"नित्या, अब निकल भी आओ बाहर, बारात आने वाली है, लग रहा है दुल्हन तुम्हीं हो। बेचारी दुल्हन तो कब की नहा-धोकर मुंह ढके तुम्हारा इंतजार कर रही है।" बिन्दा मौसी की आवाज पर नित्या का आईलाइनर लगाता हाथ हिल गया।
"क्या मौसी, कितनी मेहनत से डबल विंग्स लगा रही थी, सब बिगड़ गया। दुल्हन मुंह ढक कर मेरा इंतजार क्यों कर रही है? मैं दूल्हा हूं क्या, मेरे संग फेरे लेने हैं?" नित्या हंस दी।
"तुम लड़कियां शहर जाकर न, सब रीति-रिवाज, परंपराएं बिसरा दो। अरे, स्नान के बाद दुल्हन को सबसे पहले उस सुहागन के दर्शन कराए जाते हैं, जो अपने ससुराल में खुश है, जिसका पति उसे बहुत चाहता है, जो हर तरह से सुखी है। और हमारे खानदान क्या, इस पूरे गांव में तुझसे सुखी भला कौन है? हर लड़की तेरे जैसी सौभाग्यशाली होना चाहती है।" बिन्दा मौसी अभी भी दरवाजे पर खड़ी थीं।
"नित्या की बच्ची, कितना फाउंडेशन थोपेगी? ऐसे चिपड़ रही है मेकअप, जैसे ये आखिरी मौका हो, इसके बाद कभी सजने-संवरने नहीं मिलेगा।" यह नित्या की बचपन की दोस्त वृंदा थी।
"शिव-शिव-शिव, कैसी मनहूस बातें कर रही है करमजली, खुद हमारी छाती पर मूंग दल रही है अब तक, और बच्ची को टोक लगा रही है? क्यों आखिरी बार सज रही? मेरी गुड़िया हमेशा सजी-संवरी रहे।" बिन्दा मौसी को बेटी की बे-शऊर बात का बुरा लग गया था।
"गुड़िया..." नित्या के जेहन में यह शब्द अटक गया।
"मिस्टर सौरभ, आपका वाइफ एकदम गुड़िया का माफिक है। बार्बी डॉल लगता है। आप बहुत लकी है शोत्ति।" बिन बीवी का लिहाज किये लाल-लाल आंखों से घूरते हुए जब सौरभ के बॉस ने डिनर टेबल पर यह कहा, नित्या को पूरे बदन पर चींटियां सी रेंगती महसूस हुईं।
"जितना ब्यूटीफुल है, उतना गुणी भी, कितना टेस्टी ऑथेंटिक बेंगाली डिशेज बनाया है। आई एम इम्प्रेस्ड।" बॉस की बीवी ने भी खुले दिल से तारीफ की।
"अरे, कुछ क्रेडिट हमारे खाते में भी डाल दीजिये सर। हम न होते तो अभी बछिया को नहला रही होतीं मैडम, गैया के भूसे में सानी मिला रही होतीं, गोबर पाथ रही होतीं। गंवार ही रह जाना था इनको, हमारा क्या था, शहर की एक से एक हाइली क्वालिफाइड छोरियां लाइन लगाए खड़ी थीं, लॉटरी लगी इस गांव की गोरी की।" सौरभ फूहड़ सी हंसी हंसा और नित्या मुस्कुराकर रह गई। बेइज्जती का यह तो सबसे कम लेवल था। नित्या ने मन में सोचा, काश! यह लॉटरी न लगती।
नित्या चार बहनों में सबसे बड़ी थी, लड़के की आस में बेटियों की लाइन लगा दी गई थी। वह सबसे सुंदर और मेधावी थी। बचपन में ही पड़ोस में रहने वाले आरुष से सगाई कर दी गई थी। दोनों कम उम्र से ही अपनी डेयरी सफलतापूर्वक चला रहे थे, दोनों मेहनती, बिजनेस माइंडेड थे।
एक दिन सौरभ की मां किसी रिश्तेदार के यहां शादी में आईं। तभी उनकी नजर सजी-धजी नित्या पर पड़ी। वे उन मांओं में से थीं, जिन्हें अपने बेटे में कोई कमी नजर नहीं आती थी। अपने मानसिक रोगी बेटे का सही इलाज कराने की बजाय, शादी कर दो, सब ठीक हो जाएगा, ऐसा मानने वाली। उसके स्वभाव की वजह से जो भी उसे जानते थे, दूर ही रहते थे, ऐसे में गांव की सीधी-सादी, पढ़ी-लिखी, बेहद सुंदर लेकिन गरीब लड़की से बेहतर कौन सा रिश्ता होता?
