बजट-2023 में मोटा अनाज:मोदी और सीतारमण के लिए क्यों है यह सुपरफूड; मास्टरशेफ रणबीर बरार से सीखें इसकी रेसिपी

4 महीने पहले
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बजट भाषण में निर्मला सीतारमण ने मिलेट्स यानी मोटे अनाज को श्रीअन्न नाम दिया। उसके उत्पादन को बढ़ाने की बात कही। इसके लिए श्रीअन्न योजना शुरू करने का फैसला लिया। साथ ही इंस्‍टीट्यूट ऑफ मिलेट्स की स्थापना का ऐलान किया, जो उत्‍पादन को बढ़ाने की संभावनाओं पर काम करेगा और किसानों को मोटा अनाज उगाने के लिए ट्रेंड भी करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार 2018 में देश की हर थाली में मिलेट्स शामिल होने का अभियान चलाया था। भारत के प्रपोजल के बाद यूनाइटेड नेशन (UN) ने साल 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर घोषित किया है।

आखिर क्या है मिलेट्स, इसका फायदा क्या है और क्या इसे किसी भी बीमारी में खाया जा सकता है, यह सब जानेंगे जरूरत की खबर में…

सवाल: मिलेट्स किसे कहते हैं?
जवाब: मिलेट्स उस मोटे अनाज को कहते हैं जो पांच हजार से अधिक वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप में उगाया और खाया जा रहा है। ये काफी हेल्दी होता है। इसे गरीबों का अनाज कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षों से दुनियाभर में इसके महत्त्व की चर्चा हो रही है।

मिलेट्स को दो हिस्सों में बांटा गया है…

पहला: इसमें वो मोटे दाने वाले अनाज आते हैं जिन्हें कटाई के बाद प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं होती। सफाई के बाद ये खाने के लिए तैयार रहते हैं। इनमें रागी, ज्वार और बाजरा शामिल हैं।

दूसरा: इनमें छोटे दाने वाले अनाज होते हैं। इसके बीज काफी छोटे होते हैं, जिन्हें हटाना पड़ता है। बीज हटाने के बाद ही ये खाने लायक होते हैं। पहले ये काम हाथ से होता था, आज इसके लिए मशीन मौजूद है। इनमें कोदो, फ्रॉक्सटेल मिलेट्स यानी कंगनी शामिल है।

सवाल: मिलेट्स यानी मोटे अनाज को सुपर फूड क्यों कहा जाता है?
जवाब: दरअसल मिलेट्स में पोषक तत्व ज्यादा होते हैं। गेहूं और धान की फसलों के मुकाबले इसमें सॉल्युबल फाइबर के साथ ही कैल्शियम और आयरन की मात्रा अधिक होती है। रागी यानी मंडुवा को ही लें, तो इसके प्रति 100 ग्राम में 364 मिलिग्राम कैल्शियम की मात्रा होती है।

इसके साथ ही बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटैशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि से ये अनाज भरपूर होते हैं। इसलिए इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है।

सवाल: मिलेट्स पचने में क्यों आसान है?
जवाब: इसकी वजह है इसमें मौजूद फाइबर यानी रेशा। यही फाइबर सॉल्युबल और नॉन सॉल्युबल दोनों ही तरह से पाचन तंत्र यानी डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए फायदेमंद है। सॉल्युबल फाइबर पेट में मौजूद नेचुरल बैक्टीरिया की मदद करते हैं जिससे पाचन बेहतर होता है। नॉन सॉल्युबल फाइबर पाचन तंत्र से मल को जमाकर उसे आसानी से शरीर के बाहर निकालने में मदद करते हैं। इस तरह मिलेट्स खाने वाले को कब्ज की समस्या नहीं होती।

सवाल: इसका मतलब गेंहू सुपर फूड नहीं है, इसे खाने से नुकसान होगा?
जवाब: गेंहू में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसके साथ गेंहू में ग्लूटेन भी होता है। विलियम डेविस की किताब है 'वीट बेली'। ये अमरीकी वैज्ञानिकों की रिसर्च के आधार पर लिखी गई। इसमें बताया गया कि गेहूं में पाया जाने वाला ग्लूटेन डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज और मेंटल हेल्थ के लिए जिम्मेदार है। इसकी वजह से मोटापा भी होता है।

ज्यादा गेंहू खाने से ये समस्याएं हो सकती हैं

  • गेंहू का महीन आटा आसानी से नहीं पचता।
  • इसमें मौजूद ग्लूटेन से मोटापा और एलर्जी होगी।
  • यह पचने में आसान नहीं होता इस वजह से भारीपन और पाचन संबंधित समस्या हो सकती है।

सवाल: तो क्या गेंहू खाना ही नहीं चाहिए, कोई तो सेफ तरीका होगा इसे खाने का?
जवाब: चोकर वाले गेंहू को खाने में करें शामिल। गेंहू के आटे में मक्का, ज्वार और चने के आटे को मिलाकार खाएं। महीन गेंहू का आटा यानी मैदा खाने से परहेज करें।

