जरूरत की खबरन्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है मिर्गी, भूत का चक्कर नहीं:झाड़-फूंक से बचें, नींद की कमी भी एक कारण; इलाज ही उपाय

2 महीने पहले
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26 मार्च को वर्ल्ड पर्पल डे मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे एक ही मकसद है, मिर्गी यानी एपिलेप्सी के प्रति दुनियाभर में अवेयरनेस फैलाना।

लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 5 करोड़ लोग मिर्गी से जूझ रहे हैं। इनमें से लगभग एक से 1.2 करोड़ लोग भारतीय हैं।

बच्चों के जन्म के समय मस्तिष्क यानी ब्रेन में पर्याप्त रूप से ऑक्सीजन सप्लाई न हो पाने की वजह से भी बचपन से ही मिर्गी की शिकायत होती है।

आज जरूरत की खबर में बात मिर्गी होने की वजह पर करते हैं। मिर्गी की बीमारी को लेकर जो भी मिथ यानी भ्रांतियां हैं, उसकी सच्चाई भी जानते हैं…

आज की स्टोरी के एक्सपर्ट-

  • डॉ. रोहित जोशी, पीडियाट्रिक्स, बंसल हॉस्पिटल, भोपाल
  • डॉ. आत्मा राम बंसल, मिर्गी एक्सपर्ट एंड न्यूरोलॉजिस्ट, मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम
  • डॉ. राजीव गुप्ता, सीके बिरला हॉस्पिटल, सीनियर कंसल्टेंट, गुरुग्राम

सवाल: मिर्गी क्या है?
जवाब:
ये दिमाग से जुड़ी एक तरह की बीमारी है। मेडिकल साइंस में इसके दौरे को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर कहा जाता है।

सवाल: मिर्गी के दौरे अगर किसी व्यक्ति को आते हैं, तो उसमें कैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं?
जवाब:
हम यहां पर कुछ कॉमन लक्षण बता रहे हैं-

  • अचानक गुस्सा आना
  • कंफ्यूजन फील होना
  • डर
  • एंग्जाइटी
  • अचानक खड़े-खड़े गिर जाना
  • कुछ समय के लिए कुछ भी याद नहीं रहना
  • चक्कर आना
  • लगातार ताली बजाना या हाथ रगड़ना
  • चेहरे, गर्दन और हाथ की मांसपेशियों में बार-बार झटके आना

सवाल: मिर्गी होने का कारण क्या है?
जवाब:
मिर्गी होने के कई कारण है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। इसके प्रमुख कारण हैं…

  • जेनेटिक
  • सिर पर गंभीर चोट
  • ब्रेन ट्यूमर या सिस्ट
  • अल्जाइमर
  • एड्स

सवाल: इसका मतलब यह जन्मजात बीमारी नहीं है, क्या यह कभी भी हो सकता है?
जवाब:
यह सिर्फ जन्मजात बीमारी नहीं है। जैसे कि बताया गया है कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। जब ब्रेन में नर्व सेल या कोशिका की एक्टिविटी डिस्टर्ब हो जाती है तभी मिर्गी के दौरे पड़ते हैं।

जन्मजात होने के साथ-साथ यह ब्रेन इंजरी, स्ट्रोक और ट्रॉमा की वजह से कभी भी किसी को हो सकता है।

सवाल: मिर्गी का इलाज क्या संभव है?
जवाब:
हां, इसका इलाज है। अगर तीन साल तक लगातार इलाज करवाया जाए तब 70% से 75% तक बच्चों में इसके ट्रीटमेंट का असर दिखता है।

बड़ों को भी समय पर इलाज मिल जाए तो इस पर काबू पाना मुश्किल काम नहीं है। जिन लोगों का इलाज पूरी तरह से नहीं हो पाता, उनकी बीमारी भी कंट्रोल में रहती है अगर वो प्रिकॉशन रखें।

