बेडरूम में हम दोनों अकेले थे। साथ-साथ,लेकिन दोनों चुप। शायद इंतजार कर रहे थे कि दोनो में से इस चुप्पी को तोड़ने की पहल कौन करेगा?
आखिर पहल शालू ने ही की, “कबीर, एक बात बताइए, मुझ से शादी करने से पहले आपका किसी लड़की के साथ अफेयर था?”
“ये कैसा प्रश्न है शालू? चाहे लड़का हो या लड़की, शादी से पहले अक्सर सबका अफेयर होता ही है।” मैंने हल्के से बात टालने की कोशिश की।
“मैं दूसरों की नहीं आपकी बात कर रही हूं कबीर।”
“लेकिन अब शादी के एक साल बाद इस सवाल की क्या अहमियत रह जाती है?”
“देखिए, हम दोनों ने शादी के समय कसम खाई थी कि हम कभी भी एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाएंगे।”
शालू को एकटक अपनी ओर निहारते देख कर मैं उसके बहुत करीब आ गया। उसका चेहरा मेरी चौड़ी छाती पर टिका हुआ था।
मैंने शालू से कुछ नहीं छुपाया, “हां, था मेरा अफेयर एक लड़की के साथ, काव्या नाम था उसका।”
शालू मेरे आगोश से निकलकर उठकर बैठ गयी।
“सुंदर थी?” नारी सुलभ उत्सुकता उसके चेहरे पर मुखर हो उठी।
“हां।”
“मुझ से भी ज्यादा?”
“हां।” मैंने उसे चिढ़ाया।
“आपकी कुलीग थी?”
“सारे सवाल एक ही समय में पूछ डालोगी या कुछ कल पर भी छोड़ोगी?” मैंने मुस्कुराकर शालू से पूछा तो वह बच्चों की तरह मचलकर बोली,“बताओ…”
“कोचिंग इन्स्टिट्यूट में मिला था मैं काव्या से। उन दिनों हम दोनों आईएएस की तैयारी कर रहे थे। काव्या झांसी की रहने वाली थी और ये जानकर कि मैं भी महोबा उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं, हम दोनो में गहरी मित्रता हो गयी। जब भी समय मिलता कोचिंग इंस्टीट्यूट के बाहर हम चाट खाने चले जाते, फिर मंदिर के चारों ओर फैली हरी घास पर बैठकर यूट्यूब पर नए-नए गाने सुनते। मुझे अंग्रेजी गानों का बहुत शौक था।
मैं अक्सर विश्वविख्यात अमरीकी गायक ‘नेट किंग कोल’ का वो प्रसिद्ध गाना सुना करता था जिसमें प्रेमी प्रेमिका को गाना सुनाते हुए कहता है, ‘तुमने मुझे स्टेपिंग स्टोन की तरह इस्तेमाल किया है,अगर तुम्हें मुझ से अच्छा कोई दूसरा व्यक्ति मिल गया,और तुमने मेरा साथ छोड़ दिया और अगले आदमी की ओर बढ़ गई तो? मेरी जान, मुझे बताओ कि लाइन का अगला आदमी कौन सा होगा जिसके गले में तुम अपनी बाहें डालोगी?’
“काव्या, कहीं तुम मुझे भी तो स्टेपिंग स्टोन की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रही हो?” मैं काव्या से अक्सर पूछता।
“क्या मतलब?”
“मतलब ये कि जिंदगी में तुम्हें कोई दूसरा व्यक्ति मिल जाए तो तुम, मुझे तो नहीं छोड़ दोगी?”
काव्या मेरी बात सुनते ही बुरी तरह झुंझला जाती, लेकिन मैं उसकी झुंझलाहट से बेखबर अपनी बात को फिर से दोहराता।
“मुझे पता नहीं क्यों ये डर सताता है कि भविष्य में तुम्हें कोई मुझ से अच्छा दोस्त मिल जाएगा तो तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी?”
