शिवम दर्द से कराह रहे थे। लेटे-लेटे बेड सोल हो गए थे। बहुत कोशिश कर उसने उसे करवट दिलवाई। पूरा बायां हिस्सा पैरेलाइज्ड हो चुका था। पिया ने उसके घावों को पोंछा और दवाई लगाकर पट्टी बांध दी। शिवम की पीड़ा उसे हर बार अंदर तक झकझोर जाती है। अपने आंसुओं को आंखों में ही कैद रहने को मजबूर कर उसने बहुत धीमे स्वर में कहा, “तुम्हारा सूप तैयार है, बस अभी लाई।”
शिवम के लिए अब जवाब देना कठिन हो गया है। बहुत कोशिश कर, देखा जाए तो अपनी सारी ताकत लगा वह जो भी कुछ बोलता, वह इतना अस्पष्ट होता है कि सिवाय पिया के किसी और के लिए समझना बहुत ही मुश्किल है। लेकिन उसकी गहरी आंखें जो आजकल भावनाओं से कुछ ज्यादा ही लबालब भरी रहती हैं, बहुत कुछ कह जाती हैं। ढेर सारे सवाल उसकी आंखों में पढ़ सकती है वह, पर जवाब नहीं दे सकती। इसलिए शिवम की आंखें कुछ कहें, उससे पहले ही वह कमरे से बाहर निकल गई।
क्यों?
क्यों नहीं करना चाहती है वह सामना शिवम का? आखिर उसकी कोई गलती तो नहीं है? सबको ऐसा ही लगता है कि उनकी आदर्श बहू, आदर्श भाभी और जो भी रिश्ता उसका शिवम से ब्याह करने के बाद बना था, सबके लिए एक मिसाल और बेहतरीन जीवनसाथी, जो समर्पण और त्याग की मूर्ति है, कुछ गलत कर ही नहीं सकती है। फिर क्यों नजरें मिलाने का साहस नहीं है उसमें शिवम से? आखिर क्यों एक अपराधबोध को अपने पर लादे वह जिंदगी को एक बोझ की तरह जी रही है? बाहर से मुस्कराती, सबके सामने सहज बनी रहती, पर भीतर ही भीतर रोज मरती है। अपने से ही सवाल करती है।
कोई जवाब है क्या उसके पास?
“नहीं,” अचानक ही उसके मुंह से निकला।
किचन में तभी मधुरिमा चाय बनाने घुसी थीं। “क्या हुआ बेटा, किससे बात कर रही थीं? यहां तो कोई भी नहीं है?”
“नहीं, ममी, बस ऐसे ही कुछ सोच रही थी।” जल्दी-जल्दी उसके हाथ सूप छानने लगे थे।
“मैं समझ सकती हूं। शिवम को लेकर तू हमेशा चिंतित रहती है। उसकी सेवा और देखभाल में कैसे दिन-रात एक किए रहती है। तेरा मन ही नहीं तन भी थक गया होगा। कितनी बार कहा कि नौकर से कुछ काम करवा लिया कर, पर तेरी जिद है कि शिवम के सारे काम खुद ही करेगी,” मधुरिमा ने चाय प्यालों में डालते हुए कहा।
“ममी, मैं उन्हें सूप पिलाकर अभी आती हूं,” पिया जवाब देने से बचना चाहती थी।
पिया को देखकर मधुरिमा की आंखें जब-तब गीली हो जाती हैं। शिवम ने जब कहा था कि वह दूसरी जाति की लड़की से शादी करना चाहता है तो घर में सबसे ज्यादा विरोध उन्होंने ही किया था। पता नहीं दूसरे आचार-व्यवहार वाली लड़की उनके यहां आकर एडजस्ट कर भी पाएगी या नहीं। हालांकि पिया से मिलने के बाद वह उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रही थीं। एकदम सहज व्यवहार और गजब के आकर्षण के साथ बोलने में भी एक मिठास थी। तुरंत ही उन्होंने अपनी पसंदगी की मोहर लगा दी थी।
शिवम की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था। “थैंक्यू मां, फॉर एक्सेप्टिंग पिया। मैं यकीन दिलाता हूं कि आपको मेरे इस निर्णय पर कभी अफसोस नहीं होगा। शी एज ए वंडरफुल गर्ल।”
अपने प्रोफेसर बेटे को इससे पहले इतना खुश कभी नहीं देखा था उन्होंने।