"लेकिन दीदी, नित्या का रिश्ता तो बचपन से तय है। दो साल बाद निशा भी 18 की हो जाएगी। अभी सगाई करके बाद में शादी कर सकते हैं।" उसकी मां ने कमजोर सा प्रतिरोध किया भी था।
"नहीं, वह अभी बहुत छोटी और अल्हड़ सी है। नित्या बेहद सुलझी समझदार है। सगाई ही हुई है न, फेरे या गौना तो नहीं हुआ। बस मेरे बेटे को यह बात पता न चले, तो ही ठीक है। सोच लीजिए, नित्या को सौंप देंगे तो बाकी तीनों की शादी की जिम्मेदारी मेरी।"
बस इस ब्रह्मास्त्र के आगे आयुष की मिन्नतें, नित्या के आंसू, सब बेअसर हो गए और वह सोने के पिंजरे में कैद कर दी गई।
"हालांकि इनकी चाहत ने हमें भी इनका दीवाना बनाकर ही छोड़ा। आई लव यू डार्लिंग।" सौरभ ने उसका हाथ पकड़ा।
नित्या अपने में गुम थी, खयालों से चौंककर बाहर आई।
"जी..."
"जी नहीं, कहो आई लव यू..." सौरभ ने कहा तो उसने पलकें झपकाईं।
"आई...लव...यू...." हर शब्द को खींचते हुए अबके सौरभ ने उसका हाथ इतनी जोर से दबाया कि उसकी हड्डियां तड़तड़ा गईं।
दर्द को जब्त करते उसकी आंखें छलक ही गईं।
"जी आई लव यू टू।" घुटी सी आवाज निकली।
"कितना क्यूट कपल है, एकदम आइडियल, लव-बर्ड्स।" बॉस और उनकी बीवी खाने पर टूटे पड़े थे, किसी का ध्यान ही नहीं था।
"प्रेमी की याद में खोने को वही टाइम मिला था? बॉस के सामने जलील करना चाहती थी?" चटाख! चटाख! दो थप्पड़ गाल पर पड़े, नित्या का सिर घूम गया। डाइनिंग टेबल साफ करते उसके हाथ से प्लेट छूटकर गिर गई।
"गलती मेरी थी। गाय-गोबर की बात नहीं करनी चाहिए थी। याद तो आना ही थी।" अगले थप्पड़ में वह खड़ी न रह सकी, प्लेट के टुकड़ों पर जा गिरी।
जब से सौरभ को आरुष के बारे में मालूम हुआ था, तब से उसके वहशीपन के दौरे जल्दी-जल्दी पड़ने लगे थे। बाहर तो वह आती-जाती पहले ही नहीं थी, अब फोन भी तोड़ दिया गया था।
बड़ी मौसी की बेटी की शादी थी और कोई तरीका नहीं था कि वह पूछने की हिम्मत करती। लेकिन इस बार सास ही साथ ले गई कि लोगों को बातें बनाने का मौका न मिले कि शादी के बाद क्यों कभी मायके नहीं आई बिटिया। अपने बेटे को मनाकर कि साथ ले जाएंगी, पास रखेंगी, दूसरे दिन तुम भी आ जाना, वह उसे गांव ले आई थीं।
वहां तो सभी यही समझते थे कि नित्या का मन अब गांव आने को नहीं करता। बड़े बंगले, महंगी गाड़ी, नौकरों की आदत लग गई है। बस आरुष ही उसकी खैर-खबर लेता रहता और उसे इस नर्क से निकालने की तरकीबें सोचता रहता। अब तो काफी समय से बात नहीं हुई थी, बहुत बेचैन था वह।
उसके आने की खबर से बेहद खुश था, पर सावधान भी। उसे किसी नई मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। बस एक झलक देखना, एक बार आमने-सामने बात करने की ख्वाहिश सिर उठाए थी, जिसे बार-बार कुचल रहा था।
और नित्या सोच रही थी गांव आकर सौरभ का सामना आरुष से हुआ तो वह क्या करेगा? उसका खुद हश्र क्या होगा, सारी ईर्ष्या और खीज उसी पर तो निकलनी थी।
मेकअप से चेहरे की चोटें छिपाने में महारत हासिल कर चुकी थी वह। मन की चोटों को छिपाना नहीं पड़ता, शुक्र है। आत्मा के घाव सच्चे दिल से चाहने वालों के सिवा किसी को नहीं दिखाई देते, यह क्या कम है। और सबको लगता है उसे मेकअप का इतना चस्का लग गया है, हर समय लकदक गुड़िया बनी घूमती है। वह कड़वाहट से मुस्कुरा देती।
अचानक शादी के हंगामे मातम में बदल गए।
