सिल्वर लाइन अपार्टमेंट के सातवीं मंजिल पर रहने वाली नैना शेयर्स के ट्रेडिंग की शौकीन है, साथ ही उसे क्लासिकल म्यूजिक का भी शौक है। सातवीं मंजिल पर सिर्फ चार ही फ्लैट हैं, एक फ्लैट में सिर्फ एक लड़की रहती है। लिफ्ट में आते-जाते उससे हाय-हेलो हो जाती है। इससे अधिक न उसने मिक्स होने की कोशिश की और न ही नैना ने, वैसे भी नैना को किसी से अधिक मिलना जुलना पसंद नहीं।
वह अपने अकेलेपन में खुश रहती है। एक दिन बैंक से आकर शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव देख रही थी कि फ्लैट की घंटी बजी। समय यही कोई शाम के 8 बज रहे थे। ‘इस समय कौन होगा’, सोचते हुए वह उठी। दरवाजा खोला, तो सामने वाले ने तपाक से अपना हाथ यह कहते हुए आगे बढ़ाया, “हाय मैं चेतन शर्मा, नैना क्या मैं तुम्हारे यहां अपना मोबाइल चार्ज कर सकता हूं? वो क्या है कि मैं कल ही आपके सामने वाले फ़्लैट में शिफ्ट हुआ हूं। शॉट सर्किट होने की वजह से लाइट नहीं है।”
नैना को ताज्जुब हुआ कि इसे मेरा नाम कैसे पता चला और उसने घूरते हुए पूछा, “आपको मेरा नाम कैसे पता चला?” उस पर चेतन ने मुस्कुराकर कहा, “मैं आपके दरवाजे पर खड़ा हूं, जहां आपके नाम की नेमप्लेट लगी है, जिस पर लिखा है नैना सहगल।”
नैना उसका जवाब सुनते ही झेंप गई और उसका मोबाइल लेकर चार्जिंग पर लगा दिया।
आधे घंटे बाद चेतन अपना फोन लेने आया, फोन 45% चार्ज हो चुका था। “चलो इतने में रात का खाना तो ऑर्डर कर ही सकता हूं,” वह अपने आप में बुदबुदाया और “थैंक यू” कहकर मुड़ गया। “किसी और चीज़ की जरूरत हो तो बताना,” न चाहते हुए भी उसके मुंह से निकल गया।
नैना ने ऑफिस आते-जाते नोटिस किया कि चेतन के फ़्लैट का दरवाजा खुला रहता, जहां से रविशंकर के संगीत की धुनें सुनाई देती हैं। कभी-कभी वह गिटार बजाता भी नजर आता।
धीरे धीरे चेतन का नैना के फ़्लैट की घंटी बजाना बढ़ता गया, कभी चाय के लिए चीनी मांगने आ जाता, तो कभी गिटार साफ करने के लिए थिनर न होने पर नेल पॉलिश रिमूवर की मांग कर बैठता। वह इतने हक व अधिकार से आता कि नैना उसे मना नहीं कर पाती। नैना को उसका घंटी बजाना रास आने लगा था। यदि किसी दिन वह नजर नहीं आता तो नैना बेहद अकेलापन व बोरियत महसूस करती।
वैसे अपनी लाइफ में अकेलापन उसने खुद ही चुना था, पर पता नहीं क्यों व कैसे ये चेतन शर्मा नामक शख्स नैना की लाइफ में बिना किसी कारण धड़ल्ले से घुस आया था।
नैना को लगता कि वह चेतन के बारे में इतना क्यों सोचने लगी है। कहां ‘मैं’ ढलती दोपहर सी 40 साल की औरत और कहां यह 30-32 का बिंदास व लापरवाह।
एक दिन वह बैंक से आकर टीवी देख रही थी, तभी फ़्लैट की घंटी बजी। दरवाजा खोलकर देखा, तो चेतन हाथों में कॉफी के दो मग लिए खड़ा था।
नैना ने उसे हैरानी से देखा। चेतन एकदम से बोला, “आज कॉफी तुम्हारे साथ बैठकर पीने का मन है, वैसे मैं कॉफी बहुत अच्छी बनाता हूं।”
नैना हैरानी से उसका चेहरा पढ़ने लगी और धीरे-धीरे बातों का सिलसिला चल निकला। ढेर सारी बातें मौसम, राजनीति, म्यूज़िक के इर्दगिर्द घूमती रहीं।
एक दिन शाम को सफेद एप्रन पहने, सिर पर शेफ की कैप लगाए पास्ता विद व्हाइट सॉस ट्रे में सजाकर ले आया। अक्सर उसका यह बेधड़क जब तब चले आना, उम्र के फर्क को नजरअंदाज करते हुए नैना को नाम से बुलाना, उसे दोस्ती का एहसास कराना दिन-ब-दिन बढ़ता गया। उससे मिलकर नैना को अपने स्वभाव में धीरे-धीरे बदलाव महसूस होने लगा। कब, क्यों व कैसे चेतन उसे अच्छा लगने लगा। पर क्या चेतन एक दोस्त से ज्यादा हो सकता था?