“मेरे बोरिंग प्रोफेसर भइया भी इतने रोमांटिक हो सकते हैं, कोई सोच भी नहीं सकता। बड़े छुपे रुस्तम निकले भइया। लव मैरिज कर रहे हो।” छोटी बहन शिविका ने छेड़ते हुए कहा था। “मोटी-मोटी किताबों से बाहर निकल, प्यार करने का ख्याल कैसे आ गया आपको। या फिर हमारी होने वाली भाभी ने ही सारे एफर्ट्स किए आपको प्यार का पाठ सिखाने के। इस मोटे चश्मे के पार भाभी की नजरें कैसे पहुंची होंगी। सचमुच कितना मुश्किल रहा होगा उनके लिए।” शिविका ने शिवम के चश्मे को उतारने का प्रयत्न किया तो वह एक कदम पीछे हो गया और मुस्कराया।
छोटा भाई सोहम भी कहां चुप रहने वाला था। “ओएमजी भइया क्या लड़की चुनी है। कितनी डैशिंग लगती है। लगता है लव भी बहुत सोच-समझकर किया है।”
“ऐ, खबरदार जरा संभलकर बोल। नहीं तो कान खींचूंगा। याद रख अब वह तेरी भाभी बनने वाली है।”
पिया उनके घर आई और इस तरह से उनसे घुलमिल गई जैसे बरसों से उनके साथ ही रह रही थी। सुबह काम में जाने से पहले जितना संभव होता, घर के काम में हाथ बंटाती। शाम को भी आकर मधुरिमा की मदद करती। वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में रिटेल मैनेजर थी। घर में काम करने के लिए हेल्पर थी, पर फिर भी मधुरिमा और पिया को अपने हाथ से खाना बनाना अच्छा लगता था।
सबका मन जीतकर वह परिवार के लोगों की ही नहीं, बल्कि तमाम रिश्तेदारों की भी मनपसंद बहू बन गई थी। जो लोग पहले शिवम की तारीफ करते नहीं थकते थे, उनकी जुबान पर अब केवल पिया का नाम रहने लगा था। उसकी तारीफ, उसकी सराहना। झोली भर-भर वह बटोरती और अपनी वाक्-पटुता और विद्वता से सबको मोहित करती रहती। नहीं, यह सब बनावटी नहीं था, वह थी ही ऐसी। हंसमुख, जिंदगी के एक-एक पल को जीने वाली। शिवम का साथ पाकर वह बेहद खुश थी और शिवम भी तो उसके बिना एक पल भी नहीं रहना चाहता था। उन दोनों की तारीफ किए बिना कोई नहीं रह पाता था।
फिर क्या उन्हें किसी की नजर लग गई? उन्हें नजर लगी या उन दोनों के बीच कुछ अनकहा खिंचाव हो गया? अच्छी बात तो यह थी कि इस बात की भनक सिवाय उन दोनों के और किसी को नहीं लगी।
पिया ने तौलिया लगाकर चम्मच से सूप शिवम के मुंह में डाला। बहुत धीरे-धीरे ताकि उसे तकलीफ न हो। “ठीक है न? ज्यादा गर्म तो नहीं? नमक ज्यादा तो नहीं?”
शिवम चुपचाप सूप पीता रहा। स्वाद, ठंडा, गर्म, फीका, अच्छा, बुरा, सारे एहसास मर चुके हैं उसके। कितना प्यार करता है वह पिया को, उसके लिए कुछ भी करने को हमेशा तत्पर रहता था। देखा जाए तो उसके लिए कोई भी कुछ भी करने को तत्पर हो जाएगा… वह है ही ऐसी।
“और कुछ चाहिए? शाम को खिचड़ी बना दूं?” लग रहा था पिया खुद से ही जैसे सवाल-जवाब कर रही हो।
“तुम्हारी दवाई का भी वक्त हो गया है।” सिर को ऊंचा उठाकर उसने शिवम के मुंह में गोली रख दी। पानी पिलाकर मुंह पोंछा। वह खुद दाएं हाथ से गिलास पकड़ने की जिद कर रहा था, पर लकवा मारने के बाद से कमजोरी तो उसके पूरे शरीर में ही आ गई थी। वैसे भी पिया को उसके काम करना खुद ही पसंद था। वह जाने के लिए मुड़ी ही थी कि शिवम ने अपने दाएं हाथ से उसकी कलाई को छुआ। वह थामना चाहता था मानो उसकी कलाई को। कमजोर हाथों की छुअन भी उसे सिहरा गई। ढेर सारा प्यार उमड़ आया शिवम पर। उसका मन हुआ कि वह शिवम के सीने से लिपट जाए और इतना रोए कि सारा गुबार बाहर निकल जाए। उसके सामने अपनी गलती का इकरार कर मुक्त हो जाए उस बोझ से जो उसके दिलो-दिमाग को थका रहा था, उसे लगातार चूर-चूर कर रहा था।
अपने सारे एहसासों को जब्त कर उसने बहुत ठंडेपन से उसकी बांह छुड़ाते हुए पूछा, “कुछ चाहिए क्या?”
