भाभियों ने भी की देवर से छेड़छाड़:ऊफ, मैंने नहीं सोचा था कि एक प्रोफेसर होने के बाद भी तुम्हारी मां इतने पुराने विचारों की होंगी

10 महीने पहले
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चारों ओर चहल पहल थी। शांति देवी की व्यस्तता असीमित थी। किसी भी चीज की कमी ना हो, इसीलिए अपने बुजुर्गों से लगातार सलाह ले रही थीं। थकावट के बाद भी खुशी का एहसास चेहरे पर साफ नजर आ रहा था। आखिर इकलौते बेटे की शादी जो है। जब साहिल ने कहा था कि वह शगुन से शादी करना चाहता है, तो बेटे की खुशी देख उन्होंने सहमति दे दी। हालांकि उनके पति को थोड़ी आपत्ति थी कि शगुन कुछ ज्यादा ही हाई-फाई है। लेकिन तब शांति देवी ने यह कहकर उन्हें राजी कर लिया कि ‘‘उसे हमारे घर आना है, अपने रंग-ढंग में उसे ढाल लेंगे।’’

शांति देवी खुद एक प्रोफेसर और साहिल के पिता एक बड़ी कंपनी के डायरेक्टर थे। बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी। जो स्वयं डॉक्टर और साहिल मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था। कोठी के ऊपर के अलग-अलग फ्लोर पर उसके छोटे-बड़े चाचा और दो कोठी छोड़ उसकी बुआ रहती थीं।

इसलिए उत्सवों पर उनके घरों में मेला जैसा दिखने लगता था। शगुन एमबीए थी और एक निजी कंपनी में सीईओ थी। कार, मोटा वेतन और समाज में सम्मान और हाई सोसाइटी में पहचान सब कुछ था उसके पास। जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास भी था।

‘‘साहिल, मुझे तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा लगता है, एकदम आधुनिक विचार हैं तुम्हारे मम्मी-पापा के। मुझे नहीं लगता कि उनके साथ तालमेल करने में कोई दिक्कत आएगी। मुझे वैसे किसी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं है।’’ अक्सर शगुन साहिल से कहती।शगुन के पिता का बहुत बड़ा बिजनेस था, इसलिए फाइव स्टार होटल में उन्होंने शादी की।

साहिल के सारे रिश्देतारों को महंगे उपहारों दिए और उसे एस्कोडा कार भी। शांति देवी ने भी शगुन को जेवर चढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, पर पिता के दिए हीरे और बहुमूल्य रत्नों के जेवरों के आगे उनके सोने के आभूषण फीके लग रहे थे।

साहिल ने शादी शगुन के पैसों के कारण नहीं, उसकी योग्यता की वजह से की थी, इसलिए वह दहेज लेने के खिलाफ था, ससुर के बहुत आग्रह करने पर ही वह कार लेने को तैयार हुआ था।

शांति देवी को भी बहु के घरवालों का दिखावा खटका था, पर उन्होंने इस बात को यह सोचकर नजरअंदाज कर दिया था कि हमारी जैसी हैसियत है, शगुन जानती है और अगर तब भी उसने शादी की है तो अवश्य ही इस बारे में सोचा ही होगा। बहुत धूमधाम से बहु का स्वागत किया गया। बहन ने द्वार रोकने का नेग भी लिया और रिश्ते की भाभियों ने देवर से छेड़छाड़ भी की।

रस्में भी हुईं और फिर सुबह चार बजे साहिल और शगुन को अपने कमरे में जाने का मौका मिला। ‘‘ऊफ, मैंने नहीं सोचा था कि एक प्रोफेसर होने के बावजूद तुम्हारी मां इतने पुराने विचारों की होंगी। आजकल कौन इतने रीति-रिवाज करता है। मुझसे कोई अपेक्षा मत करना। पूरी रात बर्बाद हो गई। कितनी भीड़ है तुम्हारे घर में। इतने रिश्तेदार, बाप रे, मैं यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती। हर किसी के पांव छुओ… तुम्हारा परिवार अभी भी इन परंपराओं में जकड़ा हुआ है। एक हमारा परिवार है, छोटी फैमिली। मम्मी-पापा इन सब चक्करों में नहीं पड़ते।’’ अगले दिन रात की फ्लाइट से वे सिंगापुर के लिए निकल गए। हफ्ते बाद जब वे लौटे तो शगुन की खुशी देखते ही बनती थी।

साहिल के मम्मी-पापा और बहन के लिए वह उपहार लाई थी। ‘‘बेटा, अगली बार अगर उपहार लाओ तो दोनों चाचा के परिवारों के लिए भी लाना।’’ शांति देवी ने टोका तो शगुन हैरानी से बोली, ‘‘पर मम्मी, वे तो हमारा परिवार नहीं हैं। फिर क्यों?’’ शांति देवी ने साहिल को देखा। ‘‘ मां गलती हो गई।

आप ये उपहार उन्हें दे दीजिए, मैं अगली बार फिर जब विदेश जाऊंगा तो आप लोगों के लिए दुबारा यह सब ले आऊंगा।’’ ‘‘बेटा शगुन, बेशक हम लोग अलग-अलग फ्लोर पर रहते हैं, पर हैं एक ही परिवार। इसलिए अगली बार ध्यान रखना।’’ शगुन ने तो यह सोचकर साहिल से शादी की थी, उसके घर में एक खुला वातावरण होगा, वह जैसे चाहे जी सकेगी। हालांकि उसके आने-जाने या मनचाहे कपड़े पहनने पर किसी ने रोक नहीं लगाई थी, न ही रात की पार्टी में जाने पर किसी को आपत्ति थी, फिर भी उसे लगता था कि वह आजादी की सांस नहीं ले पा रही है। वह घर आती तो कभी कोई चाची बैठी होती, कभी कोई ननद या देवर। साहिल को उनसे हंसी-मजाक करते देख वह चिढ़ जाती।

