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वैसे तो कोरोना का बुरा असर सब पर पड़ा है, लेकिन बच्चों पर इसका कुछ ज्यादा ही नकारात्मक असर हुआ है। उनकी मानसिकता और व्यवहार में कई तरह के बदलाव देखे गए हैं। एक स्टडी के मुताबिक बच्चों में मेनर्स की कमी आ रही है और बेसिक एटिकेट्स की तरफ रुझान कम हो रहा है।
हैदराबाद की साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रज्ञा रश्मि कहती हैं कि आज के दौरे में हम एक ग्लोबल मार्केट में हैं, जहां स्किल्स के साथ-साथ व्यक्तित्व भी मैटर करता है। व्यक्तित्व बनाने में बचपन की सबसे अहम भूमिका होती है, ऐसे में इस दौरान बच्चों को बेहतर गाइडेंस की सख्त जरूरत होती है।
डॉक्टर प्रज्ञा कहती हैं कि हमें यह समझना होगा कि ये बातें साइकोलॉजी से जुड़ी हुई हैं। बच्चों को डराने-धमकाने से काम नहीं चलेगा, पेरेंट्स या बड़े होने के तौर पर हमें सबसे पहले उन्हें ऑब्जर्व करना चाहिए और फिर उस हिसाब से ट्रीट करना चाहिए।
क्या होता है मैनर?
5 साल से ऊपर के बच्चे लिमिट टेस्ट करते हैं
साइकोलॉजिस्ट कॉल बर्ग ने एक थ्योरी दी है, जो पुश थ्योरी के नाम से जानी जाती है। इसके मुताबिक जब बच्चा पांच साल का हो जाता है तो वह खुद की लिमिट टेस्ट करता है। यानी जो चीज उसे मना की जाएगी, उसे वह एक बार जरूर करना चाहेगा।
इसी तरह से वह अपनी लिमिट को ज्यादा से ज्यादा पुश करता जाता है। ऐसी स्थिति में कई पेरेंट्स बच्चों को मारने या डांटने पर विश्वास करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बच्चा मान जाएगा, जबकि यह बच्चे की गलती नहीं, बल्कि उसका नेचर है। इस स्टेज में उसकी क्यूरोसिटी सॉल्व करना होता है। इससे उसके पुश करने या लिमिट टेस्ट करने की आदत को छुड़ाया जा सकता है।
सही-गलत में फर्क जानना बच्चों के विकास में सबसे अहम
डॉ. प्रज्ञा कहती हैं कि जितना जल्दी बच्चा सही-गलत को पहचानना सीख जाएगा, उतना ही बेहतर होगा। 8 साल में यदि बच्चे को इस बात का बोध नहीं है तो उसके व्यक्तित्व पर असर जरूर पड़ेगा। बचपन के व्यक्तित्व के आधार पर उसे दूसरे बच्चे, टीचर और आसपास के लोग ट्रीट करते हैं।
लोग बच्चे के साथ कैसे पेश आ रहे हैं? यह भी एक अहम फैक्टर है, यह बात भी उनके व्यक्तित्व पर असर डालती है। यानी अगर एक बार बच्चे के व्यक्तित्व में कमी आ गई तो फिर उसे बदलना काफी मुश्किल होता है। इसलिए उसे बचपन में जितना ज्यादा हो सके सही-गलत में फर्क करना सिखा दें।
बेसिक एटीकेट्स सीखने के लिए 4 सबसे जरूरी बातें
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