"एक बात बताइये मम्मी, पूरी दुनिया में, सारे रंगों में, एक नीला ही मिला था आपको मेरा नाम रखने को?"
कॉलेज से आकर बैग सोफे पर फेंककर नीला दोनों हाथों से सिर पकड़कर बैठ गई।
"पचास हजार बार यह सवाल कर चुकी हो तुम।" धानी मुस्कुराई।
"हां, तो धानी तुम्हारा रंग हो गया न। धानी चुनर लहराई सुनने में उतना बुरा नहीं लगता, जितना नीला आसमां सो गया, आज ब्लू है पानी पानी पानी, नीला नीला नाकु एवरु..."
"नीला मतलब चांद होता है बच्चा। बताया तो तुमको कितनी बार। बता दिया करो।" मां ने प्यार से उसे देखा। "है भी तो चांद जैसा मेरा बच्चा...." मां उसे चाय का कप थमाकर किचन में चली गईं।
"आज माताश्री स्वयं किचन में युद्ध-स्तर पर जुटी हुई हैं। कुछ तो गड़बड़ है दया, कुछ तो गड़बड़ है पता करो। अरे दया, कहां हो तुम...?" नीला ने पलटकर देखा, धानी दुपट्टा कमर में खोंसे सलवार के पाएन्चे चढ़ाए धानी फर्श धोने में बिजी थी।
"अरे, आज दीदी जींस-टॉप छोड़ सूट पहनी हैं, मातेश्वरी किचन में हैं, कतई संस्कारी माहौल है। चल क्या रहा है आखिर…”
"अरे बच्चा, आ गईं कॉलेज से। कुछ खा लो, नींद पूरी करके फ्रेश हो जाओ। आज रात शेखर की फैमिली आ रही है डिनर पर। उमा चेक कर लो कोई चीज रह तो नहीं गई।" उसकी बात पूरी होने से पहले ही पापा गेट से एंटर हो चुके थे, दोनों हाथों में शॉपर्स से लदे-फदे, पसीने से तर-बतर।
नीला के मुंह में कड़वाहट घुल गई। भूख भी मर गई। मरे कदमों से बिन कुछ कहे वह अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि धानी चहक-चहक कर सारे काम कर रही थी।
शेखर अंकल उसके पापा के बचपन के दोस्त थे। मल्टीनेशनल कंपनी से जॉब छोड़कर अपने पुश्तैनी गांव में बरसों से ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहे थे। स्कूल और कॉलेज भी खोल रखे थे, जो उनके दोनों बेटे संभालते थे। उसके पिता को कोविड के टाइम बिजनेस में बहुत लॉस हुआ था, जिससे अब तक उबर नहीं पाए थे। ऐसे में शेखर अंकल ने उसके पिता की बहुत मदद की थी, आर्थिक से लेकर मानसिक संबल भी दिया था। पर ये मुफ्त में नहीं था। बदले में नीला और धानी का हाथ उन्होंने अंबर और यश के लिये मांग लिया था और उनका प्रपोजल खुशी-खुशी मान भी लिया गया, क्योंकि दोनों बेटियों ने हमेशा अपने पेरेंट्स की चॉइस पर भरोसा जताया था।
लेकिन जिंदगी का इतना बड़ा फैसला ऐसे किये जाने पर नीला बिल्कुल खुश नहीं थी। ऐसा नहीं था कि उसे कोई और पसंद था या लव मैरिज को लेकर फैंटेसी थीं उसकी। बस जो उसके जीवन का सबसे बड़ा डर था, किसी छोटी जगह में रहने का, किसी देहात या कस्बे में, उसका वही फोबिया सच होने जा रहा था।
ऐसा कहते हैं कि जब हम किसी चीज को नहीं होने देना चाहते, सोचते हैं कि ऐसा न हो, तब दरअसल हम उस निगेटिविटी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे होते हैं। इसलिये जो न हो, वह सोचने की बजाय हमें जो हम चाहते हैं कि हो, वही सोचना चाहिये। पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है, लेकिन धानी के मामले में यह बात फिट बैठती थी कि यश को देखते ही पहली नजर में अपना दिल हार चुकी थी। और नीला के मामले में भी यही सच था कि वह छोटे शहर से डरती थी और यहां तो गांव में रहने की बात थी।
उधर धानी यश के साथ नई जिंदगी के सुनहरे सपने बुनती रहती थी और इधर नीला चाहती थी कि कैसे भी उसके पास इतना ढेर सारा पैसा आ जाए कि शेखर अंकल के सारे फेवर सूद सहित लौटा दे और विदेश सेटल हो जाए खुद।
शाम को शेखर की फैमिली जैसे ही गेट से दाखिल हुई, उषा आंटी ने बढ़कर धानी को गले से लगा लिया और उसके माथे को प्यार से चूमते हुए खूब सारे आशीर्वाद दे डाले। नीला मां के पीछे सिमटी-सकुचाई खड़ी थी। उषा ने आगे बढ़कर उसके माथे को भी चूमा, उसने पलटकर नागवारी से तुरंत माथा रगड़ दिया। सब इसे उसकी शर्म और झिझक ही समझ रहे थे, सिवाय अंबर और धानी के।
"क्या मां आप भी न, सिटी वाले ऐसे चिपकना-चूमना पसन्द नहीं करते।" अंबर की बात पर धानी की नजरें झुक गईं। नीला को भी थोड़ी शर्मिंदगी हुई पर वह ढिठाई से खड़ी रही।
खुशगवार माहौल में खाना-पीना चला। फिर शुरू हुआ बातों का लंबा दौर। रात बहुत हो गई थी तो वहीं रुकने का इसरार किया गया, जिस पर यश तो बहुत खुश हो गया, पर अंबर बेदिली से माना।
रात को टेरेस पर धानी और यश दुनिया-जहां की बातों में मसरूफ थे, कि उसके नम्बर पर अंबर का मैसेज आया।
"सॉरी टू डिस्टर्ब यू धानी। नीला कहां है?"