‘‘साहिल तुम इतने बड़े ओहदे पर हो, इस तरह का हंसी-मजाक क्या तुम्हें सूट करता है। डिसेंट रहना चाहिए तुम्हें। क्या बच्चों की तरह संडे को कैरम बोर्ड खेलने बैठ जाते हो। खेलना ही है तो चैस खेलो या फिर ताश।’’ ‘‘यह घर है शगुन, यहां अगर खुलकर नहीं रहूंगा तो अपनेपन का एहसास कैसे होगा। मैं तो कहता हूं कि तुम भी हमारे साथ खेला करो। कान में ईयर फोन लगाकर म्यूजिक सुनने से कहीं ज्यादा सुख मिलता है अपनों के साथ छोटी-छोटी खुशियां बांटने में।’’

‘‘साहिल, मुझे बहुत हैरानी होती है तुम्हारी बातें सुनकर। बड़े चाचा आईएएस अफसर हैं, पर व्यवहार एक लोअर मिडिल क्लास की तरह करते हैं। और तो और तुम्हारी छोटी चाची इंटीरियर डिजाइनर हैं, पर घर में खुद कितनी सादगी से रहती हैं। एक क्लास नाम की भी कोई चीज होती है। सोफिस्टीकेटेड ढंग से रहना चाहिए, जैसे मेरे पेरेंट्स रहते हैं।’’ ‘‘हां, जो मुसकराते भी नाप-तौल के हैं। मुझे समझ नहीं आता कि तुम हर बार शिक्षित लोगों का ताना क्यों देने लगती हो। हां शिक्षित हैं, पर अपने संस्कारों को न मानें, संबंधों की कद्र न करें, और सहजता न जीएं, ऐसा किस किताब में लिखा है?’’ धीरे-धीरे शगुन और साहिल की बहस उनके संबंधों में कड़वाहट लाने लगी थी। पूरा परिवार जब एक साथ बैठा होता वह अपने कमरे में बैठी होती। वह एक ऐसे फॉल्स पैराडाइज में जी रही थी जिसमें ऊपरी चमक-दमक और अपने को बेहतर साबित करने की होड़ सी लगी रहती है। शगुन ने भी शायद कभी नजदीक से अपने माता-पिता के प्यार को महसूस नहीं किया था, इसलिए वह समझ नहीं पा रही था कि रिश्तों की महक जिंदगी को सुवासित करने की कितनी क्षमता रखती है।

शांति देवी ने जिस परिवार को अभी तक एक सूत्र में बांध रखा था, उन्हें लग रहा था कि कहीं वह बिखर न जाए। शगुन के साथ वह हर संभव सामंजस्य करने की कोशिश करतीं, पर वह थी कि जैसे ठाने बैठी थी कि घर की सारी परंपराओं को ही बदल देगी। धीरे-धीरे चाचा के परिवारों का उनके यहां कम होने लगा। बहन और बुआ भी कभी-कभी आतीं।

वह साहिल पर जोर डालने लगी कि उन्हें अलग अपने फ्लैट में जाकर रहना चाहिए जो पापा ने उसके नाम से खरीदा था। ‘‘तुम्हें यहां क्या दिक्कत है। तुम देर रात घर लौटती हो, जो मन होता है करती हो। तुमने आज तक किचन में पैर तक नहीं रखा है। मम्मी ने कभी तुम्हें इस बात का ताना दिया क्या?

तुम अपने मन की करती हो, दूसरों की भावनाओं के बारे में कभी सोचती तक नहीं हो। फिर क्यों अलग होना चाहती हो? आखिर किस चीज की कमी है तुम्हें यहां?’’ एक दिन साहिल का आक्रोश फट गया था।

‘‘मैं किचन में क्यों जाऊं, असल में तुम लोगों की मानसिकता मिडिल क्लास की है, आगे ग्रो करने के बारे में सोचना ही नहीं चाहते।’’ उस दिन शगुन ने सारी मर्यादा पार कर दी थीं और अपने मायके चली गई थी। साहिल ने जब फोन किया था तब यही कहा था कि जिस दिन अलग होने की सोचो, तभी मैं वापस आऊंगी।

शगुन को गए एक महीना बीत गया था। एक दिन शाम के समय शगुन का फोन आया। वह रो रही थी। ‘‘साहिल, पापा के बिजनेस में भारी नुकसान हो गया है। बैंक से जो लोन लिया था, वह चुका नहीं सके तो बैंक हमारे घर पर कब्जा कर रहा है। कोई भी रिश्तेदार और मित्र मदद नहीं कर रहा है। करेगा भी क्यों पापा ने उनसे कभी संबंध बनाकर ही नहीं रखे।’’ साहिल ने मां को देखा तो वह बोलीं, ‘‘बेटा, है तो वह अपनी ही न। भूल जा पिछली बातें। अभी उसे हमारी आवश्यकता है।’’ बड़े चाचा ने अपने रसूख से मकान पर कब्जा होने से रोका और सब ने मिलकर कर्ज की थोड़ी रकम की अदायगी कर उसे चुकाने की मोहलत भी बढ़वा ली।

शगुन की आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। हालांकि अभी भी वह शब्दों से माफी मांगने में हिचक रही थी, पर उसके झर-झर बहते आंसू कह रहे थे कि वह अपने फॉल्स पैराडाइज से बाहर निकल आई है।

- सुमन बाजपेयी

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