और वह दिन आ ही गया। एक लंबा सफर तय करके वह उसके शहर पहुंचा और एक कैफे में उससे मुलाकात की। वह बहुत कमजोर लग रही थी और वह जानता था कि उसने कितनी रातें रोते हुए बिताई हैं। फोन पर बात करते हुए भी वह रोने लगती। उसकी आंखों के नीचे काले गड्ढे आ गए थे। वह बीमार लग रही थी।
वह उसे गले लगाना चाहता था। पूरे एक वर्ष बाद वे मिल रहे थे। लेकिन खुद को उसने रोक लिया। वह जिस कारण यहां आया था, उसके बारे में सोचकर उसने उसे चूमने का ख्याल भी दिल से निकाल दिया। अलग होने से पहले वे एक आखिरी बार मिलना चाहते थे। उसने जो महंगी घड़ी उसे दी थी, वह उसे भी लाई थी ताकि उसे लौटा सके।
उन्होंने दो कोल्ड कॉफी और एक प्लेट चीज सैंडविच का ऑर्डर दिया और कुछ मिनटों के लिए एक-दूसरे को देखते रहे। उसकी आंखें नम थीं। वह कोशिश कर रही थी कि आंसू बाहर न निकलें। जब ऐसा करना मुमकिन नहीं हुआ तो उसने सिर घुमाया और झटके से रुमाल से आंसू पोंछ लिए। अब उसकी आंखें एकदम सूख गई थीं, जैसे उन्होंने भी हालात से समझौता कर लिया हो।
“अब क्यों रो रही हो मिताली?” रूपेश ने पूछा। “क्या अलग होने का फैसला तुम्हारा नहीं था? तुमने ही तो मुझे इतनी दूर से सब कुछ खत्म करने के लिए बुलाया है। फिर रोना क्यों?”
वह चुप रही, लेकिन वह उसका जवाब समझ गया था। फिर उनकी कॉफी आ गई और उसने घड़ी का डिब्बा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “मैंने इसे कभी पहना नहीं, क्योंकि मैं अपनी शादी के बाद इसे पहनना चाहती थी। इसे वापस ले लो। इसे उसे देना जो तुम्हारी पत्नी बनेगी।”
अगले कुछ मिनट तक हम अपने रिश्ते के बारे में चर्चा करते रहे। और इस पर भी कि कैसे हमारे पास अलग होने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचा है। फिर हम जाने के लिए खड़े हो गए। मिताली ने कहा कि वह बाहर उसकी प्रतीक्षा करे। वह अपने चेहरे को धोना चाहती थी, इसलिए वॉशरूम की ओर बढ़ गई।
वह उसे इस अवस्था में नहीं देख सकता था। वह कभी भी उसे रुलाना नहीं चाहता था। वह जानता था कि वह कभी भी यह रिश्ता खत्म नहीं करना चाहती थी। वह मजबूर थी, क्योंकि वह शादी के लिए तैयार नहीं था। जबकि मिताली के माता-पिता उसे शादी करने के लिए कह रहे थे। उनका कहना था कि वह सत्ताईस साल की हो चुकी है और शादी के लिए और देर करना उचित नहीं है। वह अपनी जगह ठीक थे।
जब मिताली वॉशरूम से वापस आई, तो उसने उसका हाथ पकड़ लिया, और उसे पार्किंग की ओर ले गया जहां उसकी स्कूटी खड़ी थी। उसने उसे चाबी दे दी, लेकिन स्कूटी के पीछे बैठे लगातार पूछती रही कि वह उसे कहां ले जा रहा है। रूपेश ने कोई जवाब नहीं दिया और कहा कि वह थोड़ी देर में खुद जान जाएगी।
वह ऐसे अपार्टमेंट ढूंढ रहा था जो बन रहे हों और जहां कोई सुरक्षा गार्ड न हो। कुछ समय बाद उसे एक ऐसी जगह दिखाई दी। वह उसे ऊपर छत पर ले गया। उसने उसका हाथ कसकर थाम लिया। उसे दीवार से सटाते हुए बोला,“तुम रो क्यों रही हो? मैं तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता।”
