“मम्मी वह यलो टॉप दिला दो न प्लीज, देखो न सिर्फ पांच सौ का तो है।”
“पिछले महीने दो ड्रेस ले चुकीं तुम कियारा, हर महीने बजट गड़बड़ा देती हो। अभी तुम्हारे कॉलेज की फीस भी जमा करनी है।” मम्मी ने गुस्से से घूरा तो कियारा मुंह बनाकर रह गई।
“सुपर मार्केट से शॉपिंग के फायदे के साथ-साथ नुकसान भी बहुत हैं। डिस्काउंट पर राशन मिल जाता है, पर कपड़े, जूते, कॉस्मेटिक्स… ये सब भी दिल ललचा देते हैं। बजट न बिगड़ जाए, इसलिए मम्मी कभी अकेले नहीं आने देतीं।
“बजट हुंह… कभी सुधरा है हमारा आज तक!” कियारा का मन कड़वा हो गया। ऊपर से कार का दरवाजा खोलते ही अन्नू को देखकर बचा खुचा मूड भी खराब हो गया।
अन्नू उर्फ अनिकेत, उसके घर के स्टोर रूम नुमा कमरे में किराए से रहता था। वह पोर्शन बिल्कुल सेपरेट था, मेन गेट के अलावा सबकुछ अलग था। वह कुछ पढ़ाई कर रहा था, जिसके बारे में जानने में कियारा की कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसे बस इस बात की चिढ़ थी कि वह कैब ड्राइवर था। वह महीने में एक बार उसे और उसकी मम्मी को लेकर सिटी चला जाता था, जहां से जरूरत का सारा सामान दिलवा देता था एक ही राउंड में। इसके अलावा भी कभी गाहे-बगाहे जाना हुआ कहीं, तो वह मौजूद रहता था।
बचपन में सड़क हादसे में पापा को खोने के बाद कियारा को ड्राइविंग से फोबिया हो गया था, कभी स्कूटी चलाना सीखी ही नहीं। कार वे लोग अफोर्ड कर नहीं सकते थे। मम्मी की कत्थक क्लासेस और घर के किराए की बदौलत उसका ग्रेजुएशन चल रहा था। ट्यूशन पढ़ाना, पार्ट टाइम जॉब ढूंढना, इन सब में उसकी कोई रुचि नहीं थी। उसे लगता था, वह कोई शहजादी है, जो गलती से कंगले घर में पैदा हो गई है। वह सेल्फ मेड वाली बकवास में भी ज्यादा विश्वास नहीं रखती थी। उसे लगता था सफलता सुंदरता के पीछे-पीछे भागती है। अगर उसने खुद को मेंटेन न रखा, पढ़ाई में घंटों बैठकर मोटी हो गई, आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स आ गए या जॉब की मेहनत में गोरी दमकती रंगत कुम्हला गई, तो कौन प्रिंस उसे ब्याहने आएगा।
एक समय के बाद मां ने भी समझौता कर लिया। वे समझ गईं कि ज्यादा सख्ती की, तो लड़की उनसे किनारा कर लेगी।
उसका सपना विदेश में सेटल होने का था, और यह भरोसा उसे अपनी कलीग उर्वशी की वजह से मिला था, जिसका भाई गौतम लंदन में सेटल था और दो साल पहले जब इंडिया आया हुआ था, पहली नजर में ही उस पर दिलो-जान से फिदा हो गया था। उसके गिफ्ट किये फोन से दिन-रात वे बातें करते रहते। आलीशान होटल, महंगी गाड़ी, खूबसूरत घर और फार्म-हाउस, सबकुछ कितना फिल्मी था। वह जैसे-तैसे अपनी डिग्री कम्प्लीट होने के इंतजार में थी बस।
हफ्ते में कम से कम दो बार तो वह उर्वशी के घर का फेरा लगा ही आती थी और गजब की आलसी और नकचढ़ी कियारा की फुर्ती और मिलनसारिता तब देखते ही बनती थी। अचार-बड़ी बनाने से लेकर तो एम्ब्रॉयडरी, सिलाई, कुकिंग कितने ही तरह के सुघढ़ बहू वाले हुनर वह प्रदर्शित करती रहती थी। उर्वशी के भी पिता नहीं थे इसलिए दोनों मां-बेटी उसके आने से निहाल रहतीं।