वहीं 20% से 30% लोगों को इसकी दवाई ताउम्र खानी पड़ती है।

सवाल: डॉक्टर मिर्गी के दौरे की पहचान कैसे करते हैं?
जवाब:
कुछ जांच करने से मिर्गी की पहचान डॉक्टर आसानी से कर सकते हैं। जैसे-

  • ब्लड टेस्ट
  • इलेक्ट्रोइनसेफलोग्राम यानी EEG
  • इमेजिंग टेस्ट जैसे-सीटी स्कैन, एमआरआई

सवाल: गांव के लोग मिर्गी को छूआछूत से जोड़कर देखते हैं, टोने-टोटके से इसे ठीक करने की कोशिश करते हैं, इससे बीमारी ठीक हो सकती है या नहीं?
जवाब:
मेडिकल साइंस छूआछूत और टोने-टोटके को बिल्कुल भी नहीं मानता है। इससे मरीज की हालत ठीक होने के बजाय और बिगड़ सकती है।

इसलिए झाड़-फूंक या टोना-टोटका के चक्कर में न पड़ें। दिमाग के डॉक्टर से कॉन्टैक्ट करेंं। सही इलाज करवाएं।

सवाल: अक्सर कहा जाता है खुले में शौच करने से भी मिर्गी की बीमारी हो सकती है, ये बात कितनी सच है?
जवाब:
दरअसल, बहुत सारे लोगों में मिर्गी होने की वजह ब्रेन में कीड़ा होना भी है। जिसे न्यूरो सिस्टीस सरकोसिस के नाम से जानते हैं। यह खुले में शौच करने के कारण होता है।

खुले में शौच करने से पेट में मौजूद टेप वॉर्म यानी कृमि बाहर आ जाता है। यह खेतों में मौजूद सब्जी या पानी में मिल जाता है।

जब ये सब्जियां आपके घर पर जाती हैं और इसे अच्छी तरह धोए बैगर हम पकाते हैं या फिर बाजार में बिना धोए मोमोज और बर्गर जैसी चीजों में इसको यूज किया जाता है, तो इससे टेपवर्म पेट से होकर ब्रेन में पहुंचता है, जो मिर्गी की वजह बनता है। यह इतने छोटे होते हैं कि खुली आंखों से देख पाना संभव नहीं है।

सवाल: इस बीमारी में मेडिसिन कितने दिनों तक खानी पड़ सकती है?
जवाब:
ये मरीज की बीमारी पर डिपेंड करता है। जरूरी नहीं कि हर मरीज की मेडिसिन 3-5 साल तक खाली पड़े।

कुछ मरीजों को 6 महीने, 1 साल या फिर 1 हफ्ते ही मेडिसिन खाने की जरूरत पड़ती है। वही कुछ को जिंदगी भर मेडिसिन खाने की जरूरत पड़ सकती है।

सवाल: अगर मिर्गी की दवाइयों की खुराक भूल गए है तो इससे क्या नुकसान होगा?
जवाब:
वैसे तो हर दिन निर्धारित यानी तय समय पर ही दवाई खानी चाहिए। अगर एक खुराक भूल गए हैं, तो याद आने पर उसी समय देना चाहिए। यदि एक से ज्यादा खुराक भूल गए हैं, तो डॉक्टर की सलाह लें।

खबर में आगे बढ़ने से पहले क्यूआरजी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नजीब उर रहमान क्या कहते हैं, जान लीजिए-

  • मिर्गी से जुड़ी गलत जानकारियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
  • अच्छे डॉक्टर्स से इसका इलाज करवाना चाहिए।
  • मरीज को अपनी इस बीमारी को फैमिली और डॉक्टर से नहीं छिपाना चाहिए।
  • अच्छे से इलाज लेने पर इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है।

सवाल: अगर किसी को मिर्गी का दौरा पड़े, तो आसपास के लोग, फैमिली या फ्रेंड्स क्या करें और क्या नहीं ?
जवाब: एम्स के पूर्व डायरेक्टर,
डॉ. प्रभात कुमार सिंह के मुताबिक ऐसे करें मरीज की मदद-

