पहले पति की मौत के बाद दूसरी शादी करने वाली महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला-
क्या है पूरा मामला?
आंध्रप्रदेश में एक महिला ने अपने पति की मौत के बाद दूसरी शादी कर ली। वो अपने बच्चे को दूसरे पति का सरनेम देना चाहती थी, लेकिन पहले पति के माता-पिता इस बात के विरोध में थे। जब महिला ने नाम बदलने की कोशिश की तो पहले पति के परिवार ने केस कर दिया। महिला ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की और कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चे का सरनेम न बदला जाए और जब भी रिकॉर्ड दिखाएं, तो बच्चे के बायोलॉजिकल पिता का ही नाम दिखाएं। अंत में महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
ये मामला बच्चे का है। इसलिए आज जरूरत की खबर में सबसे पहले बात करते हैं भारत में बच्चे से जुड़े सरनेम के कानून के बारे में-
सवाल- समझिए सरनेम होता क्या है?
जवाब- नाम के बाद वंश, जाति, गोत्र या उपनाम को सरनेम कहा जाता है। भारतीय सरनेम के पीछे कोई विज्ञान नहीं छुपा है। यहां ज्यादातर 6 तरह से सरनेम लिखे जाते हैं-
बच्चे के सरनेम से जुड़े कानूनी अधिकार-
सवाल- पति-पत्नी साथ रहते हैं और बच्चा पैदा होता है, तो क्या उसे मां का सरनेम मिल सकता है?
जवाब- जी हां उसे मां का सरनेम मिल सकता है, लेकिन अगर माता-पिता दोनों सहमति दें तभी बच्चे को अपनी मां का सरनेम मिल सकता है।
सवाल- पति-पत्नी का तलाक हो जाता है और बायोलॉजिकल पिता जिंदा है, तो बच्चे को किसका सरनेम मिलेगा?
जवाब- तलाक के बाद अगर कोर्ट की तरफ से ये डिसाइड हो जाता है कि बच्चे की कस्टडी मां के पास रहेगी तब मां खुद का सरनेम बच्चे को तब तक नहीं दे सकती, जब तक पिता की रजामंदी न हो। यानी पिता को इस बात से आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
सवाल- लिव-इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चे को किसका सरनेम मिलेगा?
जवाब- लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के दोनों बायोलॉजिकल पेरेंट्स (माता-पिता) की सहमति से ही सरनेम तय किया जा सकता है। वैसे सामाजिक तौर पर बच्चे को पिता का ही सरनेम दिया जाता है।
सवाल- विधवा पत्नी के बच्चे को किसका सरनेम मिल सकता है?
जवाब- महिला विधवा है तो वह अपनी मर्जी से सरनेम बच्चे को दे सकती है। इसमें किसी को भी आपत्ति करने का अधिकार नहीं होगा। जैसा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह तथ्य बिल्कुल साफ कर दिया है कि पिता के बाद मां ही बायोलॉजिकल पेरेंट है। इसलिए विधवा महिला अपना सरनेम अपने बच्चे को दे सकती हैं और साथ ही में आगे बच्चे का क्या सरनेम होगा यह भी वह खुद तय कर सकती है।
ऊपर लिखे केस को पढ़ने के बाद तो साफ है कि अब बायोलॉजिकल पिता की मौत के बाद मां दूसरी शादी कर रही है तो वो अपनी इच्छा से सौतेले पिता का सरनेम बच्चे को दे सकती है।
अब बात करते हैं शादी के बाद महिलाओं के सरनेम से जुड़े कानूनी अधिकारों के बारे में। इसके लिए नीचे दिए ग्राफिक्स को पढ़ें-
सवाल- अगर महिलाएं शादी के बाद सरनेम नहीं बदल रही हैं, तब उन्हें क्या करना जरूरी हो जाता है?
