शादी का प्रपोजल रिजेक्ट, किया सुसाइड:वीजा-जॉब रिजेक्शन के बाद भी लोग उठाते हैं ये कदम; क्या रिजेक्शन हैंडिल करना इतना मुश्किल

5 महीने पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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असम के 27 साल के व्यक्ति ने फेसबुक लाइव कर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसकी गर्लफ्रेंड ने उसके शादी के प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया था। टीवी एक्ट्रेस तुनीषा के केस में भी प्यार में मिले रिजेक्शन का अनुमान लगाया जा रहा है।
रिजेक्शन। यह एक ऐसा शब्द है जो कुछ लोगों को पूरी तरह से तोड़ देता है। लोग खुद को हारा और नकारा समझने लगते हैं। ऐसा सिर्फ रोमांटिक रिलेशनशिप में ही नहीं होता बल्कि कॉम्पिटेटिव एग्जाम, जॉब इंटरव्यू, शादी के लिए रिश्ते में भी अक्सर होता है। इससे लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं और सुसाइड तक कर लेते हैं।
आज जरूरत की खबर में रिजेक्शन पर बात करते हैं।इसे हैंडिल करने का तरीका सीखते हैं।

आज के हमारे एक्सपर्ट हैं…

  • डॉ. कामना छिब्बर, साइकेट्रिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुड़गांव
  • डॉ. प्रितेश गौतम, साइकेट्रिस्ट, भोपाल

पढ़ें, रिजेक्शन के 2 रियल केस, जिनका अंत हुआ मौत

पहला केस
गुजरात के साहिल पटेल को पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना था। उसने वीजा अप्लाई किया था जो किसी वजह से रिजेक्ट हो गया। इसके बाद वो मेंटली परेशान था, उसने सुसाइड कर लिया।

दूसरा केस
उत्तराखंड का कमलेश गिरी 21 साल का था। वो सेना की अग्निवीर भर्ती में असफल हो गया। उसने जहर खाकर जान दे दी। आत्महत्या से पहले उसने सोशल मीडिया पर खुद को हताश बताते हुए कई वीडियो पोस्ट किए थे।

सबसे पहले समझें कि बचपन से बड़े होने तक हम किन-किन बातों को रिजेक्शन समझते हैं, जैसे…

  • आपका कोई दोस्त आपके साथ घूमने जाने से मना कर दें।
  • क्लासमेट की बर्थडे पार्टी का इन्विटेशन सबको मिला बस आपको नहीं।
  • टीचर ने इस बार आपकी जगह किसी दूसरे बच्चे को क्लास मॉनिटर बना दिया है।
  • आपका कोई खास दोस्त आपके मैसेज को देखें और रिप्लाई न करें।
  • आपने कोई ट्रिप प्लान की और आपके दोस्तों और रिश्तेदारों ने इस प्लान को रिजेक्ट कर दिया।
  • लंबे समय तक जिस इंसान के साथ आप रिलेशनशिप में थे वो किसी दूसरे के लिए आपको छोड़ दे।
  • आप कोई इंटरव्यू देने गए, सब कुछ अच्छा था इसके बावजूद आपका सिलेक्शन नहीं हुआ। आप रिजेक्ट हो गए।

सवाल: रिजेक्शन क्यों नहीं झेल पाते लोग?
जवाब:
जब भी हमें कोई रिजेक्शन मिलता है तो…

  • दिमाग का हिस्सा अमिग्डाला एक्टिवेट हो जाता है। यही हमें दर्द महसूस कराने के लिए जिम्मेदार है।
  • इसी वजह से रिजेक्शन मिलने से हमें काफी तकलीफ होती है।
  • रिजेक्शन से मूड खराब होता है और आत्मविश्वास को ठेस पहुंचती है।
  • ज्यादातर लोग खुद में ही कमियां ढूंढने लगते है, खुद को दोषी मान बैठते हैं।
  • मन में नकारात्मक बातें और सोच आ जाती है।
  • हम खुद को सबसे दूर एक सोच के बॉक्स में फिट कर लेते हैं।
  • खुद को एक बॉक्स में फिट रखने वाले लोगों को रिजेक्शन की तकलीफ ज्यादा महसूस होती है।