काव्या बार बार मेरी बात से इनकार कर देती।
एक दिन मैं और काव्या एक मूवी देखकर वापस लौट रहे थे। सीढ़ियों पर काव्या के कुलीग अनिकेत ने उसके साथ छेड़खानी शुरू कर दी। इतना ही नहीं, उसने काव्या के गाल पर किस भी कर दिया।
मैं ये सब देखते ही आपे से बाहर हो गया। मेरी प्रेमिका को किसी ने छूने की हिम्मत कैसे कर ली? मैंने पास ही रखी एक कुर्सी उठायी और अनिकेत के सिर पर दे मारी। अनिकेत खून से लथपथ हो गया। पुलिस में रिपोर्ट हुई। मुझे दो दिन जेल में रहना पड़ा।
काव्या ने मेरी जमानत तो कर दी, लेकिन मेरे जेल से बाहर निकलते ही उसने मुझे खूब खरी खोटी भी सुनायी, बोली,“अगर अनिकेत मेरे साथ मजाक कर रहा था तो तुमने क्यों दखल दिया?”
“काव्या की बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। उससे भी ज्यादा आश्चर्य मुझे तब हुआ जब मैंने काव्या को उस घटना के बाद अनिकेत के साथ दोस्ती की पींगें बढ़ाते हुए देखा। उस दिन के बाद वो मेरी भी उपेक्षा करने लगी।
इत्तेफाक से उन्हीं दिनों आईएएस की लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ। मैंने परीक्षा पास कर ली,लेकिन इंटरव्यू होने अभी बाकी थे।
ये एक महज संयोग था कि इसी बीच मुझे जर्मनी में स्कॉलरशिप मिल गई। मैंने तुरंत मां और बाबूजी को पत्र लिख दिया कि मैं जर्मनी जा रहा हूं और तीन वर्ष बाद लौटूंगा।
जर्मनी में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं तीन-चार वर्षों तक वहीं की कंपनियों में नौकरी करता रहा।
एक बार भी ये पता लगाने की कोशिश नहीं की कि काव्या और मेरे दूसरे साथियों का क्या हुआ! कभी उनकी याद मुझे बेतरह सताती भी थी तो मैं यही सोचता कि काव्या अभी तक आईएएस कंपीट कर गयी होगी या उसने अपनी गृहस्थी बसा ली होगी।
जर्मनी से ‘बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद जब मैं भारत वापस लौटा तो मुझे दिल्ली की एक प्रसिद्ध कंपनी में चीफ एक्जीक्यूटिव के पद पर नौकरी मिल गई। कंपनी ने मेरे सम्मान में फाइव स्टार होटल में एक भव्य पार्टी दी थी। एडवर्टाइजिंग और समाचारपत्रों की दुनिया के कई जाने माने लोग इस पार्टी में सम्मिलित होने के लिए आए थे।
उसी पार्टी के दौरान एकाएक मेरी मुलाकात काव्या से हो गयी। काव्या से मुलाकात चाहे तीन-चार साल के बाद हुई थी, फिर भी अपनी पुरानी प्रेमिका को देखते ही एक के बाद एक कई प्रश्न मेरे मन में उठने लगे।
जब तक मैं उससे कुछ पूछता, काव्या ने खुद मुझसे पूछा,”तुम अचानक इस तरह कहां गायब हो गए थे?”
“जेल से छूटने के बाद मुझ से लोगों की नफरत बर्दाश्त नहीं हो रही थी। ऐसा लगने लगा था जैसे पूरा कॉलेज मुझे नापसंद करने लगा है। मैंने मन ही मन निर्णय लिया कि अब मुझे इस कॉलेज में नहीं रहना चाहिए।”
“लेकिन जब तुमने आईएएस की परीक्षा पास कर ली थी तो इंटरव्यू क्यों नहीं दिया?”
