• Hindi News
  • Local
  • Uttar pradesh
  • Varanasi
  • Gahmar Army Village | Indian Army Day (Sena Diwas) 2020 Updates: Asia Largest India Army Village Gahmar, Uttar Pradesh Gaon That Serves Nation With Soldiers

यूपी का गांव गहमर: यहां हर घर में सैनिक पर सेना में बेटियां एक भी नहीं, यहां 37 साल से नहीं लगा भर्ती कैंप

3 वर्ष पहले
  • कॉपी लिंक
सेना भर्ती की तैयारी करते युवा। - Dainik Bhaskar
सेना भर्ती की तैयारी करते युवा।
  • गाजीपुर से 35 किमी दूर है गहमर गांव, आबादी एक लाख 20 हजार
  • साल 1983 में आखिरी बार यहां सेना की तरफ से लगा था भर्ती कैंप
  • गांव के पूर्व सैनिकों ने सरकार को लिखा था पत्र, मांग पूरी नहीं हुई

गाजीपुर. जिला मुख्यालय से बिहार जाने वाले हाईवे पर करीब 35 किमी की दूरी तय करने पर गहमर गांव है। इस गांव की पहचान 1.20 लाख आबादी के लिहाज से एशिया के सबसे बड़े गांव के रूप में है। इसकी एक और पहचान है। गांव में 25 हजार सैनिक या पूर्व सैनिक हैं। हर घर में सेना की वर्दी टंगी है। 1962 की जंग हो या फिर 1964, 1971 का युद्ध चाहे कारगिल की लड़ाई। सभी जंगों के गवाह इस गांव के सैनिक हैं।

ये भी पढ़े
पहले विश्व युद्ध की लाइव तस्वीर दिखाती है सैम मैंडेस की '1917', जर्मन सेना के पीछे हटने की कहानी
इस गांव की बेटियाें को अब तक सेना में सेवाएं न दे पाने का मलाल है। भूत पूर्व सैनिक कल्याण समिति के अध्यक्ष मार्कंडेय सिंह बताते हैं। 37 साल पहले तक गांव में सेना भर्ती कैंप लगाती थी, लेकिन 1983 में अचानक इसे बंद कर दिया गया। गांव वाले कई बार सरकारों से कैंप लगवाने की मांग कर चुके हैं, जो पूरी नहीं हुई।

यूं बढ़ा देशसेवा का जज्बा
द्वितीय विश्व युद्ध के समय गहमर के 226 सैनिक अंग्रेजी सेना में शामिल थे। 21 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। तब से भारतीय सेना में जाने का जज्बा गहमर वासियों के लिए परम्परा बन चुका है। गहमर की पीढ़ियां दर पीढ़ियां अपनी इस विरासत को लगातार संभाले हुए हैं। वर्तमान में गहमर के 15 हजार से अधिक जवान भारतीय सेना के तीनों अंगों में सैनिक से लेकर कर्नल तक के पदों पर कार्यरत हैं। 10 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक गांव में रहते हैं।

1530 में बसाया गया था गांव
ग्राम प्रधान मीरा दुर्गा चौरसिया बताती हैं- गंगा किनारे बसा गहमर एशिया का सबसे बड़ा गांव माना जाता है। गांव की आबादी एक लाख बीस हजार है। गहमर 8 वर्ग मील में फैला हुआ है। गहमर 22 पट्टियों या टोले में बंटा है। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि साल 1530 में कुसुम देव राव ने सकरा डीह नामक स्थान पर गहमर गांव बसाया था। गहमर में ही प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर भी है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत बिहार के लोगों के लिए आस्था का बड़ा केन्द्र है।

आजादी के बाद महज दो जवान हुए शहीद
गहमर गांव के लोग मां कामाख्या को अपनी कुलदेवी मानते हैं। आजादी के बाद 1961 की लड़ाई में जवान भानु प्रताप सिंह और 1971 की लड़ाई में शौकत अली ग्रेनेडियर शहीद हुए थे। उसके बाद आज तक कोई शहीद नहीं हुआ। मान्यता है कि यह मां कामख्या के आशीर्वाद से है। हर सैनिक छुट्टी पर आने के बाद मां कामख्या का दर्शन करना नहीं भूलता है, वहीं सरहद पर जाने से पहले सैनिक मां कामाख्या धाम का रक्षा सूत्र अपनी कलाई पर बांध कर रवाना होता है।

कसरत करते दिखते हैं गांव के युवा, बेटियां भी हो रहीं सशक्त
यहां की लड़कियां पुलिस, टीचिंग एवं अन्य नौकरियों में कार्यरत हैं। उन्हें फक्र है कि उनके घर के लोग सरहद की सुरक्षा में जुटे हैं। गांव के बीच शहीदों के नाम का स्मारक है। पार्क भी बना है। जिसमें सुबह-शाम युवक सेना भर्ती की तैयारी करते दिखते हैं। गांव के अतुल सिंह बताते हैं "हम लोग भले ही सेना की तैयारी में जी-जान से जुटे हैं, किंतु लगभग 37 सालों से गांव में सेना भर्ती न होने से नाराजगी भी है। अगर सरकार ध्यान देती तो यहां से और भी ज्यादा संख्या में युवा देश की सेवा में खुद को समर्पित कर पाते।"