कियारा का बर्थडे था और अन्नू किसी जरूरी काम से अपने घर गया हुआ था। इसलिए ‘हैप्पी बर्थडे’ वाला मैसेज किया था उसने रात को बारह बजते ही, लेकिन कियारा ने सीन तक नहीं किया। उसे गौतम के कॉल का इंतजार था। लेकिन उसने कॉल नहीं किया तो कियारा की आंखें भर आईं। उसे यकीन था, वह भूला नहीं है, जरूर कोई परेशानी होगी। जब अगली सुबह भी उसका कोई कॉल या मैसेज नहीं आया तो उससे कंट्रोल नहीं हुआ। उसने कॉल बैक किया तो फोन स्विच ऑफ था। ऐसा पहली बार हुआ था तो परेशानी की हालत में उर्वशी को कॉल करने की बजाय सीधे घर ही जाने का फैसला कर लिया। उसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था।
सुबह के नौ बजे थे, गेट खुला था तो उसे नॉक करने का भी ख्याल नहीं आया। जैसे ही वह घर में घुसी, उर्वशी के मुंह से अपना नाम सुनकर वहीं ठिठक गई। दोनों मां-बेटी बातें कर रही थीं।
“आज उस चुड़ैल कियारा का जन्मदिन भी है, कुछ देना पड़ेगा क्या उसे?”
“कोई जरूरत नहीं है, मेरा बच्चा वहां उस एक डायन के मारे परेशान है, अब एक इस पर भी खर्चा करें? जैसे-तैसे टैक्सी चलाकर गुजर-बसर कर रहा था, पर फूटी किस्मत, मालिक की लड़की ने केस कर दिया गलत नीयत से छूने का। वहां तो सुना है सजा भी कठोर होती है। पैसा भी पास नहीं, कैसे झेलेगा मेरा मासूम बच्चा ये सब?” उर्वशी की मां रुआंसी हो गईं।
“मासूम तो मत ही कहिये मां। भैया की इन्हीं कारस्तानियों की वजह से उन्हें जैसे-तैसे कबूतरबाजी करके लंदन दफा किया था। हमारे स्कूल और परिवार की लड़कियां सीधी-सादी कम हिम्मती थीं, जो उसकी हरकतें बर्दाश्त कर गईं। नहीं तो यहां भी जेल में ही सड़ता।
सोचा था कियारा जैसी लड़की मिल जाएगी तो कहीं बार टेंडर वगैरह की जॉब तो कर ही लेगी। वैसे भी वहां कामवाली बाइयां मिलना कितना मुश्किल है, कितनी तो सेलरी और जमाने भर की शर्तें। औकात है भी नहीं भैया की इतनी और यह कियारा सुंदर है, गरीब है, मेरे नोट्स बना देती है, घर के कितने ही काम निपटा जाती है। उसका लालच हमारे काम ही आ रहा था अब तक। एक बार लंदन पहुंच जाती तो खुद से वापस आ भी नहीं पाती। अब उसे अलग से कोई कन्विनसिंग बहाना बनाना पड़ेगा कि क्यों भैया कॉल नहीं कर रहा।”
कियारा को समझ नहीं आ रहा था कि आज उसकी किस्मत फूट गई है या उस पर मेहरबान है, क्योंकि उसका आना उन दोनों मां-बेटी ने नोटिस नहीं किया था, न ही उसका चुपके से जाना। उनको तो अंदाजा भी नहीं था कि वह सुबह-सुबह ऐसे आ जाएगी।
वहां से कैसे भागकर वह अपने घर पहुंची, उसे याद नहीं। घंटों रो चुकने के बाद जब वह फोन तोड़ने लगी कि अन्नू के 3 मैसेज और दिखे। उसका मन वितृष्णा से भर गया। उसने सोचा आज इसे ही खरी-खोटी सुनाकर मन हल्का कर ले। उसने मैसेज खोला तो पहला बर्थडे विश का था, दूसरा एक गिफ्ट पैक का था, जो जाने से पहले वह अपने रूम में रख गया था और उससे खोलने की गुजारिश की थी। बाकी भी उसी सिलसिले में थे।