“मन पूरी तरह टूट गया था। सच पूछो तो मैं दिल्ली में रहना ही नहीं चाहता था…”
फिर मैंने काव्या से अपने दूसरे साथियों के बारे में पूछा जो उसी इन्स्टिट्यूट से कोचिंग ले रहे थे।
“कबीर, मैं आईएएस की परीक्षा कम्पीट नहीं कर पायी। बाद में एक एडवर्टाईजिंग एजेंसी में आ गयी।”
अपने दूसरे साथियों के बारे मे उसने बताया, कोई आईएएस कर कलक्टर के पद पर है, किसी ने पोस्टल सर्विसेज तो किसी ने विदेश सर्विसेज जॉइन कर ली।” घंटों हम दोनों पुराने दिन याद करते रहे।
अचानक काव्या बोली, “कबीर तुम्हारे जेल से निकलने के बाद मैं अनिकेत के बहुत निकट आ गयी थी, क्योंकि अनिकेत ने तुम पर फौजदारी का मुकदमा दायर किया था और वकीलों का कहना था कि यदि अनिकेत मुकदमा वापस नहीं लेता, तो तुम्हें दो-तीन साल की सजा हो जाएगी, इसीलिए अनिकेत से दोस्ती करके मैंने उसे तुम्हारे खिलाफ मुकदमा वापस लेने के लिए राजी कर लिया था।”
“सो नाइस ऑफ यू!”
“प्रेम के लिए तो लोग जान कुर्बान कर देते हैं… क्या मैं तुम्हारे लिए इतना भी नहीं कर सकती थी?” उसने धीरे से कहा तो, एक बार फिर मेरे मन में काव्या के लिए विश्वास पैदा होने लगा। हमारे रिश्ते में फिर से गहराई बढ़ने लगी।
मैं हमेशा यही सोचता रहता कि काव्या ने मेरे लिए कितना बड़ा त्याग किया है, मुझे भी उसके लिए कुछ करना चाहिए।
मेरे ऑफिस में एक पब्लिसिटी मैनेजर की जगह खाली थी। मैंने अपने एमडी से सिफारिश कर काव्या को वो पोस्ट दिलवा दी। शुरू में काव्या मुझे सीढ़ी बनाकर एमडी सर से संपर्क स्थापित करने की कोशिश करती रही। कुछ दिनों के बाद वह सीधे एमडी वोहरा के संपर्क में आने लगी। वो खूब बन ठनकर आती और किसी न किसी बहाने से एमडी वोहरा से जरूर मिलती। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मौका मिलते ही मेरी शिकायत करने से भी नहीं चूकती। ऐसी ही कुछ घटनाओं से मुझे समझ में आ गया कि काव्या सही अर्थ में करियरईस्ट है और मुझे पीछे छोड़कर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है।
एक बार एमडी वोहरा ने मुझे और काव्या को किसी काम के लिए मिनिस्टर के पास भेजा। काव्या जल्दी ही मिनिस्टर से घुल-मिल गयी, उसने जल्दी ही मिनिस्टर को फांस लिया और उनसे वायदा लिया कि वो एमडी वोहरा से शिकायत करके मुझे नौकरी से निकाल देंगे। एमडी ने मुझे बहुत फटकारा। बाद में काव्या ने ऐसा नाटक किया कि उसने बड़ी मुश्किल से मेरी नौकरी बचायी है।”
मैंने एक नजर शालू की ओर देखा। उसके चेहरे पर अकथनीय पीड़ा थी,और उस पीड़ा में ढलकर उसका चेहरा और भी कोमल हो गया था।
“इस बीच काव्या गिरीश नाम के एक ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आयी जो लंदन में रहकर भारत के लिए फिल्में बनाता था। काव्या दो-तीन बार उसके साथ लंदन गयी और फिर उसके साथ विवाह कर लिया।
लंदन में रहस्यमय परिस्थितियों में गिरीश की मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद उसने लंदन में थॉमस नाम के एक अंग्रेज के साथ शादी कर ली। फिर थॉमस के साथ मिलकर भारत, बांग्लादेश और नेपाल के बारे में फिल्में बनाने लगी। ये फिल्में टीवी पर बड़ी लोकप्रिय हुईं।
