वो पूरी रात करवट बदलता रहा:उससे भी ज्यादा वह उसको नहीं भूल पा रहा था, जो शर्माते हुए नेहा को खींच ले गई...

10 महीने पहले
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घर से दूर घनश्याम को नौकरी करते हुए पूरे दो साल बीत चुके थे। अब दो सप्ताह की छुट्टी पर वह घर लौट रहा था। रास्ते में किसी वजह से ट्रेन आधे घंटे के लिए रुक जाती। जब ट्रेन रुकती तो शालिनी और नेहा की बातें और तेज हो जातीं। उनका संवाद ऐसा कि सभी ठिठोली मारकर हंसने लगते।

हंसी मजाक की इन बातों को सुनकर घनश्याम भी मुस्कराने लगा। तभी शालिनी की नजर घनश्याम पर गई। वह शर्माते हुए नेहा को दूसरी ओर खींच ले गई। अब शालिनी को ट्रेन में बैठी अन्य सहेलियां चिढ़ाने लगीं। कुछ देर बात माहौल फिर वैसा ही हो गया, शालिनी कहां चुप बैठने वाली थी।

इस घटना को घनश्याम गौर से देख रहा था। उसे आभास होने लगा कि उसका दिल सामान्य गति से अधिक धड़क रहा है। घनश्याम पूरे रास्ते उन युवतियों के हंसने, बोलने और उनके अंदाज को एक-एक पल, एक एक क्षण जी रहा था। उससे भी ज्यादा वह शालिनी को नहीं भूल पा रहा था, जो शर्माते हुए नेहा को खींच ले गई।

घनश्याम घर तो पहुंच गया, लेकिन उसका दिल और दिमाग उस ट्रेन में ही था। शालिनी की याद में वह पूरी रात करवट बदलता रहा। ट्रेन का वह माहौल और हंसी – ठिठोली, वह चेहरे आंखों से ओझल नहीं हो रहे थे। अब घनश्याम का हृदय उस यौवना के साथ हो गया था, उसके बिना कहीं मन लगाना मुश्किल था।

घनश्याम की पूरी रात बस इसी कशमकश में बीती कि आखिर उस अजनबी तरुणी नवयौवना को कैसे ढूंढा जाए ?

दो दिन बीत गए घनश्याम के मन से वह दृश्य और चेहरा नहीं हट रहा था। अगले दिन घनश्याम को बाजार से सामन लेना था और दोस्त से मुलाकात। वह दोस्त के इंतजार में एक पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गया। जो बाजार के बीचों-बीच था। चबूतरे के पीछे प्राचीन शिव मंदिर और कुछ दूर पर एक बड़ा सा गिरजाघर भी।

घनश्याम को चबूतरे पर बैठे पंद्रह मिनट हुए होंगे, तभी वही चेहरा, वही हंसी, वही आवाज, वही अदाएं लिए वह मूर्ति साक्षात रूप में आती दिखाई दी। घनश्याम सोच में पड़ गया ! कहीं या मेरा स्वप्न तो नहीं? कुछ क्षण बाद उसका यह भ्रम दूर हो गया, यह कोई स्वप्न नहीं, बल्कि साक्षात वही नव युवती चली आ रही है, जो स्टेशन पर मिली थी।

वह नव युवती जैसे ही घनश्याम के सामने से गुजरी, तो शालिनी की नजरें भी घनश्याम को पहचान गईं और फिर शर्माते हुए तेज कदमों से आगे निकल गई। वह अब और बेचैन हो गया। उससे मिलने की तीव्र उत्कंठा में वह अपना सारा सामान वहीं छोड़कर उस युवती के पीछे पीछे चला गया। वह भीड़ में खो चुकी थी।

घनश्याम चारों तरफ ढूंढता रहा, लेकिन वह युवती फिर एक बार आंखों से ओझल हो गई, काफी देर ढूंढने के बाद भी जब कोई सफलता हाथ नहीं लगी, तो बिना दोस्त से मिले घर लौट गया।