"हाय मेरी फूल जैसी बच्ची, नजर लग गई सबकी इसको। खा गया जलन का डाह। कौन सुनाएगा यह खबर उसको? तू ही काली जुबान है जनमजली, तू ही बता अब।" इस सन्नाटे को बस बिन्दा मौसी की आवाज ही चीर रही थी। आदमी सब गायब थे। औरतों में गहमा-गहमी थी। मंडप खाली पड़ा था।
"क्या हुआ है?" नित्या ने धड़कते दिल से पूछा।
"दीदी, आप पहले बैठ जाओ।" वृंदा ने उसे कंधों से पकड़कर बैठाते हुए कहा।
"जीजाजी की कार का एक्सीडेंट हो गया है। डंपर ने परखच्चे उड़ा दिए कार के। कार को कटर से काटकर बॉडी को बाहर निकाला गया और…"
वृंदा ने देखा, नित्या बेहोश हो चुकी थी।
"बेचारी, कैसे बरदाश्त करेगी यह सदमा। उसकी तो दुनिया ही उजड़ गई है।" सब दुख से उसे देख रहे थे।
पूरा गांव अंतिम संस्कार की तैयारियों में लगा था। बॉडी की हालत देखकर मां ने शहर ले जाने की बजाय यहीं अंत्येष्टि करने की इच्छा जताई।
उधर हॉस्पिटल के बेड पर नित्या का हाथ थामे आरुष कह रहा था, "मैं सौरभ की मौत नहीं चाहता था, लेकिन चलो, उस जानवर से तुम्हें छुटकारा तो मिला, वैसे ही धरती का बोझ था। अब तुम्हें किसी का डर नहीं। सुकून की सांस ले सकती हो। खुल कर हंस सकती हो। अपनी जिंदगी जी सकती हो।"
नित्या सोच रही थी कि इतनी खुशी अचानक से कैसे सह लेती वह। यातनाओं के अंतहीन सिलसिले से ऐसे छुटकारा मिल जाएगा, अभी तक उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था। जो सपने पलकों में किरचें बनकर चुभते थे, अब उन्हें सच कर सकती है। अब और कुछ बुरा नहीं सहना होगा उसे, इतनी खुशी भी एकदम से मिल जाए तो बरदाश्त नहीं होती, इसीलिये वह बेहोश हो गई थी, और सब सोच रहे थे, उसे जबरदस्त सदमा लगा है।
सपने को हकीकत में बदलता देखने का यकीन करने के उसने कांपता हुआ हाथ उठाया और धीरे से आरुष के गाल को छुआ। दो मोती उसके गालों पर ढुलक आए, जिसे नित्या ने अपने पोरों पर चुन लिया।
"मैं चलता हूं, कोई न कोई आता होगा। अभी मेरा यहां रहना ठीक नहीं, लेकिन इसके बाद तुम्हें कभी अकेलापन नहीं भोगना होगा, प्रॉमिस।" आरुष कहकर बाहर निकल गया।
इधर वह गया कि उधर निशा चीखती सी आई और उससे लिपट गई, "दीदी, दीदी देखो कौन आया है।"
नित्या ने सामने देखा, दूर से आती उस परछाई को देखकर उसकी आंखें डर से फैल गईं।
"कैसी हो जान? मेरी जुदाई का इतना सदमा ले लिया। हालांकि मैं हार्ट अटैक एक्सपेक्ट कर रहा था। मैं न रहूं तो तुम भी क्या ही करोगी जीकर।" सौरभ अपने उसी ढीठ लहजे में बोल रहा था।
"म....म...मगर" नित्या की आवाज गले में ही घुट गई।
"मैं जिंदा कैसे, यही न। उस कमबख्त कार को भी रास्ते में ही खराब होना था। इतना बेकार रास्ता मैंने जिंदगी में नहीं देखा। मैकेनिक को कॉल करके ड्राइवर को रोका वहीं और मैं बस पकड़कर आ गया। फोन कार में ही छूट गया था। वह बेवकूफ साइड में लगा पाता, इससे पहले ठुकवा ली गाड़ी। दो कौड़ी का आदमी, खुद तो मरा, लाखों की गाड़ी अलग बर्बाद कर दी और…"
सौरभ की बात पूरी होती, उससे पहले ही नित्या फिर बेहोश हो चुकी थी।
"आई एम सॉरी। शी इज नो मोर। वे बच नहीं पाईं। इतने कम समय में दो झटके एक साथ सहने के कारण उनके दिल ने काम करना बंद कर दिया।" डॉक्टर ने मायूसी से कहा।
अस्पताल में अब तक काफी भीड़ जमा हो चुकी थी।
"बेचारी, अचानक मिलने वाले दुख को समझ ही नहीं पाई थी कि अचानक मिली खुशी से दिल ही रुक गया।" भीड़ में सुगबुगाहट थी।
और इधर आरुष की आंखों से सैलाब जारी था। "तो आखिर तुम्हें छुटकारा मिल ही गया हर दुख से, हमेशा के लिए…”
- नाज़िया ख़ान
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