'शादी के समय बेटी को दहेज दिया जाता है। इस वजह से बेटी का पारिवारिक संपत्ति पर से अधिकार खत्म नहीं होता है।' बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच ने हाल ही में यह फैसला सुनाया।
दरअसल मामला गोवा की एक फैमिली का था। जहां टेरेजिन्हा मार्टिन्स डेविड ने अपने परिवार पर केस दर्ज किया था। टेरेजिन्हा परिवार की सबसे बड़ी बेटी हैं। उनके बाद तीन बहनें और चार भाई हैं।
टेरेजिन्हा के मुताबिक पिता ने अपनी संपत्ति का उन्हें उत्तराधिकारी घोषित किया था। मां ने दूसरी डीड बनाकर दो भाईयों के नाम परिवारिक संपत्ति यानी एक दुकान ट्रांसफर कर दी। इसकी सूचना किसी भी बहन को नहीं दी।
दुकान पारिवारिक संपत्ति है इसलिए बेटी का उस पर समान अधिकार है।
मां और भाईयों का तर्क था कि चूंकि बहनों को शादी के समय दहेज मिला था इसलिए वे परिवार की संपत्ति पर अधिकार नहीं मांग सकतीं।
आज जरूरत की खबर में एक बेटी का संपत्ति पर क्या अधिकार है इसकी बात करेंगे।
मौजूदा मामला गोवा के परिवार का है तो ऐसे में यह समझना जरूरी है कि वहां हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत फैसला नहीं होगा। गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड के आधार पर कानूनी फैसला होता है।
सवाल: गोवा में अलग से कानून क्यों है?
जवाब: गोवा भारत का एकमात्र राज्य है, जहां पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। जिसे गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है। इसी पर बेस्ड है गोवा फैमिली लॉ l
असल में पुर्तगाल में 1867 में एक सिविल कोड यानी नागरिक संहिता लागू की गई थी। जिसे 1869 में पुर्तगाली अधिकार वाले गोवा में भी लागू किया गया था। साल 1961 में गोवा भारत में शामिल हुआ था।
पुर्तगाल के कानून में बदलाव हो चुका है लेकिन गोवा में अभी लागू है।
सवाल: मौजूदा मामले में किस आधार पर फैसला हुआ है?
जवाब: बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने Portuguese Civil Code जिसे गोवा सिविल कोड भी कहते है उसके आधार पर फैसला सुनाया। इस कोड में आर्टिकल 1867, 2184, 1565, 2177, और 2016 पर मामले की जांच की गई।
आर्टिकल 1565 के तहत बताया गया कि पेरेंट्स या ग्रैंडपेरेंट्स बगैर एक बच्चे की सहमति के दूसरे बच्चे को न तो संपत्ति बेच सकते हैं और न ही किराये पर दे सकते हैं।
कोर्ट ने माना कि इस पूरे मामले में आर्टिकल 1565 और 2177 का उल्लंघन हुआ और बड़ी बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया।
गोवा में लड़कियों को क्या अधिकार मिले हैं नीचे लगे क्रिएटिव में समझते हैं-
स्टोरी के दूसरे हिस्से में हिंदू लड़कियों को संपत्ति पर मिले अधिकारों की बात करते हैं...
सवाल: बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार कब दिया गया?
जवाब: भारतीय कानून में यह बदलाव 2005 में हो गया था। ये वही साल था जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बदलाव किया गया था। बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया था।
सवाल: लड़की की शादी हो जाने पर पारिवारिक संपत्ति यानी मायके की प्रॉपर्टी पर क्या अधिकार हैं?
जवाब: लड़की की शादी हुई हो या न हुई हो इससे संपत्ति के अधिकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार लड़का और लड़की दोनों एक समान हैं इसलिए दोनों को बराबर का हिस्सा दिया जाएगा।
अगर पिता की मृत्यु बिना विल यानी वसीयत बनाए हो जाती है तो ऐसी कंडीशन में जितने भी बच्चे हैं सबको बराबर हिस्सा मिलेगा।
सवाल: किन परिस्थितियों में बेटी संपत्ति की वारिस नहीं होती है?
जवाब: सिर्फ 2 परिस्थितियों में बेटी का अपने पिता की संपत्ति और पैसों पर अधिकार नहीं होता है।
पहला जब पिता ने अपनी वसीयत में बेटी को जगह न दी हो और अपनी पूरी संपत्ति बेटे, बहू, नाती, पोता, दोस्त, किसी संस्थान या ट्रस्ट के नाम कर दी हो।
दूसरा जब कोर्ट में इस बात का रिकॉर्ड हो कि बेटी और पिता का रिश्ता टूट गया है।
सवाल: क्या पिता अपनी बेटी से रिश्ता खत्म कर सकता है?
