“सुनोsss न!”
“हूंsss सोने दो…”
“मत सुनो, कुंभकर्ण के वशंज... कहते, पैर पटकते सौम्या उठकर बालकनी में आकर रेलिंग के सहारे खड़ी हो स्माइली के आकार के चांद को देख मुस्कुरा उठी। आंखों के कोर नमी सहेजे चांद को निहारते रहे और वह यादों की बस्ती में खोने लगी।
मां के उभरे पेट पर कान लगाए पिता अजन्मे बच्चे को पुचकार रहे थे। वह भी उनकी नकल करती मां के पेट पर चुम्बन दे बड़े प्यार से कहती, “मेरा छोटा सा भाई कब आएगा पापा?” पिता उसे गोद में उठा घुमाते और कहते जल्दी ही मां अस्पताल से लेकर आएगी।
स्नेह की रसभरी डोर जिसे सौम्या बार-बार थामने की कोशिश करती… अतीत के पन्ने टटोलती, उतनी ही बेचैनी बढ़ती जाती। पेट में शिशु करवटें बदलने लगा था। वह चाहती अमित को बताए कि उनका बच्चा अब महसूस कर सकता है उनका स्पर्श। वह चाहती कि पति पेट में चलते हुए बच्चे से बतियाए, पर… अफसोस कि उसे अपनी भागती दुनिया से इतर सब कुछ बस निपटाऊ काम लगता। ऑफिस से लौट लैपटॉप ले बैठ जाता। टोकने पर ऑफिस का जरूरी काम कह नाराजगी जताता। काम से फ्री होता तो मोबाइल लेकर बैठ जाता।
सौम्या के नाराज होने पर छत पर चला जाता। ये एक लाइलाज बीमारी बनती जा रहा थी। सोते, बैठते, खाते, यहां तक कि बाथरूम में भी मोबाइल साथ रहता। सौम्या की ऊब बढ़ती जा रही थी। स्कूल से लौट वह अकेली अपनी दुनिया में इस कदर ऊब महसूस करने लगी कि घर में उसका दम घुटने लगा।
भाग कर कभी पार्क में जाकर बैठती, कभी बालकनी, तो कभी छत पर जाकर घंटों सामने पार्क में खेलते बच्चों को निहारती। एक सुकून भरी मुस्कान चेहरे पर फैल जाती और पेट पर हाथ रख वह घंटों मन की सुकोमल बातें अजन्मे बच्चे से करती छत पर टहलती रहती।
एक दिन पड़ोसी सान्याल ने अमित से कहा, “यार अमित, भाभीजी की तबीयत तो ठीक है न?”
“क्यों, क्या हुआ उसे? भली चंगी तो है!” उल्टे उसने ही सौ सवाल दाग दिए।
“बुरा न मानना, लेकिन उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं लगती। मानसी कह रही थी कि अकेले घंटों छत पर बड़बडाती रहती हैं। टेक केयर यार… किसी अच्छे…”
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अमित दनदनाता हुआ लिफ्ट की ओर भागा। दरवाजे पर लगातार दस्तक सुन सौम्या ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला। अमित का चेहरा गुस्से से लाल देख वह सहम गयी।
“क्या हुआ, किसी से लड़ाई हो गयी?” वह डरी हुई थी।
अमित ने बैग सोफे पर पटका और सौम्या पर उबल पड़ा, “बिल्डिंग वाले तुम्हें पागल कहने लगे हैं…समझीsss सुबह-सुबह सान्याल ने मूड खराब कर दिया।”
सौम्या आवाक उसका मुंह ताकती रही।
“हुआ क्या?” उसने धीरे से पूछा।
वह सीधे उसके मुंह के पास आकर खड़ा हो गया। “अच्छा ये बताओ, अकेले में छत पर क्या बड़बड़ाती हो?”
उसकी आवाज बहुत ऊंची थी, इतनी कि मन की सुकोमल परतें चटक जाएं। उसने आंखों में आंसू लिए पेट पर हाथ रखते हुए कहा, “बेबी से… अपने बेबी से बात करती हूं…” वह बस इतना ही कह पायी और फूट-फूट कर रोने लगी।
अमित अब भी चिल्ला रहा था, “बेवकूफ, अपनी ये सेंटी हरकतें घर में किया करो। सोसाइटी में मेरी बैण्ड मत बजवाओ प्लीज!”
