“तो ये है पूरी हकीकत, जिसे मैं आपसे बताना जरूरी समझता था। रवि ने शीना की आंखों में झांका। वहां उसे अनमनेपन और नकार के बादल दिखे। जो कि होने ही थे।
“मुझे कोई जल्दी नहीं हैं। मुझे आप पसंद हैं, बल्कि आप बहुत अच्छी लगीं। आप सोच लीजिए,” कहते हुए वह कमरे से बाहर निकल गया।
उसके जाने के बाद सब शीना को घेरकर बैठ गए। “बाप रे! दो घंटे क्या बतियाता रहा वो तुझसे?” दादी ने सबसे पहले उत्सुकता दिखाई। शीना अपने अनमनेपन से निकल नहीं पा रही थी। बस चुप लगाकर बैठ गई।
रात में मां उसके कमरे में आईं और कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। अब शीना की रुलाई फूटी। मां ने पूरे धैर्य के साथ उसकी बात सुनी। बात खत्म होते-होते उनके होंठों पर मुस्कान आ गई।
मां ने अपना हाथ उसके गालों पर बड़े प्यार से फेरना शुरू किया- “मुझे पूरा यकीन है मेरी बच्ची पर। मेरी बेटी तो सूरत और सीरत दोनों में लाजवाब है। मुझे पूरा यकीन है कि वो एक दिन अपने पति का दिल जीत ही लेगी।”
शीना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वो रूठी सी बोली, “लेकिन मां, मैं ऐसे लड़के से शादी नहीं करना चाहती।”
“चल पगली। इतनी मुश्किल से ये रिश्ता मिला है। एक तो तू मांगलिक है दूसरे तेरे पिता के पास केवल सद्बुद्धि और अच्छे संस्कारों की ही जमापूंजी है। भाग्यशाली है तू कि इतने बड़े घर से रिश्ता आया। जो लोग न दान-दहेज चाहते हैं न ही दकियानूसी अंधविश्वासो में यकीन रखते हैं। हम ये रिश्ता छोड़ नहीं सकते। यकीन मान धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।”
मां ने सबको खुशखबरी दी कि लड़के वालों की ‘हां’ है। धूम धाम से शादी की तैयारियां होने लगीं। शीना भी धीरे-धीरे सामान्य हो गई।
कमरा फूलों की खुशबू से सराबोर था। रवि के आने पर शीना शर्म से खुद में सिमट गई। रवि ने भी खूब प्यार जताया और प्यारा सा लॉकेट उसके गले में पहनाया। रवि की छुअन से शीना का तन तो एक प्यारी सी सिहरन महसूस कर रहा था, पर मन में रवि की पहली मुलाकात की बातें चल रही थीं। उसका मन फिर अनमना हो गया।
पर ये अनमनापन ज्यादा देर टिक नहीं पाया। आखिर उसके लिए तो ये एहसास बिल्कुल नया था। पहला चुंबन रवि ने उसके माथे पर दिया और पूछा कि उसके नए घर में उसे कोई दिक्कत तो नहीं है।
उसके ‘ना’ में सिर हिलाने पर रवि ने उसे बांहों में ले लिया। “वादा करो कि तुम्हारे मन में कभी भी कोई बात या तकलीफ हो तो तुम मुझे सबसे पहले बताओगी।” शीना ने ‘हां’ में सिर हिला तो दिया, पर कैसे कहती कि सबसे बड़ी तकलीफ तो...
