“लाइट बंद कर दे और सो जा। कहीं मिस ड्रैकुला ने कमरे को रोशनी से जगमगाता देख लिया तो कमरे की ही नहीं, तेरी लाइफ की भी सारी बत्तियां बुझा देंगी। माना कि तू उनकी फेवरेट स्टूडेंट्स में से एक है, लेकिन मिस ड्रेकूला अपने गाउन की सिलवटों को ठीक करते हुए कहेंगी, ‘यू नो रूल इज रूल’,” कनिका ने ठहाका लगाया।
किसी की भी नकल उतारने में न सिर्फ वह माहिर थी, बल्कि बोलते हुए उसके चेहरे पर आने वाले भाव भी हूबहू उस व्यक्ति जैसे हो जाते, जिसकी वह नकल उतार रही होती। अभिनय जैसे उसे विरासत में मिला था। उसकी नानी फिल्मों में काम करती थीं, ऐसा वह बताती है। पर शायद नामी कलाकार नहीं थीं, क्योंकि कोई भी उनके नाम से वाकिफ नहीं है। हॉस्टल की लड़कियां तो बिल्कुल भी नहीं, जो ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के समय पैदा भी नहीं हुई थीं। वह कई बार खुद ही कहती, “हमारी नई पीढ़ी, माई फुट। क्या समझ है इन्हें कला और कलाकार की। बेशक नानी को अब कोई नहीं जानता, पर आई एम श्योर अपने जमाने में वह अवश्य ही बेहतरीन कलाकार होंगी।”
‘यू नो रूल इज रूल’, उसने जिस अंदाज में कहा था, वह सुनकर तो मुझे भी एकबारगी लगा जैसे मिस लवीना ही सामने खड़ी बोल रही हैं। मैंने उसे घूरकर देखा तो वह सिगरेट का कश लेते हुए बोली, “यूं न मुझे देख, कहीं डर से जान ही न निकल जाए, मेरी जान।” धुंआ उड़ाते हुए एक लंबी सांस लेते हुए वह टांगें फैलाकर पलंग पर लेट गई। ट्रांसपेरेंट स्काई ब्लू कलर की नाइटी में वैसे भी उसका शरीर छिपने से मना कर रहा था। हर जगह से बाहर झांकने को आतुर था। उसकी गोरी, चिकनी, संगमरमरी टांगें जैसे पलंग की चादर को छूकर उस पर एहसान कर रही थीं, उसे अपनी सुंदरता से मुग्ध करते हुए।
“कितना प्यारा नाम है उनका और तू उन्हें मिस ड्रैकुला कहकर नाम की ही नहीं, उनकी सुंदरता की भी ऐसी की तैसी कर देती है। मिस लवीना, अहा! कितना मोहक नाम है उनका। नाम लेते ही मुंह में मिश्री-सी घुल जाती है। वैरी बैड कनिका। कम से कम उनकी उम्र और ओहदे का तो मान रख लिया कर,” मैंने आंखें तरेरीं।
“हाय मेरी जान, नाम ही क्यों, वह तो पूरी की पूरी किसी शाहजहां का हसीन ख्वाब हैं। संगमरमरी कायनात हैं, एक तिलिस्म हैं, एक हसीन मूरत हैं। वाह, क्या बात कही मैंने! माशाअल्लाह! तेरी ड्रैकुला ने तो मुझे शायर बना दिया। यह तो सच है कि वह किसी मूरत से कम नहीं हैं, क्योंकि पत्थर दिल जो हैं, फीलिंगलेस सोल।
पर यार, पचास साल की लगती ही नहीं हैं। क्या फिगर है, क्या कर्व्स हैं, क्या रंगत है और क्या होंठ हैं… मुझे मौका मिले तो चूम लूं उन्हें। पर हाय री उनकी किस्मत, कोई पुरुष तक नहीं है उनके जीवन में, होंठों को कौन चूमेगा! फिर ऐसी खूबसूरती का क्या फायदा? जवानी में तो बिल्कुल खिले गुलाब सी रही होंगी। क्या सच में उनका रसपान किसी ने नहीं किया होगा? तभी तो संगमरमर की बुत ज्यादा लगती हैं। पर कोई नहीं, मैं उस बुत को अपने ड्रांइगरूम में सजाने को तैयार हूं।” कनिका ने एक अंगड़ाई लेते हुए ऐसे कहा मानो खुद उस समय किसी पुरुष की बलिष्ठ बांहों में होने की कल्पना कर रही हो।
“हाय मिस लवीना, कोई लव नहीं है क्या तुम्हारा?” बिस्तर से उठकर वह मेरे पास आ गई और मुझे कसकर भींच लिया।
“हट परे। मैं तेरा ब्वॉय फ्रेंड नहीं हूं, न ही लेस्बियन हूं, इसलिए मुझसे लिपटकर कोई गंदे विचार मन में लाना भी मत,” मैंने हंसते हुए उसे पीछे धकेल दिया।
“उफ! क्यों याद दिला दी उसकी? आज रात तो बस ख्यालों में बीतेगी। हफ्ते भर से मिली भी कहां हूं उससे। इतवार को ही तो आता है मुझसे मिलने। हाय-हाय ये मजबूरी, ये हॉस्टल और ये दूरी, मेरे करोड़ों की जवानी जाए…” उसने एक और सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