जवाब- शादी का रजिस्ट्रेशन जरूर करवाएं। इसके लिए भारत में 2 कानून हैं। आप दोनों में से किसी के जरिए भी अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करवा सकती हैं।
सवाल- अगर कोई महिला शादी के बाद सरनेम न बदले तो क्या उसे विदेश यात्रा करने पर परेशानी नहीं होगी?
जवाब- साल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम के दौरान ऐलान किया था कि महिलाओं को पासपोर्ट के लिए अपनी शादी या तलाक के डॉक्युमेंट्स दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। वो पूरी तरह स्वतंत्र होंगी कि वे,अपनी माता-पिता के नाम का इस्तेमाल करें।
चलते-चलते जान लीजिए
भारत के अलग-अलग राज्यों में सरनेम की परंपराएं-
आमतौर पर किसी के भी नाम के दो हिस्से होते हैं। फर्स्ट नेम वो नाम होता है जो जन्म के वक्त मिलता है (जैसे- नरेंद्र), लास्ट नेम (यानी सरनेम) जो आपके परिवार से मिलता है (जैसे- मोदी)। लड़का हो या लड़की, दोनों के नाम इसी तरह से तय होते थे।
ये जरूर होता था कि शादी के बाद लड़की का लास्ट नेम पिता के परिवार की जगह पति के परिवार का हो जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ करियर, अपनी पहचान और विचारधारा के चलते कई महिलाओं ने सरनेम बदलना बंद कर दिया। जैसे अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण ने शादी के बाद भी अपने सरनेम नहीं बदले हैं।
कई महिलाओं ने एक हाईब्रिड सिस्टम को अपनाया। जिसमें वो पिता और पति दोनों के परिवार का सरनेम इस्तेमाल करती हैं। जैसे- प्रियंका गांधी वाड्रा, हेलेरी रॉडहम क्लिंटन, सोनम कपूर अहूजा। भारत में कुछ अपवाद ऐसे भी हैं जो बिना सरनेम के हैं। जैसे-प्राण, धर्मेंद्र, श्रीदेवी। दक्षिण के राज्यों में एक और चलन है। जिसमें महिलाएं फर्स्ट नेम की जगह पिता के नाम का पहला अक्षर इस्तेमाल करती हैं और लास्ट नेम की जगह मूल नाम होता है। जैसे- जे जयललिता के नाम में जे- उनके पिता जयराम के नाम का पहला अक्षर है। एक चलन और है। इसमें महिलाएं शादी के बाद अपना लास्ट नेम हटाकर पति का नाम और सरनेम दोनों लगाने लगती हैं। जैसे- स्मृति मल्होत्रा शादी के बाद स्मृति जुबेन ईरानी बन गईं।
पुरुषों के सरनेम का चलन
पुरुषों के नाम और सरनेम के भी कई तरह के चलन हैं। बिहार के CM नीतीश कुमार या केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद इसी का हिस्सा हैं। बिहार में राय, सिन्हा, सिंह जैसे सरनेम भी एक से ज्यादा जातियां इस्तेमाल करती हैं। कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि जेपी आंदोलन के वक्त UP और बिहार में इस तरह के नाम रखने का चलन शुरू हुआ। इसके पीछे जातिवादी भेदभाव मिटाने की मंशा थी। हालांकि, करीब 50 साल बाद भी इस तरह के भेद खत्म नहीं हुए हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में नाम और सरनेम के बीच पिता या पति का नाम इस्तेमाल करने का भी चलन है। जैसे- सचिन रमेश तेंदुलकर। कुछ जगहों पर सरनेम की जगह गांव, जिले या कस्बे का नाम इस्तेमाल करने का भी चलन है। जैसे- अदार पूनावाला, शहजाद पूनावाला, पेरिस हिल्टन, ब्रूकलिन बेकहम, ओम प्रकाश चौटाला। देश-दुनिया में ऐसे नामों का भी चलन है जिसमें सरनेम उस वक्ति के परिवारिक पेशे से जुड़ा होता है। जैसे- मार्क टेलर, मार्क बुचर।
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