“कुछ देर बैठो न मेरे पास,” टूटे-फूटे शब्द शिवम के मुंह से निकले। अधिकार नहीं, याचना का भाव था।
क्यों शिवम, क्यों तुम इतने विद्वान, प्रखर, बुद्धिजीवी और हर तरह से श्रेष्ठ होने के बावजूद हीनता के शिकार हुए? क्यों तुमने यह ठाना कि इस हीनता, इस बौनेपन, जिसे तुमने खुद ओढ़ा था, जो तुम्हारा खुद की ही सोच का सृजन था, से बाहर निकलने के लिए तुम अपनी सारी श्रेष्ठता को दांव पर लगा दोगे?
“बाद में आती हूं।” पिया के लिए असहनीय था शिवम की इस लाचारी को देख पाना।
शिवम किसी भी पहलू से कमतर नहीं था, न है। पिया का बिंदासपन, उसकी खिलखिलाती हंसी और शब्दों का जादू… इन्हीं पर तो शिवम फिदा हुआ था, फिर क्यों एक वक्त पर शिवम को उसकी यही खूबियां खलने लगी थीं।
“इतनी पढ़ी-लिखी है, इतना कमाती है, पर अहंकार बिल्कुल नहीं है।” “और देखो तो घर के कामों में भी निपुण है।” “कौन कहेगा कि दूसरी जाति की है।” अपनी तरह से हर कोई उसे सराहता। अपनी प्रशंसा सुनना किसे अच्छा नहीं लगता? वह स्वयं पर इतराती अपनी झोली आगे फैला प्रशंसा बटोरती गई। अपनी तारीफ सुनने का जैसे उसे नशा-सा हो गया। कभी उसकी तारीफ में कोई कुछ न कहता तो उसे लगता कि कुछ कमी रह गई है। यकीनन वह बेस्ट थी, लेकिन धीरे-धीरे यह नशा उसे मदहोश करने लगा। घंटों वह शीशे के सामने खड़े हो, स्वयं को निहारती और मन ही मन प्रशंसा में मिले शब्दों को दोहराती।
शिवम को पहले जहां पिया का गुणगान एक सुखद अनुभूति से भर देता था, वही अब उसके अहं को ठेस पहुंचाने लगा। उसे पिया के सामने अपना अस्तित्व बौना होता महसूस होता। वह शिखर पर होने के बावजूद नीचे सरक रहा था। वह जब किसी से बात करता तो पिया उसके आगे कुछ ऐसा कह देती कि सब वाह करने लगते। उसे लगने लगा कि उसका अच्छा होना, उसके अस्तित्व, उसकी बौद्धिकता और श्रेष्ठता सब पर कुठाराघात कर रहा है।
अपने क्षेत्र में तो वह निरंतर आगे बढ़ रहा था कि पर अपने ही मां-बाप, भाई-बहन, नाते-रिश्तेदार, मित्र, पिया को उससे बेहतर मानने लगे थे। सर्वगुण संपन्न होने की उपाधि धारण किए पिया इस खुशी में सराबोर थी और उसका भरपूर आनंद उठाना चाहती थी। वह समझ ही नहीं पाई कि उसको मिल रही प्रशंसा से कुंठित होता शिवम अपने इर्दगिर्द एक महीन जाला बुन रहा है। उसमें आए बदलाव को यकायक वह समझ नहीं पाई थी। वह अचानक बात-बात पर बेवजह उस पर गुस्सा होने लगा, उसकी हर बात को काटने लगा। उसके हर काम में गलतियां निकालने लगा। जब भी कोई पिया की तारीफ करता, वह मुंह बनाकर या तो वहां से चला जाता या उसकी कमियां गिनाने लगता।
जहां एक तरफ पिया के लिए प्रशंसा बटोरना एक नशा बन गया था, वहीं शिवम के लिए उसे नीचा दिखाना एक जुनून बन गया। वह सबके सामने उसकी बेइज्जती करता। पिया उसके प्यार की खातिर सब कुछ सह लेती या शायद वह कोई प्रतिक्रिया कर अपनी इमेज दूसरों के सामने बिगाड़ना नहीं चाहती थी। हालांकि इस बात का एहसास उसे बहुत बाद में हुआ था। दोनों अपने-अपने ढंग से जीने लगे थे, अपनी दुनिया के पैमाने स्वयं गढ़ते हुए। जैसे एक-दूसरे के लिए उस दुनिया में जगह ही नहीं रह गई थी।