कनिका पारेख कब क्या बोल देगी, कोई अनुमान नहीं लगा सकता। न वह किसी से डरती है, न किसी की परवाह करती है। बिंदास, बेबाक और कुछ कहे तो लड़ने-मरने को तैयार। पर जब बात दोस्ती निभाने की आती है या किसी के हक के लिए लड़ने की तो सबसे पहले वही कूदती है न्याय दिलवाने को। इकलौती संतान है। पैसा इतना है कि खुले हाथों से लुटाती है। हॉस्टल के डीलक्स कमरे को अफोर्ड कर सकती है और ठाठ से अपनी प्राइवेसी के साथ अकेली रह सकती है। सुख-सुविधाओं का आनंद उठा सकती है, पर हमारी दोस्ती जो स्कूल के समय से चली आ रही थी और समय के साथ और प्रगाढ़ हो गई है, उसकी वजह से वह मेरा साथ कहीं भी नहीं छोड़ती। स्कूल, कॉलेज, और अब हॉस्टल का कमरा भी शेयर करते हैं। उसके पापा चाहते थे कि वह एमबीबीएस की पढ़ाई कर डॉक्टर बने, लेकिन वह उनमें से नहीं जो किसी की भी बात आसानी से मान जाए। मैंने हिंदी लिट्रेचर लिया था और उसने साइकोलॉजी ऑनर्स।
“मम्मी-पापा चाहते हैं कि मैं डॉक्टर बनूं। बात तो नाम के आगे डॉक्टर लिखने की ही है न, साइकोलॉजिस्ट या साइकेट्रिक्स भी तो डॉक्टर होते हैं,” उसने कहा था। अपनी बात पर अड़ना और उसे मनवा लेना उसकी खूबी थी, पर साथ ही दूसरे को पता नहीं लगने देती थी कि उसकी बात उसने नहीं मानी।
पापा का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो जाने के कारण मेरा हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना मेरी मजबूरी थी, पर कनिका के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी और न ही वह ऐसी थी कि किसी मजबूरी को अपने ऊपर हावी होने दे। मुझे हॉस्टल में कंपनी देने के अलावा यहां रहने के पीछे उसका एक और उद्देश्य है, जिसके बारे में केवल मुझे ही जानकारी थी। उसका थियेटर से जुड़े रहना, जो घर पर रहकर संभव ही नहीं था। उसकी मां अभिनय और फिल्मों या मंच पर नाटक करने की बात सुन भड़क उठतीं। शायद उन्हें अपनी मां का अभिनय करना पसंद नहीं होगा या बचपन की कड़वी यादें होंगी। कनिका ने फर्स्ट ईयर में थियेटर ग्रुप बना लिया और उसमें बहुत एक्टिव रहने लगी।
“और तू जो ये कश पर कश ले रही है, तुझे छोड़ देंगी मिस लवीना?” मैंने उस पर कागज की बॉल बनाकर फेंकते हुए कहा। मैं नोट्स बना रही थी स्टडी टेबल पर बैठी और नाइट लैंप जलाया हुआ था जिसे लेकर उसने इतना शोर मचाया। ‘रोशनी से जगमगाता कमरा,’ उसकी बात पर मैं मन ही मन मुस्कुराई। एक तरफ उपमाओं और बिंबों का प्रयोग बहुत शालीनता से करती है तो दूसरी तरफ भाषा की धज्जियां उड़ाने से भी गुरेज नहीं करती। पढ़ने के लिए रात के बारह बजे तक उतनी रोशनी जलाने की अनुमति है। वैसे भी एक्जाम शुरू होने वाले थे और इस दौरान मिस लवीना अनुशासन में ढील दे ही देती थीं।
मेरे नोट्स लगभग बन ही चुके थे, इसलिए टेबल लैंप बंद कर मैंने पलंग की साइड टेबल पर रखे लैंप का जीरो वॉट का बल्ब जला दिया। लाल रंग का बल्ब था, इसलिए पलंग के ठीक पीछे एक गोल घेरा बन गया जो डूबते सूरज जैसा लग रहा था। लैंप शेड से छनती रोशनी दीवार पर एक तिलिस्म पैदा कर रही थी। एक अजीब-सा तिलिस्म, न जाने क्यों मन कांप गया… जीवन में न जाने किस तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं!
सिगरेट का धुंआ उड़ाती बिंदास कनिका हॉस्टल में इसलिए रहती है ताकि वह थियेटर से जुड़ी रहे। हर हफ्ते छिपकर बॉयफ्रेंड से मिलती है, मिस लवीना को मिस ड्रैकुला कहकर उनका मजाक उड़ाती है… लेकिन इन सबके बावजूद वह जान छिड़कने वाली दोस्त और अच्छी इंसान है। कनिका अपनी दोस्ती कैसे निभाती है ये आगे पढ़िए…
- सुमन बाजपेयी
यह धारावाहिक 10 किस्तों का है, अगली किस्त कल पढ़िए
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