जवाब: इंडियन लॉ के मुताबिक एक पिता अपनी बेटी से रिश्ता नहीं तोड़ सकता है। कई बार ऐसा जरूर होता है कि पिता अपनी बेटी की जिम्मेदारी नहीं लेता है। ऐसी स्थिति में पिता पर CrPC की सेक्शन 125 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
सवाल: पिता अगर मौखिक तौर पर ये कह दे कि मेरा अपनी बेटी से कोई रिश्ता नहीं है, तो क्या ऐसे में बेटी का पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार बनता है?
जवाब: पिता रिश्ता खत्म नहीं कर सकता है। बेटी ही कर सकती है। पिता रिश्ता तोड़ भी ले तब भी उसे अपनी बेटी को आर्थिक सहायता देनी पड़ेगी और बेटी का उसकी संपत्ति पर पूरा अधिकार होगा।
सवाल: क्या लड़की को दहेज दिया जाना संपत्ति का बंटवारा माना जा सकता है?
जवाब: डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट के हिसाब से माता-पिता या कोई अन्य अगर बेटी को गिफ्ट देना चाहता है या दहेज देना चाहता है तो वह ₹20000 से ऊपर का तोहफा या दहेज नहीं दे सकता।
हालांकि दहेज डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट में मांगना और देना दोनों ही गंभीर अपराध है और अगर लड़की को किसी भी तरीके के तोहफे या दहेज दिया जाता है तो उसको संपत्ति का बंटवारा नहीं माना जाएगा।
सवाल: क्या शादी होने के बाद लड़की का पारिवारिक संपत्ति पर हक खत्म हो जाता है?
जवाब: लड़की की शादी हो जाने पर वह किसकी बेटी है यह नहीं बदलता। न ही लड़की की जाति बदलती। यह कानून का विस्थापित सिद्धांत है कि लड़की की शादी हो जाने से उसके लीगल राइट और लीगल कैपेसिटी नहीं बदलते।
यानी कि वह हमेशा उस कम्युनिटी का हिस्सा रहेगी जिससे वह आई है और हमेशा अपने पिता की बेटी कहलाएगी।
सवाल: अगर माता-पिता का तलाक हो गया है या फिर लिव-इन में रहने वाले माता-पिता अलग हो गए हों तो क्या बेटी का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार है?
जवाब: जी हां, पूरा अधिकार है। इस बात को ऐसे समझिए…
• जब लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल का कोई बच्चा होता है तो उसका पिता की संपत्ति पर उतना ही अधिकार होता है, जितना एक शादी के बाद पैदा हुए बच्चे का होता है।
• माता-पिता के अलग होने से बेटियों का अधिकार नहीं बदलता है। बशर्ते वो अपने पिता से रिश्ता खत्म न करना चाहती हों।
सवाल: हिंदू के अलावा किन-किन धर्मों में हिंदू पर्सनल लॉ फॉलो होता है?
जवाब: जैन, बौद्ध और सिख धर्म 'हिंदू पर्सनल लॉ' फॉलो करते हैं। मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी के उनके खुद के कानून हैं।
स्टोरी के तीसरे हिस्से में मुस्लिम महिलाओं की बात करते हैं...
सवाल: मुस्लिम महिला को प्रॉपर्टी पर क्या अधिकार मिले हैं?
जवाब: मुस्लिम महिला के अधिकार को तीन हिस्सों में बांटकर समझते हैं…
पति की संपत्ति में अधिकार
सुन्नी और शिया दोनों मुस्लिमों के नियम थोड़े अलग हैं। शिया महिला को निकाह के समय पति से मेहर की राशि मिलती है। पति की मृत्यु के बाद भी उन्हें संपत्ति का एक चौथाई हिस्सा मिलता है।
ऐसा तब संभव है जब वो अपने पति की इकलौती पत्नी होगी। अगर एक से अधिक पत्नी हैं तब सभी को संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलता है।
विधवा महिला को तब तक प्रॉपर्टी में अधिकार रहता है जब तक वो दूसरी शादी न कर ले।
बेटी का संपत्ति पर अधिकार
बेटी को बेटे की तुलना में आधा हिस्सा दिया जाता है।
जैसे- किसी व्यक्ति के एक बेटा और एक बेटी है और संपत्ति के तीन हिस्से हुए हैं तो उसमें दो हिस्से लड़के के नाम होंगे और एक हिस्सा बेटी को मिलेगा।
मुस्लिम बेटी शादी के बाद या फिर तलाक के बाद भी अपने माता पिता के घर में हक से रह सकती है यदि उसका कोई बच्चा नहीं है या फिर छोटा है।
मुस्लिम कानून के मुताबिक अगर तलाकशुदा महिला का बच्चा बालिग है तब उसे अपनी मां की देखरेख की जिम्मेदारी लेनी होगी।
मां का संपत्ति में अधिकार
तलाकशुदा या फिर विधवा महिला को अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए संपत्ति में आठवें हिस्से का अधिकार दिया जाता है। अगर महिला के कोई भी बच्चा नहीं है तो उसे पति की संपत्ति में एक चौथाई का हिस्सा मिलता है।
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