आपने इमोशनल ईटिंग के बारे में कहीं न कहीं जरूर सुना होगा। यह ठीक वैसे है, जैसे इमोशनल शॉपिंग। जहां खासतौर से महिलाएं उदास होने पर ढेरों शॉपिंग करती हैं। अब वापस से समझते हैं इमोशनल ईटिंग को। बहुत से लोगों को तनाव या दु:ख की स्थिति में खाने की इच्छा नहीं करती। उनकी भूख मर जाती है, लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें टेंशन के वक्त ज्यादा भूख लगने लगती है। वे अपनी डाइट से ज्यादा खाने लगते हैं।
इस दौरान वे कार्बोहाइड्रेट, वसा और शुगर वाली चीजें खाने लगते हैं। इसे ही इमोशनल ईटिंग कहते हैं। इमोशनल ईटिंग में अक्सर आपका वजन बढ़ जाता है। फिर इसे कम करना मुश्किल होता है।
अचानक ज्यादा खाना खाने से आपके शरीर में कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए वक्त रहते आपको अपने इमोशनल ईटिंग को बढ़ने से रोक देना चाहिए। ताकि आप मोटापा या किसी बीमारी का शिकार होने से बच सकें।
महिलाएं इमोशनल ईटिंग की सबसे ज्यादा शिकार होती हैं। वे अपने नेगेटिव इमोशन्स को हैंडल करने के लिए खाने का सहारा लेती हैं। जब हम तनाव में होते हैं तब दिमाग में नेगेटिव फीलिंग्स आती है। इससे मन में एक खालीपन की भावना आ जाती है। इस खालीपन को भरने के लिए भूख न होने पर भी खाना खाने लगते हैं। हकीकत में यह एक तरह का झूठा अहसास होता है।
आज जरूरत की खबर में जानते हैं, तनाव में बढ़ती भूख को कैसे रोका जा सकता है और अगर इसे समय पर नहीं रोका गया तो क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं?
इमोशनल ईटिंग को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है अपने दिमाग को समझाना। इसके लिए आपको समझना होगा कि नॉर्मल भूख और इमोशनल भूख के बीच क्या अंतर है?
इमोशनल ईटिंग को रोकने के लिए आपको इन तरीकों को अपनाना होगा।
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