समझदार लड़का:पंखुड़ी को उसके सवाल का जवाब मिल चुका था, वो मन ही मन मुस्कुरा कर क्लास की और चल पड़ी

10 महीने पहले
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"टन टन"! लंच ब्रेक की घंटी बज चुकी थी, पिछले एक घंटे से केमिस्ट्री जैसे उबाऊ विषय को झेलने के बाद अब ये मधुर आवाज़ सुनने के बाद सभी बच्चों के चेहरों पर एक मुस्कराहट दौड़ी, जो दस्तूर बन चुकी थी। यह रिसैस सिर्फ ऐसे ही खास नहीं होती, हर एक के पास इसे खास बनाने की अपनी एक वजह होती हैं, किसी को काफी देर (ढाई घंटे) से चहारदीवारी में बैठे रहने के बाद अब क्लास के बाहर जाने की पड़ी हैं,तो किसी को टीचर के जाने के बाद बस्ते का तकिया बनाकर वो नींद पूरी करनी है, जो केमिस्ट्री की बदौलत उसे मिली है, कोई तो उस पानी के फ्रीजर की और दौड़ जाना चाहता हैं, जहां की भीड़ देखकर लगता है आपका प्यासा रहना तय है। लेकिन फिर भी कोशिश तो बनती है, तो कोई दूसरी क्लास के सामने सिर्फ ताड़ने के मकसद से ही जाता है।

आज फिर सभी अपनी अपनी वजह तलाश चुके और तैयार थे। आज की रिसैस के लिए, तभी P.T सर क्लास में आ धमके। "अरे यार" सब सुर में बुदबुदाये क्योंकि उन्हें पता चल चुका था कि जरूर किसी अनाउंसमैंट के कारण उनकी रिसैस खराब होने वाली है, पर इस बार उनके साथ मुकेश भैया भी आये, जो स्कूल में सफाई कर्मचारी हैं। बड़े हंसमुख स्वभाव के पर, आज थोड़े गुमसुम से नज़र आ रहे थे। उनको देखकर लग रहा था कि जरूर कोई गंभीर बात है। "सुनो बच्चों " P .T सर के बोलते ही सब चुप हो गये। "हमारे स्कूल के ख़ास सदस्य मुकेश के घर पर एक मुसीबत आ गयी हैं, उनकी बेटी रानी कल अपने घर की सीढ़ियों से गिर गई और उसके सिर पर गंभीर चोट आई है। इस चोट के कारण उसके दिमाग में खून का थक्का जम गया है। उसके इलाज के लिए 5 लाख रुपयों की आवश्यकता है, हम टीचर और स्टाफ के लोगों ने कुल 3 लाख इकट्ठे कर लिए है और बचे हुए 2 लाख के लिए आप सब से जितना बन सके उतना कलेक्शन कर लें, कल छुट्टी से पहले, जो भी मॉनिटर है, वो प्रिंसिपल मैडम के रूम मे जमा करवा देना। इतना बोल कर P.T सर और मुकेश भैया क्लास से बाहर चले गए। सब बच्चे आपस मे इसी विषय पर बात करने लगे कि ये सब कैसे हुआ, कब हुआ, और तभी लंच ब्रेक ख़त्म होने की घंटी बजी। टीचर के आने के पहले ही पंखुड़ी आगे आ कर के बोली "जैसा सर अभी बोल के गए है, आप सभी कल रैसिस में मुझे पैसे जमा करवा देना। "

अगले दिन फिर से रैसिस हुई और सभी बच्चे अपने अपने पैसे लेकर पंखुड़ी को जमा करा रहे थे। ये मदद के लिए दान था इसलिए कोई भी कितना भी जमा करे। इसको नोट नहीं किया जा रहा था । अधिकतर बच्चे 100 या 50 रुपये जमा कर रहे थे, इतने में विशाल आता हैं और पंखुड़ी को 500 का नोट जमा करते हुए चुपचाप निकल जाता हैं। 500 रुपए थोड़ा ज्यादा अमाउंट था इसलिए ये बात पंखुड़ी को याद रहती हैं, बहुत से बच्चे क्लास में ऐसे भी थे, जिन्होंने या तो पैसे जमा नहीं किए थे या फिर अपने किसी दोस्त के हाथों से ही जमा करवा दिए। जमा राशि पंखुड़ी ने P.T सर को दे दी। लगभग एक हफ्ता बीत चुका था, लेकिन पंखुड़ी के दिल में विशाल के द्वारा की हुई मदद की बात घर कर चुकी थी।

विशाल पंखुड़ी की नजर में एक समझदार लड़का था, और इस वाक्य के बाद विशाल के लिए उसके मन में और भी इज्जत बढ़ गई। धीरे धीरे दोनों में बातचीत शुरू हुई और दोनों एक दूसरे को अच्छी से जानने लगे, और करीब से विशाल को जानने के बाद उसके दिल में विशाल के लिए एक जगह बन चुकी थी। दिन बीते अब उनकी दोस्ती अब प्यार में बदल चुकी थी।

आखिरकार गणेश चतुर्थी आई और इस बार हर साल की तरह चंदा इकट्ठा करने का काम मिला पंखुड़ी को, वो सबसे पहले विशाल के पास गई और चंदा मांगा उसने फट से जेब में हाथ डाला और 50 रुपए दे दिए, पंखुड़ी मन ही मन उदास हो गई, उसे लगा था पिछली बार की तरह विशाल फिर से 500 रुपए देगा, फिर खुद से बोली " हो सकता हैं वो कम आस्तिक हो या फिर इन सब जगह खर्च करने की बजाय सिर्फ मदद के लिए ही डोनेट करता हो " ये तमाम सवाल लिए वो आगे बढ़ गई, फिर भी उसका काम में मन नहीं लग रहा था तो उसने ये काम अपनी सहेली को सौंपा और खुद क्लास के बाहर चल पड़ी। उसने विशाल से पूछ लिया " उस समय तो तुमने 500 रुपए दिए थे और आज सिर्फ 50 रुपए ", विशाल ने जवाब दिया " वो उस दिन तो हम 5 दोस्तों के रुपये थे, लेकिन तुम ये सब क्यूं पूछ रही हों " ,"कुछ नहीं ऐसे ही पूछा" पंखुड़ी ने जवाब दिया। इसके बाद पंखुड़ी क्लास की और चल पड़ी वो सोच रही थी। उसके और विशाल के रिश्ते की बुनियाद एक झूठ या गलतफहमी पर हैं, तभी उसे पास की क्लास में लंच ब्रेक दौरान चल रही क्लास पर नज़र पड़ी, जिसमें टीचर बता रहे थे कि कैसे हर बार नींव सही नहीं हो सकती पर उससे भविष्य खराब नहीं बता सकते, जैसे यदि कोई अपराधी का बच्चा भी अच्छी परवरिश से एक अच्छा व्यक्ति बन सकता हैं। पंखुड़ी को उसके सवाल का जवाब मिल चुका था, "कभी कभी लंचब्रेक के दौरान क्लास का लंबा खींच जाना भी अच्छा होता हैं" वो मन ही मन मुस्कुरा कर क्लास की और चल पड़ी।।

– तरुण गामी

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