सवाल: यह हमें दर्द क्यों देता है?
जवाब:
इवोल्यूशनरी साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि ऐसा हमेशा से होता आ रहा है। रिजेक्शन के बाद खराब महसूस करना तब शुरू हुआ जब इंसान जंगलों में शिकार करता था। यह वो समय था जब इंसान के लिए अकेले जीना नामुमकिन था।
किसी इंसान को ट्राइब यानी जनजाति से अलग करने के आदेश का मतलब जंगली जानवरों के हाथों मारा जाना था। ऐसे में इंसान में एक वॉर्निंग मेकैनिज्म डेवलप हुआ, जो उसे ट्राइब से निकाले जाने से पहले अलर्ट करता था। ट्राइब के रिजेक्शन से जिन लोगों को ज्यादा तकलीफ हुई उन्होंने खुद में बदलाव किए और ट्राइब में रुके रहे। ऐसे लोगों के जीन आगे आने वाली जेनरेशन में ट्रांसफर हुए जिसकी वजह से आज हम सब रिजेक्शन की तकलीफ को झेलते हैं।

सवाल: क्या डिप्रेशन की एक वजह रिजेक्शन भी है?
जवाब:
हां, बिल्कुल। डिप्रेशन की एक वजह रिजेक्शन हो सकती है। जिन लोगों को रिजेक्शन से ज्यादा तकलीफ होती है वो आसानी से डिप्रेस्ड हो जाते हैं।
जब रिजेक्शन की वजह से मिला मेंटल पेन इतना ज्यादा हो जाता है कि उसके सामने फिजिकल पेन कुछ नहीं लगता। इसी सिचुएशन में लोग सुसाइड कर लेते हैं। इस समय लोगों की सोचने की शक्ति कमजोर हो जाती है।

सवाल: क्या रिजेक्शन से जुड़ी कोई मानसिक बीमारी भी है?
जवाब:
रिजेक्शन सेंसिटिव डिस्फोरिया (RSD) एक ऐसी कंडीशन है जिससे पीड़ित इंसान को जब रिजेक्ट किया जाता है तो वो गहरे इमोशनल दर्द से गुजरता है। इसमें छोटे-छोटे रिजेक्शन मिलने पर भी इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है। जैसे कोई ऑफिस नई शर्ट पहनकर आया और किसी ने शर्ट की बुराई कर दी। RSD से जूझ रहा इंसान इस रिजेक्शन से आहत होकर चिड़चिड़ा हो जाएगा।

सवाल: सोशल रिजेक्शन यानी समाज से रिजेक्ट होना क्या होता है?
जवाब:
जब किसी इंसान को सोशल रिलेशनशिप या किसी तरह के सामाजिक संपर्क से दूर कर दिया जाए तो उसे सोशल रिजेक्शन कहते हैं। इसमें किसी को आसपास रहने वाले लोग, परिवार के लोग या पार्टनर रिजेक्ट कर देता है। कोई एक इंसान या कोई ग्रुप भी आपको रिजेक्ट कर सकता है।
सोशल रिजेक्शन एक्टिव और पैसिव- दो तरह का होता है।
एक्टिव: किसी की खिल्ली उड़ाई जाए या उसे बुली या छेड़-छेड़ कर परेशान किया जाए। इसे एक्टिव सोशल रिजेक्शन कहते हैं।
पैसिव: साइलेंट ट्रीटमेंट के जरिए जब किसी को इग्नोर किया जाए। इसे पैसिव सोशल रिजेक्शन कहते हैं।

इन 5 लेवल्स से होकर गुजरता है रिजेक्शन फेज…

  • इनकार: रिजेक्शन के बाद आप काफी समय तक ये सोचते रहते हो कि रिजेक्ट करने वाले का फैसला बदलेगा।
  • गुस्सा: जब फैसला नहीं बदलता तो आपको गुस्सा आता है। गुस्से में कोई भी फैसला या काम नहीं करना चाहिए।
  • बार्गेनिंग: रिजेक्ट करने वाले इंसान को आप कुछ ऑफर करते हो। जैसे अगर बॉस ने आपकी कोई रिपोर्ट या प्रोजेक्ट रिजेक्ट कर दिया, तो आप उस प्रोजेक्ट को एक्सेप्ट कराने के लिए तरह-तरह के ऑफर करते हो।
  • डिप्रेशन: इसके बाद भी आपको रिजेक्शन ही मिलता हो तो आप सोचते हो कि दुनिया खत्म हो गई है। अब आपके जीवन में कुछ नहीं बचा है।
  • एक्सेप्टेंस: यह स्टेज सबसे जरूरी है जब आपको अहसास होता है कि आपको किन कारणों से रिजेक्ट किया गया है। बहुत कम लोग इस स्टेज तक आ पाते हैं।

