कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि जिस तरह एक बेटा शादी के बाद भी माता-पिता का हमेशा बेटा ही होता है, उसी तरह शादी होने के बाद बेटी भी बेटी ही रहती है। इसलिए दोनों के समान अधिकार होंगे।
मामला क्या था
दरअसल सैनिक कल्याण बोर्ड ने एक मैरिड बेटी को आश्रित कार्ड देने से इनकार कर दिया था। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि इस तरह के मामले जेंडर स्टीरियोटाइप का उदाहरण हैं जो सदियों पुरानी सोच को दर्शाते हैं। यह महिलाओं की समानता में रुकावट है।
जेंडर के आधार पर भेदभाव संविधान के आर्टिकल 14 (राइट टू इक्वालिटी) का उल्लंघन है। इसलिए शादी होने के बाद भी बेटी से उसके बेटी होने के अधिकार को नहीं छीना जा सकता।
ऐसी बातें तो पिछले कुछ सालों से समय-समय पर होती रहती है। क्या वाकई इसका सोसाइटी पर असर होता है। आज जरूरत की खबर में जेंडर स्टीरियोटाइप के बारे में जानेंगे, और साथ ही समझेंगे कि हमारे देश में बेटियों के लिए कानून में क्या अधिकार हैं।
आज के हमारे एक्सपर्ट हैं
सवाल: जेंडर स्टीरियोटाइप क्या होता है, इससे समाज को क्या नुकसान है?
जवाब: जब किसी तरह के व्यवहार, मान्यताओं और विशेषताओं को किसी एक जेंडर पर मढ़ दिया जाए, तो वह जेंडर स्टीरियोटाइप कहलाता है।
उदाहरण: महिलाओं से हमेशा अपेक्षा रहती हैं कि उनका व्यवहार सभ्य, परवाह करने वाला और प्यार भरा होगा। वहीं पुरुषों से अपेक्षा होती है कि वो हमेशा आक्रामक और बोल्ड रहेंगे।
जेंडर स्टीरियोटाइप की वजह से होने वाले नुकसान को ऐसे समझें…
सवाल: किस उम्र में बच्चे अपने जेंडर को समझने लगते हैं?
जवाब: 3 साल की उम्र तक बच्चे अपने जेंडर को लेकर अवेयर हो जाते हैं। ऐसे में न सिर्फ जेंडर स्टीरियोटाइप खतरनाक है बल्कि उनपर जेंडर को लेकर किसी भी तरह की सोच थोपना ठीक नहीं।
कुछ पेरेंट्स जिनकी बड़ी बेटियों के बाद छोटा बेटा है, जबरदस्ती बेटे को बहन की फ्रॉक कई सालों तक पहनाते हैं। इससे बच्चों में जेंडर आईडेंटिटी डिसऑर्डर जन्म ले सकता है।
कई पेरेंट्स ऐसे हैं जो सिर्फ इसलिए अपने बेटा-बेटी में फर्क करते हैं कि कहीं उनके बच्चे लेस्बियन या गे न निकल जाएं। ऐसे पेरेंट्स होमोसेक्शुएलिटी के डर से बच्चों की परवरिश जेंडर स्टीरियोटाइप के अनुसार करते हैं।
सवाल: कोर्ट ने इस मामले में ऐसा क्यों कहा कि जेंडर न्यूट्रल टाइटल्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिए?
जवाब: दरअसल, बेटी ने जब पिटिशन फाइल की तो उसके पिता के लिए कानूनी भाषा में बार-बार एक्स-सर्विस मैन शब्द का इस्तेमाल हुआ। इस पर भी कोर्ट ने ऐतराज जताया।
कोर्ट ने कहा कि एक्स-सर्विस मैन की जगह जेंडर न्यूट्रल टाइटल का इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि टाइटल में मैन के इस्तेमाल से लैंगिक भेदभाव का प्रदर्शन होता है। इससे ऐसा लगता है कि सैन्य बलों में अभी भी सिर्फ पुरूष ही काम करते हैं बल्कि ऐसा है नहीं। आर्मी, एयर फोर्स और नेवी में महिलाएं शीर्ष पदों तक पहुंच चुकी हैं। टाइटल में मैन शब्द के इस्तेमाल से सदियों पुरानी पुरूष वादी सोच दिखती है।
सवाल: आश्रित आई कार्ड होता क्या है?