"सॉरी अंबर, आज वह कॉलेज से बहुत लेट आई थी और आते ही डिनर की तैयारियों में लग गई थी। काफी थक गई तो सो गई। आई होप यू वुड अंडरस्टैंड।" मैसेज टाइप करते हुए भी धानी को लग रहा था जैसे उसका झूठ पकड़ा जा रहा हो। सच तो यही था कि धानी ने किसी काम को हाथ नहीं लगाया था और अभी भी कमरे में बंद पिंक वेनम सुन रही थी लैपटॉप पर, फोन बंद पड़ा था।
"हम्म.... समझने की कोशिश ही तो कर रहा हूं। आप भी थकी हैं पर नींद का नामो-निशान नहीं है।" अंबर के रिप्लाई पर धानी को बहुत अफसोस हुआ। उसकी पगली सी छोटी बहन बेजा जिद में इतने अच्छे लड़के का दिल दुखाए थी। उसे डर भी था कि बहन की बेवकूफी कहीं उसके रिश्ते पर भारी न पड़ जाए।
"नॉक-नॉक..."
"नॉक-नॉक, नॉक-नॉक, नॉक-नॉक..."
लगातार आवाज देने पर नीला को दरवाजा खोलना ही पड़ा। वह समझ गई थी कि अवॉयड करने से काम नहीं चलेगा। वह जाने वालों में से नहीं है।
उसने अपने बाल बिखरा लिए, कपड़े अस्त-व्यस्त किये और जम्हाई लेते हुए दरवाजा खोला।
"जी..?"
"क्या मैं अंदर आ सकता हूं?"
"रात दो बजे किसी लड़की के कमरे में आना अच्छी बात है तो नहीं।"
"तो क्या आप बाहर आ सकती हैं?"
"ऐसी क्या इमरजेंसी है कि सुबह तक रुका नहीं जा सकता।"
"जीने-मरने का सवाल है।"
"उफ्फ! आ जाइए।"
अंबर अंदर आ गया। दरवाजा पूरा खोलकर स्टॉपर लगा दिया और बेड के साइड में रखा स्टूल खींचकर सावधानी से बैठ गया।
"बताइए, कौन मर रहा है और कौन जी रहा है।"
"आप अगर इस रिश्ते से खुश नहीं हैं तो इनकार कर सकती हैं। न आपके पापा के बिजनेस पर कोई आँच आएगी, न धानी और यश के रिश्ते पर, यह प्रॉमिस मैं आपसे कर सकता हूं। डोंट फील एनी प्रेशर। यू आर फ्री टू टेक डिसीजन ऑफ योर लाइफ।"
नीला एकदम सन्न रह गई। वह कितनी ही बोल्ड सही, अंबर से इतनी दो टूक बात की उसे उम्मीद नहीं थी। वह सोच रही थी कि या तो वह मंगेतर वाली धौंस जमाएगा, एहसान जताएगा या वन साइडेड रोमियो की तरह उसकी अटेंशन और चाहत के लिए गिड़गिड़ाएगा, उसकी बेरुखी की शिकायत करेगा, उसके अनमनेपन की वजह पूछेगा। लेकिन इतनी साफगोई की उसे उम्मीद नहीं थी। इसलिए उसे कोई जवाब सूझ नहीं रहा था।
"जी, ऐसी कोई बात नहीं है। कोई जबरदस्ती या दबाव नहीं है मुझ पर।"
"आप मुझे धोखे में रख रही हैं या खुद को? मैं जितना शक्ल से दिखता हूं, उतना बेवकूफ हूं नहीं। पिछले एक साल में मुझे नहीं याद आपने कभी मैसेज या कॉल किया हो खुद से। मैंने जब भी किया, ठंडा रिस्पॉन्स ही पाया आपका। पहले मुझे लगा आप रिजर्व रहती हैं, इंट्रोवर्ट हैं या शर्म-झिझक है। पर जिन नजरों से धानी और यश देखते हैं एक-दूसरे को, वह प्यार मुझे कभी आपकी आंखों में नहीं दिखा। हमेशा एक बेजारी ही नजर आई। आज मेरी मम्मी को आपने जैसा रिएक्शन दिया, काफी कुछ क्लियर हो गया। मैं साफ जवाब सुनने को मेंटली प्रिपेयर्ड हूं। अभी नहीं तो थोड़ा टाइम ले लीजिए और आपकी डिग्निटी पर आँच न आए, कोई आपसे बेकार सवाल-जवाब न करे, इसका ध्यान रखने की भी पूरी कोशिश करूंगा। लेकिन बस एक रिक्वेस्ट है, प्लीज बी ऑनेस्ट। ईमानदारी से बता दीजियेगा, जो भी मन में हो। आपकी नींद खराब करने के लिए माफी चाहता हूं। गुड नाइट।"