वह गुस्से से भरकर उठी और चाबी उठाकर पहली बार अन्नू के रूम की तरफ बढ़ी। बेड पर बड़ा सा गिफ्ट बॉक्स रखा था। उसने चाकू उठाया और बेदर्दी से उसे काट दिया। उसमें बहुत सारे छोटे-छोटे बॉक्स थे। पहला खोलते ही उसे वह यलो टॉप दिखा, जो उस दिन मम्मी से खरीदने की जिद कर रही थी। साथ में ब्लैक और सिल्वर सीक्वेंस वाली वह स्टाइलिश वन पीस ड्रेस थी, जिसे वह किसी पार्टी में पहनना चाहती थी, पर बारह हजार कीमत पढ़ते ही उसे वापस रख दिया था।
दूसरे बॉक्स में नाजुक सा गोल्ड ब्रेसलेट था, जिस पर कियारा लिखा था, उसने मम्मी से जिद की थी कि अगले बर्थडे पर उसे वही चाहिए, ज्वेलरी भी एक तरह की सेविंग ही होती है।
अगले बॉक्स में वैसी ही सेंडल थी, जिसका स्ट्रेप टूट जाने से वह बहुत दुखी हुई थी। हैंड बैग, लिपस्टिक, इयररिंग्स, घड़ी से लेकर वो सारी छोटी-छोटी चीजें, शॉपिंग करते समय जिन्हें खरीदने की वह जिद करती और न मिल पाने पर मन मसोसकर भूल भी जाती।
उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका दिल मुट्ठी में लेकर भींच दिया हो। जिस कैब ड्राइवर से वह नफरत करती थी, उसने कियारा की एक-एक ख्वाहिश को सहेजे रखा था और जिस लंदन ड्रीम के पीछे वह पागल थी, वह भी ड्राइवर, ऊपर से क्रिमिनल।
चकराते सिर से उसने आखिरी पैकेट खोला, जिसमें एक लेटर था, जिसमें अन्नू ने न केवल सच्चाई से अपनी भावनाओं का इजहार किया था, बल्कि अपनी एमबीए की मार्कशीट और जॉब के अपॉइंटमेंट लेटर की फोटो कॉपी भी रखी थी। वह इतना ब्रिलियंट स्टूडेंट है, उसे अंदाजा नहीं था। जॉब भी शानदार पैकेज पर लगी थी।
उसने पूछा था कि वह सपनों का राजकुमार नहीं है, मजदूर तो किसी लड़की के सपने में आते नहीं, न ही ड्राइवर। वह कार उसी की थी। उसके पापा हाईकोर्ट में जज हैं और मम्मी पुलिस कमिश्नर। अपने पैरों पर खड़ा होकर वह अपने दम पर कुछ करना चाहता था, इसलिए यहां रह रहा था। अगले महीने उसे बैंगलुरू जॉब जॉइन करना थी। वह चाहता था कि साल, छह महीने, दो साल, जितना भी समय उसे लगे, वह उसके बारे में कम से कम सोचे और जवाब दे, क्या वह उसकी जीवनसंगिनी बनना चाहेगी?
कियारा को दीपक तले अंधेरा वाली कहावत सच होती सी लगी। दीपक उसके घर में रोशन था और वह चमक-दमक के पीछे छिपे अंधेरों को मुकद्दर बनाने चली थी। भला हो अनिकेत के सच्चे जज्बे का, जिसने दुआओं में बस उसे ही मांगा था, समय रहते वह सचेत हो गई थी और एक झटके से ही समझदार भी।
उसे जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना था अभी, कुछ पुरानी गलतियों को सुधारना था, रवैया बदलना था… और फिलहाल तो रिप्लाई की उम्मीद लगाए उस प्यारे से शख्स को बहुत सारा ‘थैंक्यू’ और ‘सॉरी’ बोलना था, आगे ‘लव यू’ बोलने की गुंजाइश भी कायम रखनी थी...
- नाज़िया ख़ान
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