पिछले कुछ दिनों से उनकी पत्नी सोनम पर एक ही धुन सवार थी कि आनंद मोहन जी कहीं अकेले में जाकर एक कहानी लिखें। हर रोज ढेरों पुरस्कारों की घोषणाएं पढ़-पढ़ कर उसे लगता, कहानीकार बनना कोई बड़ी बात नहीं है। वैसे भी लिखने में रखा ही क्या है? हर व्यक्ति जन्म से ही लेखक तो होता ही है। बस जिस दिन से उसके हाथ में कागज-कलम आती है, वो कहानीकार बन जाता है।
“सोनम, इतना आसान नहीं है ये सब। मैं एक आम इंसान हूं," उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, तो सोनम ने आनंद जी का हौसला बढ़ाया।
"कहानीकार और एक आम आदमी में अंतर ही कितना है। एक आम आदमी यहां-वहां की कहानियां पचा जाता है जबकि कहानीकार उसे शब्दों की माला में पिरोकर प्रस्तुत कर देता है। वैसे भी ये लघु कहानी प्रतियोगिता है, कौन सी तुम्हें लंबी-चौड़ी कहानी लिखनी है! कुछ यहां से ले लो, कुछ वहां से ले लो और बन गयी कहानी।"
पिछले दिनों वो एक ज्वेलर की दुकान पर एक जड़ाऊ टॉप्स देखकर आयी थी। तभी से उसके मन में टॉप्स खरीदने की इच्छा बढ़ गई थी, पर खरीदे कैसे? तभी एक पत्रिका द्वारा ‘लघु कहानी प्रतियोगिता’ में प्रथम पुरस्कार पाने वाले को दस हजार रुपए की घोषणा पर उसकी नजर गई। बस तभी से वो हर समय पति को एक कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने लगी थी।
"कुछ सूझा लिखने के लिए?"
आनंद मोहन जी ने एक सूखा सा जवाब देकर ‘ना’ में सिर हिला दिया तो सोनम बुरी तरह चिढ़ गयी। बोली, “सच बात तो ये है कि तुम्हारा कहानी लिखने का मन ही नहीं है।”
"नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है।" उन्होंने उसकी बात का धीरे से जवाब दिया।
आनंद जी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि रूठी हुई पत्नी को मनाएं कैसे? आखिर उन्होंने व्हाट्सएप पर पत्नी को छोटा सा मैसेज भेजा-
‘तू हजार बार रूठेगी, फिर भी मैं तुझे मना लूंगा। तुझ से प्यार किया है कोई गुनाह तो नहीं किया।’
मैसेज पढ़कर सोनम का चेहरा खिल गया। वह तुरंत बोली, "कुछ सोचोगे तभी तो सूझेगा। इतनी किताबें पढ़ते हो। चाहो तो गूगल से भी आइडिया ले सकते हो। दुनियाभर के एप्स मौजूद हैं, किसी का एक प्लॉट चुरा लो और उस पर पूरा ढांचा खड़ा कर दो। बिल्कुल ऐसे जैसे हमने अपने अस्सी गज के प्लॉट पर चार मंजिला मकान खड़ा कर दिया है। कोई पहचान सकता है भला?”
आनंद जी चुप रहे।
"छह-सात पन्नों की कहानी लिखने में रखा ही क्या है, तुम कोशिश तो करो। सोचो हमारे आसपास कितनी कहानियां हर रोज घटती हैं, वो भी नहीं सोचा जाता तो पुराने दिनों को याद करके अपनी जीवनी ही लिख दो। वो कॉलेज के दिनों की प्यार भरी बातें, जब हम दोनों एक दूसरे की आंखों में डूब जाया करते थे।
तुम हमेशा कहा करते थे, “तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगता, जी तो करता है तुम्हें अपनी बाहों में जकड़ लूं, तुम्हें गोद में उठा लूं।”
“कुछ याद आया? हजारों अड़चनों के बाद भी, सबसे छिप-छिप कर हम हर दिन मिला करते थे। उन्हीं दिनों तुमने अपनी पहली कविता भी लिखी थी-
‘सुना है मोहब्बत एक बार होती है, पर तुम्हें जब भी देखता हूं हर बार होती है।’
“और मैं बुरी तरह खफा हो गयी थी। फिर भी तुमने मेरी तारीफ में कसीदे बुनना नहीं छोड़ा था,” सोनम जैसे पुराने दिनों की यादों में खो गई।
आनंद जी ने उसके मन का हाल समझते हुए अपने दिल की बात बताई, “क्या करूं, इतनी खूबसूरत जो हो तुम!”