वह आगे कुछ और कहता, तभी मोबाइल बज उठा, “सॉरी सर! बस… बस पहुंच रहा हूं,” कहते हुए वह बैग उठा कर फूर्ती से बाहर निकल गया।
घंटों रोने के बाद सौम्या संयत हुई। सिर भारी हो गया था। मन घबरा रहा था। वह किसी से कुछ कहना चाहती थी।
दरवाजा खोल बाहर निकली, तो सामने की पड़ोसन अपना कुत्ता ले टहलने जा रही थीं। उसे देख पड़ोसन ने मुस्कुरा कर, ‘हाय सौम्या!’ कहा और निकल गयी।
अगल-बगल के फ्लैट से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी। मां-बाप नौकरी पर निकल चुके थे, आया टीवी चला कर अपने में मगन बैठी थीं। उसकी घबराहट बढ़ने लगी। दरवाजा लॉक कर वह लिफ्ट की ओर तेज कदमों से बढ़ गयी। लिफ्ट की दीवार से सिर टिका उसने आंखें मूंद लीं।
उसे लग रहा था जैसे तेज बवंडर उठा हो और लोग बेतहाशा भाग रहे हों। वह कुछ चेहरे पहचानती थी, उन्हें पकड़ना चाहती थी, लेकिन हाथ फिसल रहा था। अचानक एक झटके से लिफ्ट रुकी, सिक्योरिटी गार्ड ने आवाज दी, “मैडम!”
वह जैसे नींद से जागी। बाहर निकल पार्क में एक पेड़ की छाया में आ बैठी। सामने कुछ घरों की आया बच्चों को झूला झुला रही थीं। कुछ बच्चे गेंद खेल रहे थे। वह खेलते बच्चों को मुग्ध होकर देख रही थी।
अचानक एक बच्चा गिर गया और उसका घुटना छिल गया। बच्चा ‘मम्मा…मम्मा…’ कह रोए जा रहा था। उसकी आंखें भर आईं। आया ने उठा कर चुप कराया और फिर से खेलने भेज दिया।
जाड़े की गुनगुनी धूप में खिले रंग-बिरंगे फूलों पर मंडराती तितलियों को देख सौम्या मंद मुस्कान सहेजती कभी बच्चों को देखती, कभी तितलियों को।
"सौम्या… अरे यार! तुम यहां बैठी हो और मैं तुम्हें पूरी बिल्डिंग में पागलों की तरह खोजता फिर रहा हूं।" अमित नाराज हो रहा था। उसकी आवाज में चिंता साफ झलक रही थी।
“तुम इतनी जल्दी लौट आए?”
“हां, मैंने आज अपनी बेगम के लिए छुट्टी ले ली है।” सौम्या का हाथ पकड़ कर उठाते हुए वह बोला, “चलो, जल्दी रेडी हो जाओ… पिक्चर देखने चलते हैं।”
सौम्या का मन नहीं था, पर अमित के अनुनय पर बेमन से तैयार हो चल पड़ी। जानती थी, आज अमित उसे लेकर परेशान है इसलिए ये सब कर अपनी गिल्ट दूर करना चाहता है। दोनों दिल्ली की भागती सड़कों से गुजरते मैट्रो स्टेशन पहुंचे। कार पार्किंग में लगा टिकट ले मेट्रो की प्रतीक्षा करने लगे।
आज अमित गलती से भी मोबाइल हाथ में नहीं ले रहा था। सौम्या को देख कर खुशी हुई कि शायद अमित कुछ-कुछ प्रॉब्लम समझ रहा है।
अमित का बदला हुआ अंदाज देखकर सौम्या को तसल्ली हुई।
उसने पेट पर हाथ रखा और इशारे में बेबी से कुछ कहा।
मेट्रो में भीड़ बहुत थी इसलिए सौम्या ने अपना मोबाइल निकाल नेट ऑन किया। फिर गूगल पर टाइप किया ‘बेबी केयर टिप्स’, एक-एक कर ढेर सारी बुक्स, विडियो के लिंक उभरने लगे। उसकी आंखें चमक उठीं। वह एक-एक को खोल देखने लगी। प्यारे-प्यारे बच्चों की मनभावन तस्वीरें देख उसके चेहरे पर बार-बार मुस्कान फैल जाती। वह खोई हुई थी। हाथ में मोबाइल… स्क्रीन पर उभरती किलकारियों की गूंज…
अमित ने उसे प्यार से देखा और एक सुकून भरी लंबी सांस लेते हुए सौम्या के सिर पर हाथ रख पूछा, “क्या देख रही हो?” बहुत दिनों बाद सौम्या के चेहरे पर पहले वाली मुस्कान लौटी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “बेबी केयर टिप्स।”
राजीव चौक स्टेशन आने की उदघोषणा सुन सौम्या का हाथ थाम अमित ने उठने का आग्रह कर कहा, “चलो, स्टेशन आ गया।”
सौम्या खड़ी हो गयी। उसने मुस्कुराते हुए अमित को देखा और बाहर निकल आई।
- सोनी पाण्डेय
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