जवाब: पूर्व सैनिकों के लिए कई राज्य सरकारें योजनाएं चलाती हैं। इसमें सैनिकों के आश्रितों को सरकारी नौकरी, स्कूल और कॉलेजों में आरक्षण मिलता है। पूर्व सैनिक से अपने संबंध को साबित करने के लिए आश्रित आई कार्ड बनवाना पड़ता है। इसे बनवाने के लिए अपने जिले के सैनिक कल्याण बोर्ड से संपर्क करना होता है।
सवाल: इस मामले में लड़की को आश्रित आई कार्ड देने से क्यों मना कर दिया गया?
जवाब: हाल ही में कर्नाटक राज्य के मामले में सैनिक कल्याण बोर्ड ने लड़की को आश्रित आई कार्ड देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि वह शादीशुदा है और विवाहित बेटियों को आई कार्ड नहीं दिया जाता है।
सवाल: बेटी ने किस आधार पर कोर्ट में केस फाइल किया?
जवाब: साल 2005 के बाद से हिंदू सक्सेशन एक्ट के अनुसार अगर विल बनाए बिना पिता की मृत्यु हो जाती है तो प्रॉपर्टी में बेटा और बेटी दोनों का समान अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी बेटी को कोपार्सनर का स्टेटस दिया जिसके अनुसार बेटा-बेटी के समान अधिकार होंगे। इन दोनों नियमों के आधार पर कर्नाटक जैसे मामले में हाईकोर्ट में पिटिशन डाली जा सकती है।
सवाल: कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के आधार पर क्या दूसरे कोर्ट में भी फैसला सुनाया जा सकता है?
जवाब: इस मामले का उदाहरण दूसरे हाईकोर्ट ले सकते हैं मगर जरूरी नहीं है कि वो ऐसा ही ऑर्डर पास करेंगे। हाईकोर्ट का ज्यूरिसडिक्शन उसके राज्य तक ही होता है। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर देता तब तक यह फैसला पूरे देश पर लागू नहीं होगा।
सवाल: पूर्व सैनिक के आश्रित होने के लिहाज से बेटी को क्या फायदा मिलता है?
जवाब: केंद्रीय सैनिक बोर्ड के अनुसार पूर्व सैनिक के आश्रित होने के लिहाज से बच्चों को ये फायदे मिलते हैं…
सवाल: अनुकंपा की नौकरी में बेटी के क्या अधिकार हैं?
जवाब: चाहे बेटी शादीशुदा हो या कुंवारी हो, वह अनुकंपा की नौकरी कर सकती है। अगर एक से ज्यादा बच्चे हैं तो दूसरे बच्चों को एनओसी देनी होती है। शादी के बाद भी किसी लड़की से उसका बेटी होने का स्टेटस नहीं छीना जा सकता।
सवाल: क्या पिता की संपत्ति में शादीशुदा बेटी का भी अधिकार है?
जवाब: पिता की संपत्ति में शादीशुदा बेटी का कुंवारी बेटी या बेटे जितना ही अधिकार होता है।
सवाल: तलाकशुदा बेटी के क्या अधिकार हैं?
जवाब: पिता की संपत्ति में तलाकशुदा बेटी का कुंवारी बेटी या बेटे जितना ही अधिकार होता है।
चलते-चलते
सेलिब्रिटीज को पसंद आ रही जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिग
हम पेरेंट्स को कोई टिप्स नहीं दे रहें हैं क्योंकि हर किसी की परवरिश का तरीका अलग होता है। उसमें कोई बुराई नहीं है। बस इतना ध्यान रखें कि अनजाने में किए गए भेदभाव का असर इतना गहरा न पड़ जाए कि बच्चों को जिंदगी भर उसकी कीमत चुकानी पड़े।
हो सके तो इन शब्दों को घर में यूज करना बंद कर दें-
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