सोनम ने पति को कहानी लिखने के लिए उकसाने के लिए फिर कहना शुरू किया, “कितना विरोध हुआ था हमारी शादी को लेकर। कभी मेरे माता-पिता अड़ जाते थे कभी तुम्हारे… फिर कैसे घर से भागकर हमने शादी की थी…”
पत्नी की बात को बीच में ही काट कर आनंद जी बोले, “कहानी लिखना है या किसी दुर्घटना का वर्णन करना है…”
"चुप रहो… अगर हमारा मिलन एक दुर्घटना होता तो आज मैं तुम्हें लिखने को प्रेरित नहीं कर रही होती।"
सोनम हर हाल में पति से कहानी लिखवाना चाहती थी इसलिए फिर से उन्हें प्रेरित करने लगी।
"देखिए, बात सिर्फ कहानी की है। तुम चाहो तो कुछ मैगजीन ले आओ। किसी एकांत जगह पर जाकर बैठो। कहो तो मैं भी मायके चली जाती हूं। चाहे मेरे भाई-भाभी तुम्हें धिक्कारें या मैं तुम्हें वहां आने पर या मेरा पीछा करने पर धिक्कारूं, तो तुम एकदम तुलसीदास बन जाना, और लिखते ही रहना। ये नहीं कि मेरे मायके जाने का फायदा उठा कर, हर दिन किसी नई प्रेमिका को घर में लाकर प्रेम की पींगें बढ़ाना शुरू कर दो...”
“वैसे कहानी का ये प्लॉट भी अच्छा हो सकता है, क्यों?" आनंद जी ने चुहल की तो सोनम ने पति को घूर कर देखा।
“नहीं-नहीं, ये प्लॉट नहीं चलेगा। तुम्हारी कहानी प्रेम के पहले एहसास पर ही चलती है, ये अनुभव मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सकूंगी।"
“तो फिर..?” लगातार चहलकदमी करते हुए उन्होंने पत्नी से पूछा।
"पिछली बार कवि सम्मेलन में भेजते समय हम दोनों ने मिल बैठकर जो कविताएं बनाई थीं, उन्हीं से हफ्ते भर के आलू प्याज का खर्च निकल आया था।"
आनंद जी सिर झुकाकर चुपचाप सुनते रहे।
सोनम का उत्साह अपने चरम पर था, "पिछले तीन सालों में मैंने तुम्हें अच्छी तरह देख-परख लिया है। तुममें मूर्खता के वही संस्कार हैं जिनसे कोई भी कालिदास बन सकता है।”
सोनम लगातार बोलती जा रही थी, “देखो, कविता आह से पैदा हुई होगी, आंसू बनकर ढुलकी होगी, कहानी तो ऐसी कोई तरल चीज भी नहीं, वरना मैं तो तुम्हारे नाम का रोना रो रोकर ताल ही भर दूं।”
सोनम का बढ़ता अनुरोध देखकर आनंद जी असमंजस में पड़ गए।
सोनम ढेरों किताबें और पत्रिकाएं ला लाकर उनके सामने रखती जा रही थी। फिर उसने अपना सामान बांधा और बोली, "तो मै जाऊँ मायके?"
