंभीर हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा था।

ऐसे हुई रिसर्च...MRI मशीन में बच्चों को दिखाए गए डरावने चेहरे

हर बच्चे को एक MRI मशीन में लिटाकर उन्हें कंप्यूटर स्क्रीन दिखाई गई। इस स्क्रीन पर डरावने और सामान्य चेहरे बनाने वाले एक्टर्स की अलग-अलग तस्वीरें दिखाई गईं।

MRI स्कैनर से इन तस्वीरों को देखने पर बच्चों के मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों में होने वाले रिएक्शन को देखा गया।

औसतन सभी बच्चों के मस्तिष्क सामान्य चेहरों के मुकाबले डरावने चेहरों को देखकर ज्यादा सक्रिय दिखे, मगर जिन बच्चों की पिटाई होती थी उनके प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (पीएफसी) के कई इलाके काफी ज्यादा सक्रिय नजर आए। दूसरी तरफ जिन बच्चों की कभी पिटाई नहीं हुई, उनके पीएफसी में ऐसी प्रतिक्रिया नजर नहीं आई।

ठीक इससे उलट, घरों या स्कूल में सामान्य पिटाई खाने वाले बच्चों और गंभीर दुर्व्यवहार झेलने वाले बच्चों के मस्तिष्क की रिएक्शन में कोई अंतर नहीं था।

साफ था कि हम भले ही बच्चों की आम पिटाई, दूसरी तरह की हिंसा या गंभीर दुर्व्यवहार को अलग-अलग समझें, लेकिन बच्चों के लिए इनमें कोई अंतर नहीं।

रिसर्चर्स का कहना है कि यह बेहद आम लगने वाली पिटाई यानी स्पैंकिंग का बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव के विश्लेषण की दिशा में पहला कदम है। इस दिशा में और भी काम करने की जरूरत है।

कॉरपोरल पनिशमेंट का हर बच्चे पर अलग-अलग असर

यह जानना बेहद जरूरी है कि कॉरपोरल पनिशमेंट यानी शारीरिक दंड हर बच्चे पर एक जैसा असर नहीं डालता है, लेकिन पूरी तरह संभव है कि ऐसे बच्चे किसी खतरे का सामना होने पर काफी लचर प्रतिक्रिया करें।

रिसर्चर्स का कहना है कि शारीरिक दंड बच्चों के विकास के लिए एक जोखिम है, इसलिए माता-पिता और पॉलिसी मेकर्स को एहतियातन इस आदत या तरीके को रोकने का काम करना चाहिए।

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