फिर रवि ने अपने होंठ उसके लजाए, तपते होंठों पर रख दिए और फूलों की खुशबू उसके मन से होते हुए आत्मा में उतरती गई।
ससुराल में शीना को सबने हाथोंहाथ लिया। उसके सामने एक नई दुनिया खुली। छोटे से कस्बे से आई शीना ने यहां एक बिल्कुल खुला माहौल देखा, जो उसे बहुत पसंद आया। सबसे अच्छी बात शीना को ये लगी कि रवि ने खुद उससे उसकी पसंद की जगहों पर अपना सीवी डालने को कहा। जल्द ही शीना को उसकी मनपसंद जॉब मिल गई और जिंदगी ढर्रे पर चल निकली।
आज रवि का जन्मदिन था। शहर में रहने वाले रिश्तेदार ऐसे छोटे-मोटे अवसरों पर इकट्ठा हो जाया करते थे। हंसी-मस्ती चल रही थी। ठहाकों के बीच चाय और मोमोज़ आए तो सब लोग उन पर टूट पड़े।
“बाप रे! आज तो हंसते-हंसते इतने लोटपोट हुए कि भूख लग आई।” रानू बोली।
“ए लो, हंसने से भी भूख लगती है” बुआ ने आंखें मटकाईं।
“लगती कैसे नहीं है। अरे भई, ये भी एक धांसू एक्सरसाइज मानी जाने लगी है आजकल,” पापा ने ज्ञान परोसते हुए सबसे बड़ा मोमो उठाया।
“हां, सुना है, वो क्या-क्या कराया जाता है, वो क्या कहते हैं उसे लाऑटर..?” दादी के लाऑटर बोलने के साथ ही एक सम्मिलित ठहाका गूंजा।
“लाफ्टर थेरेपी” खूब हंसने के बाद पापा बोले, “भई मोमोज़ बहुत अच्छे हैं, मगर तुम बहुत ज्यादा मंगा लेते हो रवि।”
शीना भी खुलकर हंस पड़ी। तभी रवि के मुंह से निकल गया, “अरे ज्यादा कहां! आरती होती तो कहती इतनी कंजूसी भी किस काम की। आधे से ज्यादा मोमोज़ तो वो खुद ही खा जाती है।”
तभी उसने शीना का बिल्कुल बुझ गया चेहरा देखा। “मेरा मतलब है थी… खा जाती थी।” वो सकपका गया।
शीना अपने बेडरूम में उदास सी बैठी थी कि रवि ने पीछे से आकर अपने अलमस्त अंदाज में उसकी कमर में बाहें डाल दीं, “चलो, मुझे पूरे तीस किस दो। मेरी बर्थडे का असली प्रेजेंट।” फिर शीना का मूड देखकर वो थोड़ा गंभीर हो गया।
बड़े प्यार से उसे बांहों में लेकर बोला “आरती मेरा कल थी, तुम आज हो। मैंने तुम्हें इसीलिए पूरी बातें शादी से पहले विस्तार से बताई थीं ताकि अगर कल को तुम्हें कोई गलत मकसद से भी कुछ बताए या मेरे मुंह से उसकी कोई याद निकल जाए तो तुम्हारे मन में शक का कोई कीड़ा न जन्मे।”
फिर लंबी सांस लेकर रवि ने फिर कहा, “देखो शीना, मेरा सच ही मेरी वफादारी का सबसे बड़ा सबूत है।”
शीना का मन रवि की प्यारी बातें सुनकर पिघलने लगा। उसने बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा। फिर रवि के जन्मदिन पर उसे उदास करना नहीं चाहती थी वो। तो उसकी फरमाइश पूरी करने लगी।
यही होता था। हर कुछ दिन पर आरती का कोई न कोई जिक्र किसी न किसी की जुबान पर आ ही जाता था। कभी-कभी तो उसकी तारीफ कुछ ज्यादा ही हो जाती थी और शीना के मन में कुछ टूटने लगता था। दिल में कुछ दरकने लगता था।
वो भूल नहीं पा रही थी कि आरती, रवि का पहला प्यार थी। इतनी शिद्दत से रवि ने उसे चाहा था कि उसके शादी से मना करने के बाद वो डिप्रेशन में चला गया था और उसका साइकेट्रिक से इलाज कराना पड़ा था।
दरअसल शादी की बात पर आरती के पिता भड़क गए। उनका कहना था कि यदि आरती की शादी उन्होंने दूसरी बिरादरी में की, तो लोग अपनी बेटियों को शहर भेजकर पढ़ाना बंद कर देंगे। ये कहकर कि पढ़ने से लड़कियां बिगड़ जाती हैं। इस पर आरती ने खुद ही शादी से इनकार कर दिया।
शीना को ये बात सालती रहती कि वो अपने पति का पहला प्यार नहीं है। उसे समझ नहीं आता था कि वो अपने मन का क्या करे, जो ये मानने को तैयार ही नहीं होता था कि वो अपने पति के दिल की अकेली मल्लिका है। उसे अपनी सबसे पर्सनल जगह आरती शेयर करती नजर आती थी हमेशा। और यही फांस उसे एक दिन भी खुलकर खुश होने नहीं देती थी...
