“पूल फेसिंग रूम ही दीजिएगा,” मालती ने रिसेप्शनिस्ट को अपना आईडी कार्ड पकड़ाते हुए कहा।
“मालती आंगयार,” रिसेप्शनिस्ट कार्ड में से नाम पढ़ने हुए बोली, तो मालती ने टोका, “इट्स मालती आयंगर।”
“ओ सॉरी मैम,” वह झेंपते हुए बोली। शायद उत्तर पूर्वी राज्य से थी, उच्चारण का फर्क होना स्वाभाविक था।
मालती होटल के रिसेप्शन एरिया और लॉबी में नजरें घुमाने लगी। शानदार होटल था। म्यूरल्स बने हुए थे दीवारों पर और साथ ही बड़े-बड़े डिजाइन के शीशों के फ्रेम लगे थे। जगह-जगह ताजे फूलों की सजावट की हुई थी। वातावरण में एक स्वागत का निमंत्रण था।
नहीं, वहां न तो घूमने आई है, न ही ऑफिस के काम से। बस चली आई है। कोई पूछेगा कि कोच्चि ही क्यों? तो उसके पास यहां आने की भी कोई खास वजह नहीं है। बस यहां की फ्लाइट टिकट सस्ती थी, आसानी से मिल रही थी, यही वजह थी। दूसरे, दिल्ली में समुद्र कहां देखने को मिलता है। बैकवॉटर्स देखने की लालसा भी खींच लाई थी उसे।
पानी का अनंत विस्तार उसे जीने की प्रेरणा देता-सा महसूस होता है। शायद संभाल पाए वह खुद को इस बार। उसे दिल्ली से जल्दी-जल्दी निकलना था, या फिर वहां से भागना था। हां, सच में दम घुट रहा था उसका। पिछले 6 महीनों से जिंदगी का रुख बदल गया था। वह हताश हो गई थी, टूट रही थी और नलिन के धोखे को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
“मैम, दिस इज यूअर कीज। रूम नंबर 202, सेकेंड फ्लोर। आप चलें, आपका सामान मैं भेजती हूं।“ रिसेप्शनिस्ट ने उसे टोका तो वह चौंक गई। वह उसकी ओर घूमी तो दरवाजे से अंदर आते चेहरे को देख पल भर को चेतना शून्य हो गई।
मालती ने झट से अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया और तेज कदम रखते हुए लिफ्ट की ओर बढ़ गई। पीछे से एक खिलखिलाती हंसी सुनाई दी। कैसे भूल सकती वह इस हंसी को? उसका उपहास करते हुए भी ऐसी हंसी कई बार गूंजी है… यानी नलिन के साथ सोफिया भी आई है। भीतर कुछ चटका उसके।
कमरे में घुसते ही वह बिस्तर पर ऐसे लेट गई मानो बरसों की थकान उस पर हावी हो। जब नलिन से उसका अब कोई नाता ही नहीं है तो फिर क्यों परेशान हो रही है वह उसे सोफिया के साथ देखकर? ‘लेट हिम गो टू हेल’, वह बुदबुदाई।
उसका सामान भी आ गया था। मालती फ्रेश होने जा ही रही थी कि मोबाइल बजा।
गीतू थी। “पहुंच गई? फ्लाइट लेट तो नहीं थी? कोच्चि में तो मौसम गर्म ही रहता है। बारिश आ गई तो घूमने निकल जाना। मजा आएगा”
गीतू ऐसी ही है। वह उसे एक्सप्रेस ट्रेन कहती है। एक बार चलती है तो दौड़ती जाती है, रुकने का नाम ही नहीं लेती।
“सब ठीक है। लेकिन…”
“लेकिन क्या?”
“नलिन भी यहां है… इसी होटल में…” मालती अटक-अटक कर बोली। उसे लग रहा था कि वह रो पड़ेगी और अगर ऐसा हुआ तो गीतू बहुत डांटेगी और इतना लंबा ज्ञान का भाषण देगी कि पूरी रात खराब कर देगी।
“सोफिया भी साथ है,” बहुत मुश्किल से मालती बोली।
“हां, ऑफिस के काम से कोच्चि गया है नलिन। तो क्या? सोफिया के साथ होने से तू क्यों परेशान हो रही है? उन दोनों को ही क्लाइंट को प्रेजेंटेशन देनी है। अब यह संयोग की बात है कि वे उसी होटल में रुके हैं, जिसमें तू ठहरी है। इनके रूम तो कंपनी ने बुक किए हैं। बेफिक्र रह, वे तेरे पीछे नहीं आए। तू मस्त रह। डोंट वरी, बी हैप्पी। नलिन तेरी लाइफ में कुछ मायने नहीं रखता। आते-जाते दिख भी जाए तो इग्नोर कर देना। वरना देख ले, वापस आने पर तेरा क्या हाल करती हूं।”
नलिन के ऑफिस में काम करती है गीतू। ठीक ही तो कह रही थी वह। सोच ही क्यों रही है वह नलिन के बारे में। भाड़ में जाए वह। मालती ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया। डाइनिंग हॉल में जाकर खाने से बच रही थी… कहीं दिख गया तो? वह जिससे भागकर कोच्चि आई थी, वह भी यहां मिल जाएगा, उसने कहां सोचा था।
पागल थी कितनी जो उसके प्यार में हमेशा डूबी रहती थी। वह भी पल भर को उसका हाथ कहां छोड़ता था। घंटों बैठे रहते थे वे एक-दूसरे का हाथ थामे, एक-दूसरे की आंखों में झांकते हुए, प्यार के गीत गुनगुनाते हुए।