मैंने इस बीच बहुत पापड़ बेले। एक अखबार में एडवर्टिजेमेंट मैनेजर का काम किया। फिर मैंने एक पत्रिका निकाली जिसका नाम था ‘उगता सूरज’। देखते ही देखते यह पत्रिका बहुत लोकप्रिय हो गयी और एक बार फिर समाज में मेरा सम्मान बढ़ गया।
एक दिन मैं अपने ऑफिस में बैठा रिपोर्टरों को कुछ बता रहा था, तभी चपरासी ने आकर मुझे एक विजिटिंग कार्ड पकड़ाया। कार्ड के साथ एक पर्ची पर काव्या का नाम लिखा था, वह तुरंत मुझ से मिलना चाहती थी।
मुझ को यह सोचकर हैरानी तो हुई कि काव्या यूं अचानक दिल्ली कैसे आ गयी। फिर भी मैंने जल्दी-जल्दी अपना काम निबटाकर काव्या को अंदर बुला लिया। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने ऐसा स्वांग रचा जैसे वो पुरानी सारी बातें भूल गयी हो।
बातों-बातों में उसने ये भी जतला दिया कि वो मेरी परम हितैषी है।
मैंने भी पुरानी बातों को भुला देना ही उचित समझा। काव्या ने मुझ को ये भी बताया कि वो अपनी पुरानी जिंदगी से बुरी तरह ऊब गयी है। अब वो तलाकशुदा और पूरी तरह स्वतंत्र है। इन दिनों वो ‘स्वामी’ नामक एक फिल्म बनाने के सिलसिले में भारत आयी हुई है। भारत सरकार इस फिल्म को अनुदान देने के लिए राजी भी हो गयी है, लेकिन मेरी पत्रिका ‘उगता सूरज’ ने तीन चार अंकों में लगातार सरकार के इस निर्णय की आलोचना की और लिखा है कि विदेशी डायरेक्टर और प्रोड्यूसर अक्सर भारत के बारे में गलत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं इसलिए ‘स्वामी’ फिल्म के लिए जो अनुदान सरकार चाहती है वो किसी भी हालत में न दिया जाए।
काव्या ने मुझ से गुजारिश की कि यह फिल्म लोकहित में है इसलिए ‘उगता सूरज’ में मैं अपने वक्तव्य में थोड़ा परिवर्तन कर दूं और ‘स्वामी’ के पक्ष में एक संपादकीय लिख दूं। वह जितनी देर मेरे पास बैठी, कुरेद-कुरेदकर मेरी जिंदगी के बारे में पूछती रही।
मैंने उसे बताया कि जिंदगी की भागदौड़ में मुझे सोचने का मौका ही नहीं मिला कि मुझे विवाह करके अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत भी करनी है।
इतना सुनते ही काव्या मुझसे लिपट गयी। मुझे लगा कोई अद्रश्य शक्ति की यह इच्छा है कि मैं और काव्या प्रणय सूत्र में बंध जाएं। मेरा नाम समाज में एक प्रतिष्ठित संपादक के रूप में था इसीलिए मुझे अपना निर्णय लेने में बड़ी कठिनाई हो रही थी। मैं जानता था कि यदि मैंने ‘स्वामी’के पक्ष में अपना संपादकीय लिखा तो मेरी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी, रातभर मैं इसी उधेड़बुन में रहा, एक पल के लिए भी मुझे नींद नहीं आयी।
फिर मैंने निश्चय किया कि मैं काव्या को दो टूक कह दूंगा कि मैं उसकी फिल्म ‘स्वामी’ के पक्ष में कोई संपादकीय नहीं लिखूंगा।
लेकिन जब अगले दिन वह मुझ से मिलने आयी तो पता नहीं कौन सी शक्ति मुझे सम्मोहित कर गयी और आखिर मैंने ‘स्वामी’ के पक्ष में संपादकीय लिख ही दिया। संपादकीय का छपना था कि मानो जंगल में आग लग गयी। कई समाचार पत्रों में घुमा-फिराकर यह खबर छपी कि ‘स्वामी’ की डायरेक्टर काव्या ‘उगता सूरज’ के ऑफिस में कई बार देखी गयी है। कुछ अखबारों ने तो ये भी लिख दिया कि एक मोटी रकम लेकर ‘उगता सूरज’ ने अपना वक्तव्य बदल दिया है।