वह बिन मुड़कर देखे सीधे बाहर चला गया और नीला डबडबाई आंखों से अपनी जगह बुत बनी बैठी रह गई। यह सच था कि वह ये शादी नहीं करना चाहती थी। बल्कि शादी ही नहीं करना चाहती थी। लेकिन हमेशा धीमे लहजे में नरमी से बात करने वाले अंबर के मुंह से यह सब सुनकर जाने क्यों उसका दिल भरा जा रहा था। न जाने क्यों वह रिश्ते से फौरन इनकार नहीं कर पाई, जबकि मौका उसके पास था। यह भी सच था कि जल्दी से अमीर बनने की कोई तरकीब फिलहाल उसके पास नहीं थी जो अपने पापा की मदद कर सकती या कहीं बड़े पैकेज पर जॉब लगने की भी कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब अंबर ने भरोसा दिलाया बिजनेस पहले की तरह चलता रहेगा, वह फिर भी क्यों चुप रही। रात भर नींद उसकी आंखों से ओझल रही।
सुबह जल्दी से नाश्ता करके वे लोग रवाना हो गए। अंबर ने एक शिकायती नजर उस पर डाली और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। उसकी आंखें बता रही थीं, वह भी सोया नहीं। उषा फिर से जाते टाइम माथा चूमने आगे बढ़ीं, फिर बेटे की तरफ देखकर सकपकाकर रुक गईं और दूर से ही हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया तो धानी दौड़कर उनके गले लग गई। इस बार नीला ने भी आगे बढ़कर सिर पर हाथ फिरवा लिया।
उसके पापा की कंपनी की ब्रांचेज दूसरे शहरों में भी खुलने की तैयारियां चल रही थीं। इसी सिलसिले में वह शेखर अंकल के साथ मुंबई ट्रिप पर रवाना हुए। वापस आकर शादी की डेट फिक्स कर देंगे, यह सुनते ही धानी के पेट में तितलियां उड़ने लगीं जबकि नीला के होश ही उड़ गए।
"अब मुझे जल्द ही कोई फैसला लेना होगा। या तो जॉब के लिए कहीं बाहर अप्लाई कर देती हूं या किसी कोर्स में एडमिशन ले लेती हूं। वजह ऐसी होना चाहिए कि दलील स्ट्रॉन्ग लगे। सबको भरोसा हो जाए, अभी साल-दो साल शादी नहीं कर पाऊंगी, पहले धानी निपट जाए। धानी की शादी होते ही इनकार कर दूंगी, सेफ रहेगा। बहन का रिस्क नहीं ले सकते।" उसका दिमाग कई तरह के मंसूबे बना रहा था। सच तो यह था कि वह शादी से इनकार नहीं करना चाहती थी, अंबर उसे पसंद आने लगा था और उसका यूं चुप हो जाना उसे अखरने भी लगा था। रोज इंतजार करती थी कोई मैसेज ही आ जाए। लेकिन वह न शादी को ज़हनी तौर पर तैयार थी, न ही यह मानने को कि अंबर उसे अच्छा लगने लगा है।
पर किसी मनसूबे की जरूरत न पड़ी। सब इरादे धराशायी हो गए, जब रोड ट्रिप से आते समय उसके पापा की कार रोड एक्सीडेंट का शिकार हो गई। मौके पर ही दोनों दोस्त दम तोड़ गए, साथ जीने-मरने की कसम निभाते हुए और पीछे छोड़ गए उनके दुख में बिलखते परिवार।