शिवम का पिया के प्रति क्रूर व्यवहार और उसका विरोध न करना, इस बात से भी पिया दूसरों की नजरों में ऊंची उठ गई। प्रशंसा के साथ अब उसे सहानुभूति भी मिलने लगी। सब शिवम को ही बुरा कहने लगे, “तू क्यों इसे तंग करता है। और यह है कि वह चुपचाप सब सह जाती है।”
शिवम चिढ़ता गया, बौखलाता गया, उसके अंदर की घुटन इतनी बढ़ी कि वह पहले दरवाजों और दीवार पर और फिर पिया पर हाथ उठाने लगा। जब वह एक दिन पिया को मारने के लिए हाथ उठा रहा था तो उसे दिल का दौरा पड़ गया और साथ ही शरीर का बाएं हिस्सा भी पैरेलाइज्ड हो गया। एक साल हो गया है शिवम को बिस्तर पर पड़े हुए। बीच-बीच में उसे व्हील चेयर पर बिठाकर कमरे से बाहर ले जाया जाता है। भीतर से सब उदास हैं, पर पूरा परिवार उसे खुश करने की कोशिश करता है, पर वह बिल्कुल खामोश हो गया है।
खामोश तो अब पिया भी रहने लगी है। बस नहीं बदला है तो उसका समर्पण भाव, सेवा करने का जज्बा। दिन-रात शिवम के लिए एक किए रहती है। विदआउट पे छुट्टी ले रखी है।
घर के सारे सदस्यों के साथ शिवम ड्राइंगरूम में व्हील चेयर पर बैठा टीवी देख रहा था। मां उसके बालों में उंगलियां फिरा रही थीं। मां के हाथों का स्पर्श हमेशा सुखद होता है। उसने मां का हाथ पकड़ लिया और एक नन्हे शिशु की तरह उसे देखने लगा। मानो किसी तरह का आश्वासन चाहता हो, “मां बोलो न मैं अच्छा हूं न? तुम्हारा सबसे अच्छा बच्चा।”
“मेरा प्यारा बच्चा, चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा। डॉक्टर ने कहा है न कि रोज मालिश करने से तू जल्दी ठीक हो जाएगा। और फिर पिया है न तेरा ख्याल रखने को। दो टाइम बिना भूले तेरी मालिश करती है। जिसकी पत्नी इतनी अच्छी हो, जो इतना प्यार करती हो, उसे तो चिंता करनी ही नहीं चाहिए बेटा।” मधुरिमा ने बहुत प्यार से पिया की ओर देखते हुए कहा।
अचानक शिवम ने मां का हाथ छोड़ दिया। पिया ने देखा सब कुछ। तो क्या सच में वही जिम्मेदार है शिवम की इस हालत की? उसका अच्छा होना शिवम के पौरुष को आहत कर गया। काश वह पहले इस बात को समझ पाती! तब क्या वह शिवम के लिए प्रशंसा बटोरना छोड़ देती? शायद हां, शायद नहीं!
सारे जवाब हैं पिया के पास। बस अब खुद ही सवाल-जवाब करने की जैसे आदत पड़ गई है। पहली बार उसे मां का अपनी तारीफ करना अच्छा नहीं लगा। उनकी हर बात को अनसुनी कर वह व्हील चेयर को धकेलती हुई शिवम को अंदर कमरे में ले गई। शिवम को बिस्तर पर लिटा बिना कुछ कहे उसके सीने पर उसने सिर रख दिया। उसके आंसू शिवम को भिगो रहे थे। वह अपने दाएं हाथ से उसकी पीठ को सहला रहा था। पिया का मन हुआ कि वह चीख-चीखकर कहे कि शिवम तुम ही सत्य हो, तुम ही सुंदर हो… तुम ही सत्यम, शिवम, सुंदरम हो।
- सुमन बाजपेयी
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