  • गले के कॉलर को ढीला कर मरीज को बाएं करवट में लिटा दें।
  • जबरदस्ती मरीज के शरीर को पकड़ने या फिर दबाने से बचें।
  • मरीज को कुछ भी खिलाएं-पिलाएं नहीं।
  • दौरा शुरू होने का और खत्म होने का समय नोट कर लें।
  • रिस्की चीजों जैसे आग, फर्नीचर के नुकीले कोनों से दूर रखें।
  • सिर के नीचे मुलायम चीजे रखें, जिससे सिर फर्श से टकराए नहीं।
  • मुंह या नाक से आने वाले पानी या झाग को साफ करते रहें।
  • जूता सुंघाना या फिर हाथ में लोहा पकड़वाने से बचें।

सवाल: दौरा रोकने के लिए घर पर ही रहना चाहिए या फिर हॉस्पिटल ले जाना चाहिए?
जवाब:
ध्यान रहे कि ज्यादातर दौरे कुछ सेकेंड में या मिनट में बिना इलाज के ही रूक जाते हैं। अगर दौरा 4-5 मिनट से ज्यादा समय तक रहे, तब मरीज को फौरन हॉस्पिटल ले जाना चाहिए।

अब बच्चों में मिग्री की बीमारी से जुड़े सवालों का जवाब जानते हैं..

बच्चे में मिर्गी हाेने के प्रमुख कारण

  • जन्म में कुछ कठिनाई
  • टॉक्सिन की कमी से
  • ब्रेन में विकार
  • कुछ जेनेटिक कंडीशन
  • ऊर्जा बनाने का प्रोसेस ब्रेन कुछ इस तरह से होता है कि एक्स्ट्रा डिस्चार्ज होते ही बच्चे को मिर्गी के अटैक आने लगता है।

जन्म से लेकर 17 साल की उम्र तक दो तरह से मिग्री हो सकती है…

  1. फोकल एपिलेप्सी या आंशिक
  2. जर्नलाइज्ड एपिलेप्सी या सामान्य

फोकल एपिलेप्सी के प्रमुख लक्षण

  • आंखें तिरछी हो जाती है।
  • शरीर लगातार हिलता रहता है।
  • होंठ कांपते हैं
  • शरीर के एक साइड अकड़न
  • शरीर के एक साइड झटके

जर्नलाइस्ड एपिलेप्सी में

  • चारों हाथ-पैर में अकड़न
  • एक टक सीधे देखते रहना
  • आंखें ऊपर कर लेना
  • झटके आना

स्कूल में बच्चे जवाब नहीं देते हैं, सिर्फ सुनते रहते हैं, कई बार ये भी एपिलेप्सी के लक्षण है।

सवाल: क्या बच्चों को मिर्गी के दवाइयों के कुछ साइड इफेक्ट्स होता हैं?
जवाब:
सभी दवाइयों के अलग-अलग इफेक्ट होते हैं लेकिन वे सभी मरीज में नहीं देखे जाते। आमतौर पर नींद ज्यादा आती है, जो समय के साथ ठीक हो जाती है।

यदि बच्चे की स्किन पर लाल निशान, मुंह में छाले, पीलिया, बेहोश होना, स्वभाव में बदलाव, बुद्धि के विकास में कमी, उल्टी या संतुलन में तकलीफ होती है, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।

सवाल: दवाई बंद करने पर बच्चा ठीक रहेगा इसकी क्या संभावना है?
जवाब
: 70 प्रतिशत बच्चे दवाई का कोर्स पूरा करने के बाद ठीक रहते हैं। यदि बच्चे को दिमागी तकलीफ हो, फैमिली हिस्ट्री में मिर्गी हो, ई.ई.जी या दिमाग का स्केन असामान्य हो या कुछ मुश्किल प्रकार की मिर्गी हो तो दौरे फिर से आने की संभावना होती है। सामान्यतः दवा बंद करने के शुरुआती 6 महीनों में दौरे फिर से आने की संभावना होती है।

