कब्ज हो सकता है आंत में कैंसर की एक वजह:45 की उम्र के बाद हर साल करवाएं जांच, पढ़ें; इससे बचने के 8 उपाय

15 दिन पहले
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कोलन या कोलोरेक्टल कैंसर। यह कोलन यानी बड़ी आंत या रैक्टम यानी गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल के अंतिम भाग में होता है।

भारतीयों में इसके केस बढ़ रहे हैं। इंडियन काउंलिस ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी ICMR की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में कोलोरेक्टल कैंसर के 19 लाख नए मामले सामने आए।

कोलन कैंसर की अवेयरनेस के लिए मार्च का महीना वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO ने चुना है।

इंस्टीट्यूट ऑफ डाइजेस्टिव एंड हेपेटोबिलरी साइंसेज, मेदांता गुरुग्राम के डायरेक्टर और कोलोरेक्टल सर्जरी एक्सपर्ट डॉ. अमनजीत सिंह कहते हैं-

मेदांता में भी पिछले पांच से सात साल में कोलन कैंसर के पेशेंट्स बढ़े हैं। पहले हमारे पास एक साल में 150 के करीब पेशेंट्स आते थे। अब केवल सर्जरी के लिए 130 पेशेंट्स एक साल में आ रहे हैं।

अर्ली स्टेज कैंसर वाले पेशेंट्स यानी वो जिनका इलाज समय पर कर ठीक किया जा सकता है उनकी संख्या 300-400 के बीच है।

डॉ. अमनजीत सिंह के मुताबिक ज्यादातर केस में मरीज जब हम तक पहुंचता है तब तक उसकी स्थिति क्रिटिकल हो जाती है। वो कैंसर के लास्ट स्टेज में होता है। इसके बाद हमारे पास ऑपरेशन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता।

सवाल: भारत में आंतों का कैंसर बढ़ने की वजह क्या है?
जवाब: अमेरिका और इंग्लैंड में कोलन कैंसर तीसरा सबसे बड़ा कैंसर है। अमेरिकी कैंसर सोसाइटी के मुताबिक 2023 की शुरुआत में ही कोलन कैंसर के 106,970 केस आ चुके थे। इंग्लैंड की बात की जाए तो यहां भी एक साल में 50 हजार केस आते हैं। इन दोनों देशों की तुलना में कोलन कैंसर के केस भारत में पांच साल पहले तक बहुत कम थे।

जैसे ही हमने वेस्टर्न कल्चर को अपनी लाइफ स्टाइल में शामिल किया हम भी इसके शिकार होने लगे। जैसे-

  • हाई फाइबर वाले खाने जैसे- गेहूं, जौ, मक्का और साबुत अनाज, दाल, गाजर चुकंदर आदि खाना हमने कम कर दिया। इसके बदले हम जंक और फास्ट फूड पर शिफ्ट हो गए।
  • नॉन वेज खाने वालों की संख्या बढ़ी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण भारत में 90% लोग नॉनवेजिटेरियन हैं। वहीं UN फूड एंड एग्रीकल्‍चर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 42% लोग नॉनवेज खाने लगे हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि रेड मीट यानी लैंब, मटन, पोर्क और प्रोसेस्ड मीट में कार्सिनजोनिक होता है। यह टिश्यूज को कैंसर के टिश्यू में बदलने की ताकत रखता है।
  • हाई फैट डेयरी प्रोडक्ट जैसे चीज, बटर, हेवी क्रीम बर्गर, पिज्जा में डालकर खाना भारतीयों की आदत बन गई है। ये सब डेली फूड इनटेक में शामिल हो गए। इससे भी कब्ज और पेट रिलेटेड दूसरी समस्या होती है। सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो कैंसर की वजह बन सकता है।
  • शराब-सिगरेट पीने वालों की भी संख्या पहले से बढ़ी है।
  • इकॉनोमिक रिसर्च एजेंसी ICRIERऔर लॉ कंसल्टिंग फर्म PLR Chambers की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में करीब 16 करोड़ लोग अल्कोहल पीते हैं। लोग इस बात को इग्नोर करने लगे कि यह हेल्थ के लिए नुकसानदेह है। उनके लिए यह सिर्फ स्टेटस सिंबल बन गया।

सवाल: क्या कोलन कैंसर होने की कोई स्पेसिफिक एज है?
जवाब: कोई फिक्स एज नहीं। पुराने जमाने में खानपान में लोग कोताही नहीं करते थे। मोटा अनाज खाते थे। समय पर सोते और एक्सरसाइज करते थे। इसलिए उन दिनों बुजुर्गाें को कोलन कैंसर होता था। वह भी तब, जब उम्र बढ़ने के साथ आंत, लिवर थोड़ा कमजोर हो जाता था।

अब ऐसा नहीं है। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि खराब लाइफस्टाइल की वजह से कोलन कैंसर के केस बढ़े हैं। इसलिए 45 साल की उम्र के बाद भी इसके होने का रिस्क बना रहता है।

सवाल: अगर मेरे घर-परिवार में किसी को कैंसर है, तो मुझे कैंसर होने के कितने चांसेज हैं?
जवाब: कैंसर होने के कई कारण है। इसमें जेनेटिक भी एक वजह है, लेकिन ऐसा केवल 1% से 2% मामलों में देखा गया है, जहां कैंसर परिवार के सदस्यों को ट्रांसफर हो रहा हो। यही आंकड़ा कोलन कैंसर के मामले में भी लागू होता है। वहीं अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर के मुताबिक जेनेटिक वजहों से कोलोन कैंसर होने की संभावना 2.5% से 5% के बीच होती है।