सवाल: रिजेक्शन से मिला ट्रॉमा क्या लंबे समय तक रह सकता है?
जवाब:
हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग टाइम पीरियड होता है। कुछ लोग जल्दी उबर जाते हैं। कुछ कभी नहीं उबर पाते और गलत कदम उठाते हैं। आमतौर से रिजेक्शन फेस करने के बाद दो से तीन महीने में इंसान बेहतर महसूस करता है। यह याद रखें कि रिजेक्शन के बाद शुरू के 15 दिन सबसे मुश्किल होते हैं। ट्रॉमा एक महीने बाद काफी कम हो जाता है।

सवाल: कुछ लोग कहते हैं कि रिजेक्शन इंसान के लिए जरूरी है। ऐसा क्यों?
जवाब:
यह बात सच है। हर वक्त आप मीठा नहीं खा सकते। आपको स्वाद बैलेंस करने के लिए कभी खट्‌टा कभी तीखा भी खाना पड़ता है। इसी तरह जिंदगी भी होती है। इसे पॉजिटिवली लेने की जरूरत है। रिजेक्शन के हैं ये 7 फायदे…

  • रिजेक्शन से हम बेहतर करने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • रिजेक्शन हमें अहसास कराता है कि हम भी एक आम इंसान हैं जिसमें कमियां हो सकती हैं।
  • सब्र करना सिखाता है रिजेक्शन।
  • रिजेक्शन के बाद कई बार नई राह पर जाने का अवसर मिलता है। जैसे, आपको एक कंपनी से रिजेक्ट कर दिया गया। तब ही आप दूसरी जगह अप्लाई कर देख सकेंगे कि बाकी कंपनियां क्या ऑफर कर रही हैं।
  • रिजेक्शन के बाद हम खुद का इवैल्यूट कर पाते हैं।
  • रिजेक्शन के बाद खुद में सकारात्मक बदलाव करने का स्कोप बढ़ता है।
  • रिजेक्शन हमें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है।

सवाल: इनदिनों लोग रिजेक्शन को लेकर इतने सेंसिटिव क्यों हो गए हैं?
जवाब:
इसकी कई वजहें हैं…

  • लोग सोशल मीडिया पर खुद की जिंदगी को दूसरों से कम्पेयर करने लगते हैं।
  • सोशल मीडिया और मीडिया से लोग गलत कदम उठाने के लिए दूसरों से इंफ्लूएंस हो जाते हैं।
  • बिना सोचे-समझें लोग किसी को भी फॉलो करने लगते हैं।
  • सोशल मीडिया के दौर में जहा हर चीज फोन के एक क्लिक पर मिल जाता है, वहां लोगों में पेशेंस की कमी हो गई है।

चलते-चलते

सवाल: बचपन में रिजेक्शन का सामना करने वालों पर इसका असर कब तक रहता है?
जवाब:
बच्चों पर रिजेक्शन का गहरा प्रभाव पड़ता है। दरअसल बच्चों की दुनिया सीमित होती है। अगर उन्हें रिजेक्शन मिलता है तो वो मान बैठते हैं कि सारी गलती उनकी ही है। ऐसे में कुछ बच्चे तो रिजेक्शन हैंडल कर लेते हैं मगर कुछ बच्चों पर बड़े होने के बाद भी इसका असर रहता है।
जो लोग बचपन में रिजेक्शन फेस करते हैं, इस तरह पड़ता है उनके जीवन पर प्रभाव…

  • ऐसे लोग कमिटमेंट और इंटिमेसी से दूर भागते हैं।
  • ये हमेशा आत्मनिर्भर होना चाहते हैं।
  • इन्हें किसी को इमोशनल सपोर्ट देने में दिक्कत होती है।
  • ऐसे लोग आसानी से किसी के इमोशन्स को नहीं समझ पाते।
  • इन्हें दूसरे लोगों पर भरोसा करने में दिक्कत होती है।
  • ये मानते है कि अकेला रहना किसी पर निर्भर रहने से बेहतर है।

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