मिलेट्स के 7 फायदे को याद कर आज ही थाली में करें शामिल

  • हड्‌डी, दांत और बाल को मजूबती देता है।
  • बैड कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है।
  • इससे मेटाबॉलिज्म बढ़ता है जिससे वजन तेजी से कम होता है।
  • गैस्ट्रिक अल्सर या कोलन कैंसर के रिस्क को कम करता है।
  • इससे पाचन तंत्र सही रहता है, कब्ज और एसिडिटी की प्रॉब्लम नहीं होती।
  • ब्लड प्रेशर और टाइप-2 डायबिटीज को कंट्रोल करता है।
  • हार्ट रिलेटेड प्रॉब्लम से बचने में मदद करता है।

सवाल: भारतीय मिलेट्स क्या दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है?
जवाब: हां, बिल्कुल। हमारे देश से सबसे ज्यादा बाजरा, रागी, कनेरी, ज्वार और कुट्‌टू एक्सपोर्ट किया जाता है। हम इन्हें अमेरिका, UAE, ब्रिटेन, नेपाल, सऊदी अरब, यमन, लीबिया, ट्यूनीशिया, ओमान और मिस्र सप्लाई करते हैं।

सवाल: अपनी थाली में मिलेट्स को किस तरह शामिल कर सकते हैं?
जवाब: इनसे कुछ हेल्दी रेसिपी बना सकते हैं। अक्सर लोग व्रत-उपवास में इनके व्यंजन बनाते हैं, अब जब डेली इन्हें थाली में शामिल करने की बात की जा रही है तो लोगों को ये काम मुश्किल भरा लग रहा है।

मास्टरशेफ रणबीर बरार से मिलेट्स की रेसिपी सीखने के लिए नीचे लगे क्रिएटिव को पढ़ें और दूसरों को शेयर भी करें...

देश और मिलेट्स की खेती

  • दुनियाभर में पैदा होने वाले मोटे अनाज में 41 प्रतिशत तक भारत में पैदा होता है।
  • साल 2021-22 में मोटे अनाजों को एक्सपोर्ट करने में देश ने 8.02 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है।
  • साल 2022 में 159,332.16 मीट्रिक टन मोटे अनाज का निर्यात किया गया। साल 2021 में यह आंकड़ा 147,501.08 मीट्रिक टन था। सोर्स- DGCIS

हमारे एक्सपर्ट हैं- डॉ. सुरेखा किशोर(एम्स, दिल्ली), न्यूट्रिशनिस्ट, अंजू विश्वकर्मा (भोपाल)

चलते-चलते

डॉ. खादर वली हैं भारत के मिलेटमैन

डॉ. खादर वली साइंसटिस्ट और न्यूट्रिशन एक्सपर्ट हैं। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के प्रोड्डटुर गांव में हुआ था। उन्होंने हमेशा ही समाज को सही खानपान के लिए जागरूक करने का सपना देखा। इस सपने को पूरा करने के लिए वे अकेले ही निकल पड़े।

अमेरिका की एक कंपनी में उनकी नौकरी लगी। ज्‍वाइन करने से पहले उन्हें मेडकिल चेकअप कराना था। जब वे अस्पताल गए तो एक छह साल की बच्ची को गुमसुम देखा। उस बच्ची की मां से पता चला कि उस बच्ची को पीरियड्स आ गए है। यह सुनकर वह बहुत परेशान हो उठे।

वो उस बच्ची के डॉक्टर से बात करना चाहते थे। डॉक्‍टर ने बात करने से मना कर दिया। उन्‍हें अपने काम से काम रखने की सलाह दे डाली। इस बात ने उन्‍हें झकझोंर दिया। वे सदमे में रहे, उन्‍हें अपने वैज्ञानिक होने का कोई औचित्‍य समझ नहीं आ रहा था।

उन्‍होंने पाया कि दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गाय, भैसों, बकरियों को आक्‍सीटोसिन (oxytocin) या एस्‍ट्रोजन (estrogen) स्‍टेरॉयड दि‍ए जा रहे हैं। स्‍टेरॉयड के अंश दूध से इंसान के खून में जमा हो रहे हैं। इसी वजह से बच्ची का हार्मोन बिगड़ा और उसे ये परेशानी हुई।

इसके बाद से डॉ. वली ने बीमारी बढ़ने के कारणों की खोज शुरू की। लोगों को पैक्ड फूड से दूर रहने और ऑर्गेनिक खाने की सलाह देने लगे। वो लोगों को समझाते कि पैसे के लालच में अधिक उत्पादन हो रहा है और इस वजह से खाने-पीने की चीजों में मिलावट हो रही है।

इसी दौरान रिसर्च करते वक्त उन्हें मिलेट के बारे में पता चला। जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर था। लोग खाते नहीं थे तो इसकी खेती भी कम होती थी।

वो अमेरिका छोड़ मैसूर लौट आए। 8 एकड़ जमीन खरीद मिलेट की खेती शुरू की। यह काम उनके लिए आसान नहीं था। जमीन उपजाऊ नहीं थी। दूसरे किसानों ने उन्हें समझाया कि यदि हम इन बीजों को 6 महीने से 3 साल के भीतर अंकुरित नहीं करते तो वह अपनी अंकुरित क्षमता को खो देते हैं। तब हम दोबारा इनकी बुवाई न‍हीं कर सकते। इसी कारण हमने अपनी कई महत्‍वपूर्ण वनस्‍पतियों को आज खो दिया है।

डॉ. वली ने हार नहीं मानी और मिट्‌टी की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए ‘कोडू चैतन्य द्रव्य’ बनाया। इस तरह अपने प्रयास से वो मिलेट उगाने में सफल हुए।

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