“अरे तुम!” शीना खुशी से चिल्लाई। उसकी सबसे अच्छी दोस्त आकृति उसे यूं मिल जाएगी यह उसने कभी सोचा भी नहीं था।
बहुत जल्दी ही दोनों सहेलियों में अपनी पूरी जिंदगी डिस्कस हो गई। दोनों फ्री थी तो कैफ में बैठ गई।
“तुझे खुश देख कर बहुत अच्छा लगा” शीना ने प्यार से आकृति के कंधे पर हाथ रखा। फिर शीना ने उसके अतीत के बारे में पूछा, “मैंने सुना था कि तुम बहुत डिप्रैस हो गई थीं।”
“सिर्फ डिप्रैस नहीं हुई थी मुझे तो साइकेट्रिक के इलाज की जरूरत पड़ गई थी। वह तो कहो समय पर अच्छा साइकेट्रिक मिल गया नहीं तो मुझे मेंटल हॉस्पिटल में एडमिट कराना पड़ जाता। इतना टूट कर प्यार किया था मैंने राकेश से कि उस से टूट कर खुद टूट गई। जैसे कहानियों में कहा जाता है ना कि दिल के हजार टुकड़े हो गए। वास्तव में दिल टूटने पर वैसा ही महसूस होता है। मैंने उस दर्द को सहा है।” आकृति की आवाज तो गंभीर थी, लेकिन उसका चेहरा बहुत खुश था।
शीना ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहने लगी, “मुझे बहुत खुशी है कि तू इन सब से निकल आई।”
तभी उसका फोन बज उठा। आकृति ने फोन उठाया और चहककर बोली, “हां जान, कैसे नहीं याद रखूंगी आखिर मेरी जिंदगी हो तुम।”
आकृति अपने नए पति के बारे में बता रही थी और शीना उसके चेहरे पर संतोष, खुशी और प्यार के हजारों रंग आते जाते देख रही थी। आकृति ने अपने पति के लिए ढेर सारे गिफ्ट खरीदे थे।
आखिर शीना खुल ही गई जब आकृति ने उसकी जिंदगी के बारे में पूछा।
“एक बात बता आकृति, क्या सच में तो अपने पुराने प्यार को भूल कर नए प्यार को पूरे दिल से प्यार कर पाई है? कहते हैं इंसान अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलता।”
सवाल पूछने के बाद शीना को लगा कि आखिर क्यों कुरेद दिया उसने आकृति को, मगर उसके सवाल पर आकृति मुस्कुरा दी, “अच्छा एक बात बता, मेरे चेहरे से क्या लगता है तुझे?”
“चेहरे से तो खुशी झलकती है।”
“फिर यकीन क्यों नहीं होता? सच तो ये है कि जीवन कविता से अलग होता है। अच्छा चल तुझ उदाहरण से समझाती हूं। बचपन में हमने पढ़ा था ना कि इंसान प्रकृति से अलग नहीं है। जिस तरह नदी हमेशा बहती रहती है, हवा बहती रहती है, पेड़ों की पत्तियां झड़ती हैं और उनके स्थान पर नई पत्तियां आ जाती हैं, उसी तरह इंसान भी आगे बढ़ने का आदी होता है। चाहे कोई कितना अपना हो, जब वह मर जाता है तो उसे दफनाना पड़ता है। उसी तरह जब कोई रिश्ता मर जाता है तो इंसान का स्वभाव है उसे दफना देने का और आगे बढ़ जाने का।”
मैं यह नहीं कहती कि मुझे अपने पहले प्यार की याद नहीं आती, मगर वह याद कभी भी मेरे नए प्यार पर हावी नहीं होती है। हां, एक दोस्त, एक परिचित की तरह याद आती है और वह आनी भी चाहिए। अगर हम किसी से नफरत करेंगे तो वह नफरत हमें भी अंदर ही अंदर सालती रहेगी। इससे अच्छा है कि उसके लिए मन में वैसा ही भाव रखें जैसा कि किसी भी परिचित के लिए होता है और यह पॉसिबल है।
शीना आकृति का चेहरा देख रही थी और रवि का चेहरा याद कर रही थी। सच, उनका चेहरा भी तो इतना ही खुश, इतना संतुष्ट रहता है। फिर क्यों उसका मन उसमें दर्द या आरती की यादें ढूंढता रहता है।
आज आकृति का जीवन देखकर शीना के मन से एक फांस निकल गई। अब वह अपने पति के प्यार को खुल कर जी सकती थी।
- भावना प्रकाश
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