एक दिन मैं सो रहा था, तभी मुझे फोन पर सूचना मिली कि मेरे ऑफिस में आग लग गयी है। जब तक मैं ऑफिस पहुंचा सब कुछ जलकर राख हो गया था। लोगों ने कहा, ये काम आतंकवादियों का है, किसी ने कहा मैंने ‘स्वामी’ के पक्ष में अपना संपादकीय बदला इसीलिए किसी ने अपना रोष व्यक्त करने के लिए आग लगायी।
मैं चुपचाप एक कोने में खड़ा आंसू बहाता रहा। अपनी आंखों के सामने अपनी दुनिया बर्बाद होते देखने के बाद मैंने गाड़ी होटल ईरोज की तरफ मोड़ दी। काव्या उसी होटल में ठहरी हुई थी। अपनी प्रेमिका के कंधे पर सिर रखकर मैं अपना गम गलत करना चाह रहा था।
मुझे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि काव्या एक अंग्रेज सज्जन से बातें कर रही थी। अंग्रेज सज्जन ने काव्या से कहा, “तुमने आज की खबर पढ़ी? हमारा विरोध करने वाले ‘उगता सूरज’ को लोगों ने जलाकर राख कर दिया है।”
काव्या ने व्यंग भरी मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुए कहा, “डेविड लोगों ने ‘उगता सूरज’ को जलाया नहीं है, गुंडों की मदद से उसे जलवा दिया गया है…”
“ये तुम क्या कह रही हो काव्या?” डेविड हैरान था।
“डेविड, नोटों के पुलिंदों के बल पर इस मुल्क में सब कुछ हो सकता है। ‘उगता सूरज’ का एडिटर कबीर मेरा पुराना मित्र है। मैंने उससे मिन्नत करके एडिटोरियल लिखवा लिया, लेकिन वो बड़ा ही जिद्दी किस्म का इंसान है। मुझे डर था कि वो पाठकों से दो-तीन सप्ताह के बाद माफी मांग कर दूसरा एडिटोरीयल लिखवा लेगा और कहेगा सरकार को ‘स्वामी’ के लिए अनुदान नहीं देना चाहिए, फिर तो अपना सारा गेम ही चौपट हो जाता।”
सच में शालू ,उस पल ऐसा लगा जैसे मुझ पर वज्रपात हो गया हो। काव्या ने मुझ से झूठ कहा था कि उसने डेविड से तलाक लिया है। मेरा सिर बुरी तरह चकरा रहा था। विश्वास नहीं हो रहा था, एक साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाली मेरी प्रेमिका काव्या कभी मेरे साथ इस तरह छल भी कर सकती है!
विश्वास उठ गया था ‘प्रेम’ नाम के शब्द से। जवानी की इस चाहत ने मुझे बहुत तंग किया। लगता प्यार-व्यार कुछ नहीं होता, निहायत बकवास है।”
“नहीं कबीर, प्रेम दो आत्माओं का रिश्ता है, अनोखा और आकर्षक, सभी लोग एक जैसे नहीं होते।”
शालू ने मेरे चेहरे पर चुंबनों की बौछार लगा दी, फिर मेरी आंखों से निकलते आंसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछते हुए बोली, “आजकल कहां है काव्या?”
“कहीं कतार में खड़ी किसी दूसरे आदमी को अपने झूठे प्रेम के जाल में फंसाने की तैयारी में शहर-शहर, देश-देश भटक रही होगी।”
मैंने कसकर शालू को अपने आगोश में कैद कर लिया। पूरा घर हम दोनो की हंसी से गूंज उठा।
- पुष्पा भाटिया
E-इश्क के लिए अपनी कहानी इस आईडी पर भेजें: db.women@dbcorp.in
सब्जेक्ट लाइन में E-इश्क लिखना न भूलें
कृपया अप्रकाशित रचनाएं ही भेजें
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.