अब बेचैनी पहले से ज्यादा थी। वह सोचने लगा था कि वह भी इसी इलाके की रहने वाली है। घनश्याम अब बिना काम के भी बाजार पहुंच जाता और प्यासी नजरों से युवती को ढूंढता। लेकिन नव युवती कहीं दिखाई नहीं देती, ऐसा करते करते चार-पांच दिन बीत गए और उसे वह युवती नजर नहीं आई।

घनश्याम को चिंता सताने लगी कि अब उसकी छुटि्टयां भी पूरी हो जाएंगी और वह उस नवयुवती से अब तक नहीं मिल पाया, तो उसका मन कैसे लगेगा।

आज उसकी मां को एक शादी में जाना था, आने में रात हो जाएगी। इसलिए मां ने घनश्याम को अपने साथ शादी में चलने के लिए राजी किया। घनश्याम अनमने ढंग से शादी में जाने को तैयार हो गया।

शादी में मां अपनी सखी – सहेलियों से मिलने लगी और घनश्याम उदास मन से चेयर पर बैठ गया।

एक रस्म की अदायगी के लिए जब सभी लोग आंगन में इकट्ठे हुए, तो घनश्याम को भी वहां जाना पड़ा। सामने कई सारी सखियों के साथ हंसी ठिठोली करते फिर वही चेहरा सामने नजर आया ! अब घनश्याम मन ही मन साेचने लगा कि कब उस नव युवती के हाथ पकड़े और उससे शादी का प्रस्ताव रखे, लेकिन ऐसा मौका नहीं आया। बस यह भीड़ नहीं होती तो यह कार्य करने में देरी नहीं होती।

रात को जब घर लौटने की तैयारी हुई, तब मां को छोड़ने उनकी सखी आई और उन सखी के साथ वह नव युवती भी थी, जो मां को विदा करने आई थी। मां ने अपने सखी से परिचय कराया यह मेरा बेटा “घनश्याम” है, फौज में है, दो सप्ताह की छुट्टी पर आया है।

एक सुंदर और घर को संभालने वाली लड़की की तलाश करके इसका भी घर बसा देती हूं, ताकि जल्दी से पोते – पोती घर में दौड़े। मां ने अपनी सखी और उसकी बेटी का भी परिचय कराया इनकी बेटी का नाम "शालिनी" है। यह आज पता चला। शालिनी कितना ही प्यारा और सुंदर नाम है, घनश्याम ने खुशी से कहा

घनश्याम अब ऐसे खिल गया जैसे बसंत आने पर प्रकृति खिल जाती है। एक सुंदर और दिव्य नजारा जिस प्रकार हो जाता है उसी प्रकार घनश्याम का मन और शरीर झूम रहा था, उसके रोम-रोम खिल रहे थे।

घनश्याम ने रास्ते में मां को शालिनी के विषय में बताया और उससे शादी करने की बात कहने लगा।

मां ने गाल पर प्यारा सा थप्पड़ मारते हुए कहा –

“पगले पहले बताता तो मैं बात करते हुए आती, कोई बात नहीं, मैं समय देखकर बात कर लूंगी”

बस अब क्या था, मां की बात का इंतजार। मां ने बेटे के मन और बेचैनी का कारण जान लिया था , तो अब मां से कैसे रहा जाता।

अगले दिन मां और पिताजी दोनों घनश्याम को लेकर शालिनी के घर पहुंचे, सभी का खूब आदर – सत्कार हुआ। इसके बाद शालिनी और घनश्याम की शादी का प्रस्ताव रखा गया।

दोनों पक्षों की ओर से तय किया गया कि शालिनी और घनश्याम एक दूसरे को समझ लें। शालिनी भी कई बार नजर आने के बाद घनश्याम को भाव दे चुकी थी और खासकर तब जब वह शादी में एक दूसरे के सामने आए। दोनों ने अपनी अपनी सहमति दे दी।

अब घनश्याम की ट्रेन के संवाद को याद कर मंद मंद मुस्करा रहा था और सोच रहा था, अपनी नई नवेली दुल्हन के सामने सबसे ज्यादा खिंचाई करने वाली कौन थी, तुम या तुम्हारी सहेली नेहा। अब घनश्याम की छुट्टियों का समय पूरा हो चुका था। वह ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा ।

-घनश्याम

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