सांसद संतोख सिंह के बेटे ने कहा:गोल्डन ऑवर में CPR दे देते तो बच जाती पापा की जान; क्या है CPR

2 महीने पहले

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जालंधर से कांग्रेस सांसद चौधरी संतोख सिंह के निधन पर उनके विधायक बेटे विक्रमजीत चौधरी ने कहा कि एंबुलेंस में ले जाते वक्त पापा पंप करने पर सांस ले रहे थे। मगर डॉक्टरों के पास इमरजेंसी शॉक का कोई सामान नहीं था। वहां के डॉक्टर बड़ी हड़बड़ाहट में थे।

इसका सीधा मतलब यह है कि सांसद को गोल्डन ऑवर में अगर CPR भी दे दिया जाता तो उनकी जान बच सकती थी।

आज जरूरत की खबर में जानेंगे कि गोल्डन ऑवर क्या होता है, इस समय CPR देना कितना जरूरी है, CPR दिया कैसे जाता है और इसको देने में क्या गलतियां कर सकते हैं?

आज के हमारे एक्सपर्ट हैं डॉ. नरेश त्रेहन, मेदांता अस्पताल के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर।

सवाल: गोल्डन ऑवर क्या होता है?
जवाब:
कोई भी इंजरी या हार्ट अटैक आने के बाद का पहला घंटा गोल्डन ऑवर होता है। अगर शुरू के 60 मिनट में सही कदम उठा लिए जाते हैं तो पेशेंट की जान बचाई जा सकती है।

सवाल: गोल्डन ऑवर में CPR देना कितना जरूरी है?
जवाब:
गोल्डन ऑवर में CPR देना इसलिए जरूरी है क्योंकि क्योंकि इसी एक घंटे में जब सही कदम नहीं उठाए जाते तो सबसे ज्यादा मौत होती हैं। यह हॉस्पिटल पहुंचने से पहले का समय होता है, जिसमें पेशेंट को CPR दे दिया जाए तो डॉक्टर के लिए पेशेंट की जान बचाना आसान हो जाता है।

इंडियन रिससिटेशन काउंसिल के साइंटिफिक डायरेक्टर डॉ राकेश गर्ग के अनुसार, मौजूदा डेटा को देखा जाए तो अगर पेशेंट को समय पर CPR दिया जाए तो 40-60% लोगों की जान बचाई जा सकती है।

सवाल: CPR आखिर होता क्या है?
जवाब:
CPR का फुलफॉर्म कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन है। यह एक लाइफ सेविंग टेक्निक है, जिसका इस्तेमाल हार्ट अटैक (दिल का दौरा) के दौरान किया जाता है। अगर किसी इंसान के दिल की धड़कने बंद हो जाए तो घर से अस्पताल जाने के दौरान CPR लाइफ सेविंग का काम करता है।

इंडियन रिससिटेशन काउंसिल (IRC) के चेयरपर्सन डॉ एसएससी चक्र राव के अनुसार भारत में

  • 2% से भी कम लोगों को CPR की जानकारी है।
  • देश में हर साल प्रति 1 लाख जनसंख्या पर लगभग 4280 लोगों को कार्डियक अरेस्ट होता है।
  • हर मिनट 112 लोग कार्डियक अरेस्ट से दम तोड़ रहे हैं।

इसलिए यह समझना जरूरी है कि आखिर CPR दिया कैसे जाता है…

सवाल: CPR कैसे दिया जाता है?
जवाब:
CPR देने के दो तरीके हैं।

  • पहला: जब यह पेशेंट को कोई दूसरे व्यक्ति से दिया जाता है।
  • दूसरा: मेडिकल इक्विपमेंट की मदद से पेशेंट को यह दिया जाता है।

बच्चों और बड़ों दोनों को CPR देने का तरीका अलग-अलग होता है।

सवाल: CPR देने की जरूरत कब पड़ती है?
जवाब:
CPR तब दिया जाता है जब…

  • कोई व्यक्ति अचानक बेहोश हो जाए और वह सांस न ले पा रहा हो।
  • किसी एक्सीडेंट के दौरान व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ हो।
  • अगर कोई व्यक्ति पानी में डूब गया हो तो उसे बाहर निकालने के बाद।

याद रखें: CPR देने के बाद पेशेंट को जल्द से जल्द अस्पताल लेकर जाएं।

सवाल: CPR की ट्रेनिंग कैसे दी जाती है?
जवाब:
इसे एक उदाहरण से समझते हैं-
अगर कोई व्यक्ति अचानक गिर जाए तो ऐसी स्थिति में सबसे पहले उसके सिर पर हाथ रखकर चेक करें कि कहीं खून तो नहीं बह रहा है। इसके बाद ABC का फॉर्मूला अपनाएं।
A यानी एयरवे: नाक के सामने हाथ रखकर सांस चेक करें। अगर सांस आ रही होगी तो आपको हाथ में गर्माहट महसूस होगी।
B यानी ब्रीदिंग: चेस्ट पर हाथ रखकर चेक करें, सांस आ रही है या नहीं। यहां एक और नियम है। पुरुष होने पर चेस्ट को चेक करना है। महिला होने पर एब्डोमिनल पर भी हाथ रखकर भी चेक कर सकते हैं।
C यानी सर्कुलेशन: लेटे हुए व्यक्ति के बाएं हाथ की नाड़ी को चेक करें। इस दौरान कलाई एकदम ढीली कर दें।
अब बेहोश व्यक्ति को थोड़ा जगाने की कोशिश करें। अगर वह किसी तरह का मूवमेंट नहीं कर रहा है और सांस नहीं आ रही है तो उसे CPR दें।

सवाल: CPR देने का क्या फायदा होता है?
जवाब:
इसकी मदद से पेशेंट को सांस लेने में सहायता मिलती है। CPR देने से हार्ट और ब्रेन में ब्लड सर्कुलेशन में मदद मिलती है। कई मामलों में CPR की सहायता से व्यक्ति की जान बच जाती है।

चलते-चलते

हार्ट अटैक आने पर आस-पास के लोग कौन सी गलतियां कर देते हैं। अगर ये गलतियां न हों तो किसी भी व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है-

  • घबराकर अस्पताल में कॉल करते हैं और पेशेंट के आसपास भीड़ लगाकर खड़े हो जाते हैं। CPR देने का ख्याल ही मन में नहीं आता है।
  • अगर किसी को CPR देने का मन में ख्याल आ भी जाए तो वो डर की वजह से पेशेंट को CPR नहीं देता है।

CPR देते वक्त कौन सी गलतियां कर देते हैं?

  • चेस्ट (छाती) को ठीक से नहीं दबाते हैं।
  • पेशेंट के मुंह से अपना मुंह अच्छे से लॉक नहीं करते हैं।
  • कोहनी को सीधा नहीं रखते हैं।
  • पेशेंट की बॉडी को सीधा नहीं रखते हैं।

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