मिताली ने सिर घुमाते हुए अपना चेहरा छिपाने की कोशिश की। लेकिन आंसू लगातार बह रहे थे। वह बोली, “मुझे अकेला छोड़ दो, तुम अपने शहर वापस लौट जाओ। मैं खुद को संभाल लूंगी। फिर मुझसे संपर्क करने की कोशिश मत करना।”
वह वापस जाने के लिए मुड़ा, लेकिन अचानक मिताली ने फिर उसका हाथ पकड़ लिया। उसे अपनी ओर खींचते हुए वह उसके सीने से लग गई। वह अब जोर-जोर से रो रही थी। नम आंखों से मिताली कहे जा रही थी कि वह नहीं संभाल सकती खुद को।
“मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती रूपेश।” उसकी आवाज में दर्द था, बेइंतहा पीड़ा। वह बोली, “मैं नहीं चाहती कि किसी और के हाथ मेरे शरीर को छूएं, मैं किसी और के साथ एक ही बिस्तर पर सोने की कल्पना नहीं कर सकती। कोई और पुरुष मुझे चूमेगा, ठीक वैसे ही जैसे तुमने मुझे चूमा है। मेरे होंठों पर अपने होंठ रखेगा, जैसे कि तुम रखते थे। मेरी शादी किसी और से मत होने दो। मैं जीवनभर अविवाहित रहने के लिए तैयार हूं, लेकिन अपने सपनों को किसी और के साथ नहीं बांट सकती। मैंने तुम्हारे साथ रहने का सपना देखा था। मैं किसी और के साथ अपनी पूरी जिंदगी कैसे बिता पाऊंगी? मुझे छोड़ कर मत जाओ रूपेश। मेरे मां-पापा से बात करो, उन्हें समझाओ। उनसे वक्त मांगो।”
रूपेश उस पल को वहीं रोक देना चाहता था और उसे हमेशा के लिए अपने में समा लेना चाहता था। उसने उसकी पलकों को चूमा और वही फुसफुसाया जो वह सुनना नहीं चाहती थी, "मैं अभी तुमसे शादी नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अच्छी तरह से सैटल नहीं हूं। तुम्हारे माता-पिता कभी नहीं चाहेंगे कि मेरे जैसे लड़के से तुम्हारी शादी हो, जिसके ऊपर ढेर सारी जिम्मेदारियां हैं और जो अभी इतना भी नहीं कमाता कि तुम्हें एक अच्छी जिंदगी दे सके। मुझे अभी अपनी बहनों की भी शादी करनी है। मैं तुम्हारे लिए सही जीवन साथी हूं, यह साबित करने के लिए मुझे समय चाहिए।"
मिताली ने उसे जोर से धक्का दिया और गुस्से में अपना हाथ दीवार पर मारने लगी। उसने उसे तुरंत वहां से चले जाने के लिए कहा। वह चला गया और वह वहीं बैठी रोती रही।
दो घंटे के बाद रूपेश का मैसेज आया, ‘तुम उस छत पर कब तक रहोगी। मैं तुम्हारे घर में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। तुम्हारे पापा चाहते हैं कि उनके सामने तुम अपनी मंजूरी दे दो कि तुम मेरे साथ खुश रहोगी। मैं अभी अच्छा नहीं कमाता, यह बात मैंने उन्हें बता दी है। पर न जाने क्यों उन्हें यकीन है कि जल्दी ही मैं अच्छा कमाने लगूंगा, शायद उन्हें मेरी काबिलीयत पर भरोसा हो गया है या उनकी नजरें पारखी हैं। जो भी हो, मैं और इंतजार नहीं कर सकता। जल्दी आओ। तुम किसी और की हो जाओ, यह मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं। मैं और अकेले तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। मैं तुम्हें सीने से लगाना चाहता हूं। मैं तुम्हें चूमना चाहता हूं। तुम जल्दी आ जाओ।”
- सुमन बाजपेयी
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