कुछ महीने पहले ही अंशुल की शादी रीमा से हुई थी। रीमा एक समझदार और सुलझी हुई लड़की थी। वो समझती थी कि घर चलाने के लिए काम भी जरूरी है इसलिए उसने कभी भी कोई शिकायत नहीं की, बल्कि वो तो अंशुल का हाथ बटाने के लिए खुद नौकरी तलाश रही थी।
शादी के बाद रीमा का पहला जन्मदिन था इसलिए उसने अंशुल से ऑफिस जाते वक्त कहा, "सुनो, आज जल्दी घर आ जाना।"
अंशुल ने कहा कुछ नहीं, बस ‘हां’ में सर हिला कर निकल गया।
शाम को ऑफिस से जल्दी निकल कर अंशुल पहले बाजार की तरफ निकल गया। उसने रीमा के लिए हरी चूड़ियां और एक बनारसी साड़ी खरीदी।
अब वह केक लेने रीमा के पसंदीदा कुमार स्वीट्स में घुस ही रहा था कि उसे अपने बचपन का दोस्त राहुल मिल गया।
उससे बात करने के बाद उसे कुछ ऐसा पता चला जिस बात से वह अनजान था। राहुल, रीमा के ही कॉलेज में पढ़ता था। उसने रीमा के खिलाफ अंशुल के कान भर दिए। अंशुल को पता चला कि कॉलेज में रीमा के पीछे कई लड़के थे। ये सुन कर वह आग बबूला हो गया और केक भी नहीं खरीद पाया।
उसका सारा उत्साह गुस्से में बदल गया। अंशुल को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। घर जाने की इच्छा नहीं हो रही थी इसलिए वह सीधा समंदर की तरफ चल दिया। समंदर किनारे बैठे अंशुल की आंखें नम थीं।
उधर रीमा घर में अंशुल का इंतजार कर रही थी। उसने जब कॉल किया तो पहले तो अंशुल ने फोन नहीं उठाया, फिर थोड़ी देर में खुद ही कॉल कर लिया और बड़ी बेरुखी से बोला "देखो, मैं लेट हो जाऊंगा, तुम खाना खा कर सो जाना।"
रीमा की आंखें भर आईं। उसने धीमी आवाज में कहा, "आपके बिना मैं खाना नहीं खाऊंगी, मैं इंतज़ार कर लूंगी।" रीमा का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया।
अंशुल समंदर किनारे थोड़ी देर और बैठा रहा। अकेले बैठे हुए वह फोन में अपनी शादी की तस्वीरें देखता रहा। रह-रह कर उसे राहुल की बातें याद आ रही थीं कि रीमा कॉलेज के दिनों में बहुत से लड़कों को डेट कर चुकी है। उसका ध्यान एक तस्वीर पर गया जो उस वक्त की थी जब रीमा और अंशुल पहली बार मिले थे।
थोड़ी देर बाद अंशुल ने कपड़ों से रेत झाड़ी और घर की ओर निकल गया। रीमा सोफे पर बैठे-बैठे सो गई थी। आहट सुन कर तुरंत जाग गई और बोली, “आ गए आप! चलिए केक काट लेते हैं पहले।”
अंशुल ने रीमा को गिफ्ट दिए, पर उसके चेहरे के भाव अब भी उदासीन ही थे।
रीमा से अब रुका न गया। उसने अंशुल से पूछ ही लिया, “बात क्या है! सुबह से ही आप ऐसा मुंह बना कर बैठे हैं!"
इस पर अंशुल बोल पड़ा, "तुम बस मेरी हो, मुझे नहीं पसंद कि पहले कोई और तुम्हारी जिंदगी में था। मैं ये बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। बस!”
रीमा सारा माजरा समझ चुकी थी। उसने प्यार से अंशुल के हाथ अपने गले में डाल लिए और उसकी तरफ देखते हुए प्यार से बोली, “देखो मेरी बिंदी, इस पर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा है। ये देखो सिंदूर, ये तुम्हारे नाम का है, और जो चूड़ी तुम मेरे लिए लाए हो न वो बस तुम्हारा नाम लेती हैं। शादी से पहले का जीवन न तुम बदल सकते हो और न मैं। वो सब झूठ था, ये जो हम दोनों यहां साथ हैं न, बस यही सच है। समझे मेरे भोले पति!"
अंशुल को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपने आप से सवाल किया कि शादी से पहले की बातों के लिए अपना आज खराब करना क्या सही है? उसकी आंखें नम हो गईं।
अंशुल को अपने किए का पछतावा हो रहा था। वह समझ चुका था कि जिंदगी में जब कोई हमेशा के लिए आ जाता है तो अतीत मायने नहीं रखता।
अंशुल घुटनों के बल बैठ गया। रीमा की तरफ प्यार से देख कर बोला, “आज से तुम्हारे हर जन्मदिन पर मैं खुद तुम्हें कुछ बना कर खिलाऊंगा और साथ में हर वो काम करूंगा जो एक पति को करना चाहिए। क्या तुम मेरा जीवनभर यूं ही साथ दोगी?"
यह कहते हुए अंशुल ने रीमा का माथा चूम लिया और उसके गाल पर प्यार से बोसा दे दिया।
नम आंखें लिए रीमा ने अपना सिर अंशुल के कंधों पर टिका दिया और उसे गले से लगा लिया।
- हेमा काण्डपाल
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