चलिए अब मिर्गी से जुड़े कुछ मिथ की सच्चाई भी बता देते हैं-

मिथ नंबर 1
जिन लोगों को मिर्गी का दौरा पड़ता है, वो एक तरह से पागल होते हैं।

सच्चाई: ऐसा नहीं है। मिर्गी के मरीज पागल नहीं होते हैं। यह न्यूरो से जुड़ी बीमारी होती है। जिसका सही इलाज मिलने पर मरीज नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं।

मिथ नंबर 2

मिर्गी ठीक होने वाली बीमारी नहीं है, इसलिए जिस लड़की को मिर्गी आए, उससे शादी नहीं करनी चाहिए।
सच्चाई: ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मिर्गी का इलाज संभव है और ये ठीक होने वाली बीमारी है।

मिथ नंबर 3
मिर्गी का मरीज ठीक हो भी जाए, तब भी कई तरह दिक्कतें आती रहती हैं।

सच्चाई: बिल्कुल नहीं। मिर्गी का मरीज नॉर्मल लाइफ जी सकता है। बस उसे ड्राइविंग, स्विमिंग या एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसी कुछ चीजों से परहेज करना पड़ेगा।

मिथ नंबर 4

जब किसी को मिर्गी का दौरा पड़े, तो मरीज को जोर से पकड़ लेना चाहिए।
सच्चाई:
ऐसा न करें। मरीज को कभी भी दबाना नहीं चाहिए। बल्कि उसके आसपास से कोई भी खतरनाक सामान को हटा दें। उसके मुंह को सीधा रखें, कपड़े ढीले कर दें, अगर चश्मा पहना है, तो उसे हटा दें। उसमें मुंह में कुछ भी डालने की कोशिश न करें। जल्द से जल्द अस्पताल ले जाएं।

मिथ नंबर-5
जिन लड़कियों या महिलाओं को मिर्गी का दौरा पड़ता है, वो कभी मां बन सकती हैं।

सच्चाई: बिल्कुल, बन सकती हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी के पहले मिर्गी को कंट्रोल कर लिया जाए, तो प्रेग्नेंसी में किसी तरह की दिक्कत नहीं होती है। प्रेग्नेंसी के सालभर पहले से ही सही दवाइयां शुरू कर देने से बच्चे पर भी बुरा असर नहीं पड़ता है। आज ऐसी दवाएं उपलब्ध है, जिनसे गर्भ के समय मां और बच्चे को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है।

चलते-चलते

अब आप सोच रहे होंगे कि मिर्गी की जागरूकता फैलाने वाले दिन का नाम पर्पल डे क्यों रखा गया…

कैसिडी मेगन कैनेडा से हैं। उन्हें भी मिर्गी के दौरे पड़ते थे। जब वे 9 साल के थे तब उन्होंने मिर्गी से जुड़े अपने संघर्षों से प्रेरित होकर वर्ष 2008 में 'पर्पल डे' मनाने के बारे में सोचा।

मेगन चाहते थे कि एक दिन उनके जैसे लोगों के नाम पर रहे और उस दिन वे मिर्गी से जुड़े मिथकों को दूर कर लोगों को इसका सामना करना सिखाएं।

26 मार्च 2008 को पहली बार बैगनी दिवस यानी पर्पल डे आयोजित किया गया। इस दिन लोगों को बैगनी रंग का कपड़ा पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

मेगन ने अपनी इस की सोच को दुनिया के हर हिस्से तक पहुंचाने के लिए 2008 में नोवा स्कोटिया के एपिलेप्सी एसोसिएशन के सामने प्रस्ताव रखा। उनके विचार को स्वीकारा गया और 26 मार्च ​​​​​​एपिलेप्सी कैंपेन के लिए 'पर्पल डे' के नाम से जाना जाने लगा।