"हां, तुम जाओ भागवान?" जल्दी से उनके मुंह से निकल गया।
"क्यों चली जाऊँ? तुम में तुलसी के गुण होते तो तुम जरूर मुझ से लिपट जाते, मेरी राह रोक लेते, मेरा सामान छुपा लेते, मुझे जाने न देते। पर तुम्हें तो लग रहा है तुम्हारी जान छूट जाएगी। मैं कहीं नहीं जा रही, तुम भी कहीं नहीं जाओगे, यहीं बैठकर कहानी लिखोगे।
बस कल्पना करो कि मैं अपने पीहर में हूं और तुमसे मेरी जुदाई बर्दाश्त नहीं हो रही है। हां, यह भी बता दूं- हीरो हीरोइन, उसके भाई-बहन सब मेरी पसंद के होंगे। मैं चाहूंगी तो हीरोइन, हीरो से मिलेगी, वरना नहीं। ध्यान रखना, ये हीरोइन शादीशुदा होनी चाहिए, न कुआंरी हो, न रखी हुई हो, न छोड़ी हुई हो।”
"क्या..? तुम्हारा मतलब है मेरी कहानी स्त्री-पुरुष संबंध पर ही आधारित होनी चाहिए।"
"हां, तुम और लिख भी क्या सकते हो। लिखो बैठकर, शुरू करो।”
सोनम ने उनके सामने ढेरों कागज रख दिए। साथ ही बढ़िया पेन भी। कच्चे धागे से लटकी तलवार की तरह वो हर समय पति के सिर पर मंडराने लगी थी।
आनंद जी ने एक पल के लिए पेन उठाई, कुछ लिखा और फिर पेन रख दिया।
सोनम बौखलाती हुई उनके पास आयी, कागज उठाया और पढ़ने लगी।
आनंद जी ने लिखा था, “मुझे नहीं करनी हैं बातें तुमसे, ऐसा कहकर वो रूठ जाते हैं और मुझ से बात करने के लिए वो मेरे इर्द-गिर्द ही मंडराते हैं।”
सोनम ये पंक्तियां पढ़ कर बुरी तरह झेंप गयी। उसके दिल के एक कोने से आवाज आयी, किसी को कहानी लिखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।’
फिर दिल के दूसरे कोने से आवाज आई, ‘कहानी तो तुम्हें लिखनी ही पड़ेगी।’
कुछ दिनों तक अबोला सा ठहर गया दोनों के बीच। एक हफ्ते बाद आनंद जी ने पुकार लगायी सोनम को, “चली भी आओ अब। हकीकत में मेहरबां बनकर… आज इंतजार तुम्हारा दिल को हद से ज्यादा है…”
उन्होंने आगे लिखा-
‘लोग पूछते हैं वजह तेरे मेरे करीब होने की,
बता दें उनको मैं इश्क हूं और तू आदत है मेरी
दिल के दर्द को छुपाना कितना मुश्किल है,
टूट के फिर मुस्कुराना उतना ही मुश्किल है
किसी के साथ दूर तक जाओ और फिर देखो,
अकेले लौट के आना कितना मुश्किल है’
वो चंद पंक्तियां सुनते ही सोनम के आंसुओं को जैसे पुचकार मिल गयी।
“सॉरी सोनम, वैरी सॉरी, नहीं लिख पाया मैं कहानी। कभी किसी पत्रिका द्वारा कविता प्रतियोगिता आयोजित हो तो भेज देना ये मेरी कविता।”
सुना है, सोलह कला संपन्न सोनम ने इस कागज के पुर्जे को बड़े एहतियाद से संभाल कर रखा है। न सिर्फ संभाल कर रखा है, बल्कि जवाब भी दिया है-
‘जिनकी यादों से रोशन है मेरी दुनिया, खुशी इस बात की है कि उन्हें मैं भी याद आती हूं।’
उसका विश्वास है कि इस पुर्जे पर संसार की सबसे बेहतरीन कविता लिखी गई है और कभी कविता प्रतियोगिता आयोजित हुई तो आनंद जी की ये कविताएं सर्वश्रेष्ठ घोषित होगी।
तब तक वो किसी ऐसे प्रकाशक की तलाश में है जो इन कविताओं को छाप दे और ऊपर लिख भी दे- ‘हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कविता!’
- पुष्पा भाटिया
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