फिर तो सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि दिमाग को प्रोसेस करने का समय ही न मिला। यश और अंबर ने तय किया कि फिलहाल उन मां-बेटियों को वहीं छोड़ना ठीक नहीं होगा। उषा जी उनकी मां उमा जी को अपनी सगी बहन की तरह ही मानती थीं। वे उनको अपने साथ गांव ले आईं। उनका मकान किराए पर चढ़ा दिया, जिसकी रकम उमा के अकाउंट में आने लगी।
पर गांव आकर नीला को एक के बाद एक सरप्राइज मिले। उनका घर एक आलीशान फार्म-हाउस से कम नहीं था। शानदार फलों, सब्जियों से लदे पेड़-पौधे, रंग-बिरंगे फूल, पक्की सड़कें और इमारतें, शानदार स्कूल-कॉलेज। पर सबसे ज्यादा खुशगवार झटका उसे अंबर के रूम को देखकर लगा। सब कुछ ब्लैक-पिंक थीम पर, जो कि उसका पसंदीदा म्यूजिक बैंड था। कबर्ड से लेकर वॉशरूम तक हर चीज उसकी पसंद के मुताबिक। क्वीन साइज राउंड बेड, साटिन के पर्दे, जकूजी, जैसा कि वह सब सोचा करती थी टीवी और फिल्मों में देखते हुए। घर तो था ही स्मार्ट, मॉड्यूलर किचन, ऑटोमेटिक स्विच, दरवाजे, ड्राइवर, माली, कुक, हाउस हेल्पर्स, मेट्रो सिटी सा एहसास और सिटी भी एक घंटे की ट्रैवलिंग डिस्टेंस पर। जैसा उसने सोचा था, वैसा कुछ नहीं था, बिजली गुल, मक्खी-मच्छर, पानी की समस्या, कच्चे-पक्के घर।
धीरे-धीरे वह इस माहौल की आदत डाल रही थी। बल्कि उसे लग रहा था किसी लग्जरी सुइट में छुट्टियां मनाने आई है, बस जो चीज उसे अखरती रहती थी, वह थी अंबर की गैर-मौजूदगी। तीन महीने होने आए थे। वह टूर ही टूर पर रहता। कभी एकाध-दो दिन को घर आता तो यश के कमरे में ही रहता। उससे नजरें तक नहीं मिलाता।
लेकिन जब आज वह खुद उसके पास आया तो उसे पहले हैरत और फिर बहुत खुशी हुई, जिसे बमुश्किल जाहिर होने से रोका उसने।
"आपसे कुछ जरूरी बात करना थी।"
"जी कहिए।"
"ये कुछ कोर्सेस हैं, जो आप करना चाहती थीं मास्टर्स में। आप अब्रॉड जाना चाहती थीं, मैंने पता किया है, क्रेनबरा और ओटावा सही हैं। आप देख लीजिए ऑस्ट्रेलिया जाना चाहेंगी या कनेडा। एकोमोडेशन करवा देंगे उस हिसाब से। यश और धानी की शादी नेक्स्ट मंथ है, वह भी अटेंड कर सकेंगी आप।" अंबर सपाट लहजे में बोलता चला जा रहा था कि नीला की आंखों से टप टप टपकते आंसू देखकर उसे एकदम ब्रेक सा लगा।
"क्या हुआ आपको?"
"क्यों कर रहे हो ये सब मेरे साथ? इतनी सजाएं कम नहीं हैं जो अब ये टॉर्चर भी। इतनी बुरी लगती हूं कि एकदम ही दूर फेंक देना चाहते हो?” वह दोनों हाथों में मुंह छिपाकर फूट-फूटकर रो दी।
"अरे, पर मैं तो... आप तो... आप ही यही सब चाहती थीं न, मैंने तो अब तक वही किया, जो आपने चाहा है। क्योंकि मैंने तो बस आपको चाहा है..." अंबर की बात पूरी होने से पहले ही नीला आकर उसके गले लग गई।
"अब मैं यह चाहती हूं कि शादी के कार्ड पर दो नाम और बढ़ाए जाएं। मास्टर्स यहीं से करूंगी। और मूड हुआ तो चली भी जाऊंगी डिपेंड करता है।"
हमेशा शट डाउन, स्नीकर्स, आइसक्रीम, हाऊ यू लाइक इट सुनने वाली नीला को आज "नीले-नीले अंबर पर चांद जब आए..." सुनना भा रहा था।
- नाज़िया खान
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