“यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मेरा हाथ।” इना झल्लाते हुए सुमित से बोली।
“मुझे कोई शौक नहीं तुम्हारा हाथ पकड़ने का...। आखिर कब तक अपनी मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाए घूमती रहोगी?”
सुमित की इस बात के इना के पास के कई जवाब थे। मगर उसने उन्हें इग्नोर करना बेहतर समझा। अपना हाथ छुड़ाकर वह अपने कमरे की तरफ दौड़ गई थी। उसकी आंखों के सामने दो साल पुरानी घटना फिल्म के किसी सीन की तरह घूम गई। जब रात के दो बजे एक मैसेज से इना की जिंदगी नरक कर दी थी। शादी की रस्मों को पूरा कर थकी इना जब अपने कमरे में पहुंची और सुमित का इंतजार करने लगी। बिस्तर पर पड़े बेला और गुलाब के फूल अपना रंग बदल चुके थे। बैठते ही उसके फोन पर सुमित का मैसेज फ्लैश हुआ। इना ने खुश होकर मैसेज खोला और बस देखती ही रह गई।
'इना, आई एम वैरी सॉरी! मैं किसी और से प्यार करता हूं। लेकिन मां को वो लड़की पसंद नहीं। वह तुम्हें देखते ही बहू बनाने को तैयार हो गई। मेरे कई बार मना करने पर भी मां नहीं मानी और जान देने की धमकी देने लगी। मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था, मुझे मजबूरन तुमसे शादी करनी पड़ी। लेकिन अब तुम आजाद हो। जहां चाहे जा सकती हो। मैं हमेशा के लिए यहां से जा रहा हूं।'
बिस्तर पर सजे फूलों को भींचते हुए इना नीचे गिर पड़ी थी। थोड़ी देर बाद जब होश आया तो पागलों की तरह बोलने लगी, “क्या आज मैं सचमुच आजाद हो गई?” उस रात इना को अपनी जान लेने के सिवा और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। तभी उसे अपने पापा की बात याद आ गई...
'जिंदगी को जीना मुश्किल है और खत्म करना आसां... तुम जिस पेशे से हो, वह जिंदगी देता है लेता नहीं। जिंदगी बहुत कीमती है, इसे फिजूल मत गंवाना।'
इना ने अपनी खुशी को त्याग कर पापा के बताए लड़के से शादी करना मंजूर कर लिया था, जबकि वह विवेक से प्यार करती थी। विवेक मेडिकल की तैयारी कर रहा था। एग्जाम पास कर प्रैक्टिस करने तक साल बीत जाते। बस इस वजह से पापा की जिद के आगे उसने अपनी खुशियों का गला दबाना पड़ा।
इना सोचने लगी कि उसने तो दो परिवारों की खुशी के लिए जो फैसला लिया था, वही गलत हो गया। भारी कदमों से इना अपनी सास के पास गई और उन्हें सुमित का मैसेज दिखाया, जिसे देखते ही वह उसके पैरों पर गिर पड़ी। “मुझे माफ कर दे बेटी। मैंने सोचा था, तुझसे शादी करके सुमित उस औरत का पीछा छोड़ देगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मैं तेरी गुनाहगार हूं। तू वापस लौट जा, चली जा अपने मायके। हम तेरे काबिल नहीं।”
सास अपने मन की बात कहे जा रही थी और सुमित अपने मन की कर चुका था। इना की तो जैसे किसी को फिक्र ही नहीं थी। बड़ी हिम्मत करके पापा को सारी बातें बताईं। पापा बेटी का यह दुख नहीं झेल सके और हार्ट अटैक में अपनी जान गंवा बैठे। कुछ दिनों बाद इना की सास उसे अपने घर लेने आ पहुंची, यह कहकर कि आज से यही तेरा अपना घर है।
अपनी सास में इना अपनी मां को खोजने लगी थी। सासू मां ने ही उसे डॉक्टरी की पढ़ाई को पूरा करने की हिम्मत दी। वक्त पंख लगाकर गुजरता गया और आज इना एक नामी हॉस्पिटल में हार्ट स्पेशलिस्ट बन गई।
दो साल बाद आज आ धमका था, सुमित। अपने डॉक्यूमेंट्स लेने। तभी उसने इना का हाथ दबाया था, लेकिन सास ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
एक महीने बाद इना के हॉस्पिटल में सुमित चेस्ट पेन की वजह से एडमिट हुआ। टेस्टिंग के बाद पता चला कि उसे दो माइनर हार्ट अटैक आ चुके हैं और उसने अपनी लापरवाह लाइफस्टाइल भी नहीं बदली है।
सुमित के चेकअप की रिपोर्ट्स देखकर इना जड़ हो गई। इमरजेंसी वॉर्ड में हाथ जोड़कर सुमित ने इना से पहली बार माफी मांगी। तभी नर्स ने आकर बताया कि सुमित के घर से कोई भी सर्जरी के पेपर साइन करने नहीं आया है। सुमित ने ऑक्सीजन मास्क पहने हुए इशारे में कहा, “मैं अकेला ही हूं, कोई आने वाला नहीं है।”
इना ने पूछा, “आपकी वाइफ कहां हैं?” तब सुमित ने बताया कि वह उसे छोड़कर जा चुकी है। सुमित के हालात देखकर इना को दया आ गई। उसने नर्स को कहा, “पेपर्स तैयार करो, मरीज को ओटी में ले जाओ, मैं पेपर साइन कर रही हूं।”
इना उस दिन सुमित की सर्जरी कर घर देर से लौटी थी और घर पर बैठे शख्स को देखकर चौंक गई। सास-ससुर ड्राइंग रूम में बैठे गेस्ट के साथ ठहाके लगाकर हंस रहे थे। सास ने जिससे परिचय कराया, वह और कोई नहीं विवेक था, जो उनका दूर का रिश्तेदार था। डॉक्टर विवेक दो साल अमेरिका में रहकर लखनऊ लौटा था और घर मिलने तक उसे कुछ दिन उनके साथ रहना था। दस दिन बाद जब विवेक अपने घर में शिफ्ट होने की तैयारी कर रहा था, तब वह बहुत हिम्मत बटोर कर इना के पास गया और बोला, “आंटी मुझे सारी कहानी बता चुकी हैं, मैं सबकुछ जानता हूं। क्या मुझसे शादी करोगी?”
दरवाजे पर खड़ी सास मुस्कुराहट लिए विवेक की बात सुन रही थीं।
एक बार फिर इना की जिंदगी का फैसला कोई और करने जा रहा था। इना के सामने सुमित का चेहरा घूम गया और दूसरी तरफ विवेक का अपनी तरफ बढ़ता हाथ नजर आ रहा था। वह अपने आप को बहुत थका और बीमार महसूस करने लगी।
- गीतांजलि
E-इश्क के लिए अपनी कहानी इस आईडी पर भेजें: db.women@dbcorp.in
सब्जेक्ट लाइन में E-इश्क लिखना न भूलें
कृपया अप्रकाशित रचनाएं ही भेजें
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.