सवाल: कोलोन कैंसर के लक्षण क्या हैं?
जवाब: कोलोन कैंसर के प्रमुख लक्षण नीचे लगी क्रिएटिव में पढ़ें और दूसरों को शेयर भी करें।

क्रिएटिव में बताई गई सारी वजहों को डिटेल में समझते हैं

कोलोन कैंसर में स्टूल के साथ ब्लड आने या रैक्टम (गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल का अंतिम भाग) में ब्लीडिंग होने की प्रॉब्लम होती है। इसलिए थोड़ा या ज्यादा जब भी स्टूल पास करते समय खून आए उसे इग्नोर करने की जगह डॉक्टर के पास जाएं।

डाइट या एक्सरसाइज में बदलाव किए बगैर अचानक वजन घटने लगे तो चिंता की बात है। कोलन कैंसर के केस में यह भी एक लक्षण है। इसलिए वजन कम होने की वजह फौरन तलाशें।

कोलोन कैंसर होने पर डाइजेशन सही तरह से नहीं हो पाता। ऐसे में बार-बार पेट फूलने की प्रॉब्लम हो सकती है।

पेट के निचले हिस्से में अक्सर दर्द या ऐंठन महसूस हो तो अलर्ट हो जाएं। कुछ केस में ये लक्षण लगातार कुछ दिनों तक बना रहता है।

आंतों के मूवमेंट में भी बदलाव महसूस होता है। अंग्रेजी में इसे bowl habbit में बदलाव कहते हैं। ऐसा होने पर अचानक कब्ज हो जाती है या लूज मोशन की प्रॉब्लम हो सकती है। यह भी कोलन कैंसर का लक्षण है।

इस बीमारी के मरीज कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में अगर अक्सर कमजोरी फील होने लगे या थोड़ा काम करने पर ही थकान महसूस हो तो डॉक्टर की सलाह लें।

पेट ठीक तरह से साफ न होने की वजह कई बार कोलन कैंसर हो सकता है। जब आपको बार-बार टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस हो। पॉटी करने के बाद भी पेट साफ महसूस न हो तो यह कोलन कैंसर का एक लक्षण हो सकता है।

बार-बार उल्टी होना, खाना उल्टी से निकल जाना और जी मिचलाना कोलोन कैंसर का संकेत हो सकता है।

सवाल: कोलन कैंसर से बचने के लिए हमें अपनी आदतों में क्या सुधार करना चाहिए?
जवाब:

  1. 45 साल से अधिक उम्र के हर व्यक्ति को साल में एक बार कोलन कैंसर की जांच करानी चाहिए।
  2. जंक , फास्ट फूड और स्ट्रीट फूड खाना कम कर दें। खाने में वो सब्जियां और साबुत अनाज शामिल करें जिनमें विटामिन, खनिज, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये आंत और कोलन को हेल्दी रखने में मदद करेंगे।
  3. अपने तनाव को कम करने के लिए योग या मेडिटेशन करें। जरूरत पड़ने पर साइकोलॉजिस्ट को दिखाएं।
  4. डायबिटीज के पेशेंट सही ट्रीटमेंट लें, क्योंकि शरीर में इंसुलिन रजिस्टेंट कोलोरेक्टल कैंसर का कारण बन सकता है।
  5. कब्जियत की प्रॉब्लम है तो उसे इग्नोर न करें, डॉक्टर की सलाह लें।
  6. पानी भरपूर पिएं। पानी का मतलब पानी ही पिएं, उसे जूस, नारियल पानी से रीप्लेस न करें।
  7. अल्कोहल और नशे से दूर रहें। यदि कोई पूरी तरह से शराब नहीं छोड़ सकता है, तो इसकी मात्रा धीरे-धीरे कम कर आदत सुधारें।
  8. सिगरेट पीना छोड़ दें, तंबाकू भी आपको नुकसान पहुंचाएगा।

सवाल: क्या कोलन कैंसर का इलाज हो सकता है?
जवाब: डॉ. अमनजीत सिंह कहते हैं कोलन कैंसर के स्टेज को देखते हुए रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी दी जाती है।

जरूरत पड़ने पर ट्यूमर को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। सर्जरी के लिए लैप्रोस्कोपिक और रोबोटिक दोनों ही टेक्नीक यूज की जाती है।

सवाल: कोलोन कैंसर के इलाज को लेकर सबसे जोखिम भरी बात क्या है?
जवाब: ज्यादातर दूसरे कैंसर की तरह कोलोन कैंसर का भी पता शुरुआती स्टेज में नहीं लगता है। ऐसा होने की 2 बड़ी वजह हैं-

  • स्क्रीनिंग प्रोग्राम और अवेयरनेस की कमी की वजह से हमारे देश में ज्यादातर कैंसर लास्ट स्टेज पर पता चलता है।
  • कोलन कैंसर के केस में सिम्टम्स पेट की बीमारियों से शुरू होते हैं। एसिडिटी, पेट में जलन, अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों को हम हल्के में लेते और घरेलू उपायों से ठीक करने की कोशिश करते हैं। कई बार इस वजह से भी स्थिति गंभीर हो जाती है।

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