एक दिन अचानक जब वह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल रही थी, तो दरवाजे पर चेतन खड़ा मुस्कुराता दिखा। नैना बाय कहकर लिफ्ट की तरफ बढ़ती इससे पहले चेतन ने आगे बढ़कर ‘लुकिंग प्रीटी’ कहते हुए उसका गाल चूम लिया। नैना ने चिढ़कर उसे एक थप्पड़ लगा दिया। दूसरे ही पल दोनों एक दूसरे को आंखें फाड़कर देखने लगे। लिफ्ट आयी और नैना ऑफिस के लिए निकल गई।
पूरा दिन ऑफिस में उसके दिल और दिमाग के बीच जंग छिड़ी रही। शाम को घर निकलने से पहले चेतन का मैसेज आया, ‘क्या मैं शाम को आपके साथ कॉफी पीने आ सकता हूं?’ न चाहते हुए पता नहीं क्यों उसने मैसेज के जवाब में ‘ओके’ लिख दिया।
वह सोचती रही आखिर उसके और चेतन की उम्र में कितना फासला है। क्या इश्क में उम्र मायने रखती है?
कॉफी फेंटते हुए वह चेतन का इंतजार करने लगी और सोचती रही कि उसे चेतन में क्या कुछ अच्छा लगता है। उसने महसूस किया कि चेतन की अच्छाइयों की लिस्ट उसके मन में लंबी होती जा रही थी और चेतन को लेकर उसकी नाराजगी कम हो रही थी, जो उम्र का फासला कम करने के लिए काफी थी। तभी डोर बेल बजी और नैना ने दौड़कर दरवाजा खोला। चेतन गुलाब के फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता लिए खड़ा था और ‘सॉरी’ कहकर मुस्कुराता हुआ अंदर आ गया।
नैना मुस्कुराई और बोली, “इस समय मुझे तुम्हारा ‘सॉरी’ कहना बुरा लग रहा है।”
“तो फिर मैं तुम्हें क्या कहूँ?” चेतन ने पूछा।
“पहले कॉफी पियो,” और वह कॉफी लेने किचन की तरफ बढ़ गई।
कॉफी का मग उठाते हुए चेतन ने बहुत बेबाकी से पूछा, “नैना, क्या तुम डरपोक हो?”
नैना ने उसके सवाल को इग्नोर करते हुए अपना सवाल दागा, “चेतन, डू यू लव मी?”
“यस, आई डू” चेतन ने उसकी आंखों में आंखें डालते हुए जवाब दिया।
“और उम्र का फासला..?” नैना ने हल्के से पूछा।
चेतन उठा और उसके बहुत करीब आकर बोला, “मुझे तो कोई फासला नजर नहीं आता।”
नैना ने आगे बढ़कर रहे सहे फासले को भी मिटा दिया था।
बैकग्राउंड में बजता म्यूजिक दोनों की धड़कनों से मेल खा रहा था, जहां फासले सिमट रहे थे।
- माधुरी गुप्ता
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