वह खाना खाकर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। सामने साफ पानी के चारों ओर झिलमिलाती लाइट की रोशनी पड़ रही थी तो लग रहा था जैसे रुपहले सितारे जगमग कर रहे हों। चारों ओर हरियाली का फैलाव था। प्रदूषण का नाम तक नहीं था। स्लाइडिंग डोर खोल वह बाहर बनी छोटी-सी बालकनी में रखी कुर्सी पर बैठ गई। होटल का इंतजाम और वहां ठहरने वालों की जरूरतों का ध्यान रखने की कला, दोनों ही बेहतरीन थीं।
प्यार जितना खूबसूरत एहसास होता है उतना ही दर्द भी देता है। जिसे चाहो, उसे इसलिए खोना पड़े कि वह आपके साथ बेवफाई कर रहा है, तो लगता है कि आप छले गए हैं। ये छले जाने की पीड़ा बहुत पैनी होती है।
कितने समय तक मालती खुद को ही इसके लिए दोषी मानती रही थी। जरूर उसमें ही कोई कमी होगी जो नलिन उसे छोड़ सोफिया की ओर खिंचा था। सोफिया की अल्हड़ता, उसका बेबाकी से खिलखिलाना, हमेशा प्रेजेंटेबल रहना… नलिन ने मालती को धीरे-धीरे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था। वह कुछ पूछती तो टाल जाता, वह मिलने के लिए कहती तो काम का बहाना बना देता है। घंटों एक-दूसरे का हाथ थामे बैठना बीते वक्त की बात हो गई थी।
सोफिया से वह भी बहुत बार मिली थी। जब नलिन या गीतू से मिलने उनके ऑफिस जाती तो वह दिख ही जाती। काम करने से ज्यादा वह यहां-वहां मटकती या खिलखिलाती ही नजर आती। नलिन, सोफिया के करीब जा रहा है, मालती यह सोचकर कसमसाकर रह जाती। तब सोफिया उसे देख यूं खिलखिलाती मानो उसका मजाक उड़ा रही हो कि देखा, मैंने कैसे तुम्हारे प्रेमी को काबू में कर लिया है।
मालती को घिन आती थी सोफिया के पास से गुजर जाने पर। क्या बिंदास होना, लटके-झटके दिखाना ही प्रेम के धागे को कमजोर कर सकता है? उसका प्यार तो नलिन के लिए ऐसा नहीं था। कहां चूक हो गई उससे?
“अपने को कोसना छोड़ दे। नलिन तेरे प्यार के लायक नहीं है। देख लेना एक दिन वह लौटकर आएगा तेरे पास। सोफिया जैसी तितलियां तो हवा के रुख के साथ यहां-वहां उड़ते हुए अपना रास्ता बदलती रहती हैं। पर तुझे चेतावनी दे रही हूं, वह वापस लौटे तो तू उसे अपनी जिंदगी में फिर मत आने देना।”
तभी इंटरकॉम बजा। “मैम, एक रिक्वेस्ट है। क्या आप थर्ड फ्लोर पर शिफ्ट हो सकती हैं? असल में हमारे दो गेस्ट एक ही फ्लोर पर दो रूम चाहते हैं, पर हमारे पास सेकेंड फ्लोर पर एक ही रूम अवेलेबल है। अगर आप थर्ड फ्लोर का रूम ले लें तो वे एक ही फ्लोर पर रह सकेंगे।”
“नहीं। लेकिन कौन हैं?”
“मिस्टर नलिन नायर एंड सोफिया डिसूजा।”
“आई एम सॉरी।” मालती ने गुस्से से फोन काट दिया।
यहां भी चैन से रहने नहीं देंगे क्या ये लोग?
सुबह जब उठी तो देखा पूल के पानी में पांव डालकर नलिन और सोफिया बैठे हैं। सोफिया उससे बार-बार चिपक रही थी और किस कर रह थी। ऑफिस के काम के नाम पर अय्याशी? उसे दोनों को देखकर चिढ़ होने लगी।
वह नाश्ता करने डाइनिंग हॉल में चली गई। नहीं ध्यान देगी उन दोनों पर। गीतू सही कहती है, नलिन उसके प्यार के लायक नहीं है।
हाथ में हाथ डाले तभी दोनों डाइनिंग हॉल में आ गए। मालती को देख नलिन सकपका गया। उसने सोफिया का हाथ छोड़ दिया। वह हैरानी से उसे देखने लगी, फिर एक टेबल पर जाकर बैठ गई।
“कैसी हो?” नलिन सामने खड़ा था।
“एकदम बढ़िया। मैं अभी ब्रेकफास्ट कर रही हूं, कोई डिस्टर्बेंस नहीं चाहती।” मालती के मुंह से निकला।
“ओह, सॉरी। पर तुम्हें यहां देखकर अच्छा लगा। रूम नंबर क्या है? मिलता हूं तुमसे बाद में।”
“पर मुझे तुम्हें देखकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। नाऊ एक्सक्यूज मी। लेट मी एंजॉय माई ब्रेकफास्ट।” मालती कॉफी लेने के लिए उठ गई।
बहुत हल्का महसूस कर रही थी वह! सच में नलिन ही उसके प्यार के लायक नहीं है! कभी-कभी इस डर से फैसले लेने में देर लगती है कि कहीं हम ही गलत तो नहीं, पर जब फैसले ले लेते हैं, तो वे इतनी खुशी दे जाते हैं कि हमें खुद से ही प्यार हो जाता है। बेकार ही देर लगाई उसने फैसला लेने में! मालती के होंठों पर मुस्कान बिखर गई थी।
- सुमन बाजपेयी
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