आज मैं कैसी लग रही हूं:माया किसी से ये नहीं पूछ पा रही थी, उसे डर लगने लगा था कि दीवारें सुन रही हैं

7 महीने पहले
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वो कहते हैं न दीवारों के भी कान होते हैं। यह बात माया ने सुनी तो थी, पर मानती नहीं थी। उसे लगता ऐसा उसकी जिंदगी में क्या है? जो सामने वाले को बताया न जा सके। आप कह सकते हैं कि माया सभी के सामने एक खुली किताब थी। पर आज क्यों उसे अपनी बातों को रखने के लिए आर्काइव चैट्स का सहारा लेना पड़ रहा था?

अचानक माया की लाइफ में कुछ ऐसा हुआ कि उसे डर लगने था कि कोई उसकी बातों का या उसकी फीलिंग का मज़ाक बनाकर न रख दे। पहले वाली माया जो हमेशा ट्रांसपेरैंसी की बातें करती थी, लेकिन आज उसकी बातों में पहली वाली खनक नहीं थी। अपने जिगरी दोस्तों से भी वह बातें छुपाने लगी थी। ऐसा कौन-सा राज था, जिसका ज़िक्र ही करना उसे मुनासिब नहीं लगता? क्यों माया ने अपनी बातों को किसी से न कहकर ताउम्र आर्काइव चैट्स का सहारा लिया? आखिर क्या चल रहा था उसके मन के भीतर, जानने के लिए पढ़ते हैं माया की कहानी...।

जब आपके मन में किसी से कहने के लिए ढेर सारी बातें हों और आप किसी से कह न सकें। ढेरों सवालों के जवाब हो, पर बता न सकें। कुछ सुनना-सुनाना हो, पर किसी को सुना न सकें, कभी ठहाके लगाकर जोर से हंसना हो और अपनी हंसी को किसी को दिखा न सकें। ज़ार-ज़ार रोना हो पर किसी के सामने रो न सकें। सेल्फी लेकर आपको किसी ख़ास से पूछना हो कि बताओ न आज मैं कैसी लग रही हूं? इस फोटो को डीपी में लगाऊं या नहीं जैसी छोटी-छोटी बातें भी पूछ न सकें। आज खाने में मैंने तुम्हारी पसंद का खाया जैसी बातें बता न सकें। कुछ जरूरी बातें डिस्कस करनी हो, पर कर न सकें। क्या आपकी लाइफ में कभी माया की जिंदगी की जैसी हलचल मची है। क्या आप कभी माया की इस सिचुएशन से गुज़रे हैं? अगर नहीं तो अच्छा है, क्योंकि सचमुच दीवारों के भी कान होते हैं।

माया के आर्काइव चैट्स का राज़, उसके पति शिखर को माया की जिंदगी के आखिरी दिन लगा। माया 68 बरस की होकर गुज़री थी और शिखर 70 का था। माया ने ताउम्र एक राज़ छिपाकर रखा था, जिसके खुलने पर शोर-शराबा होना तय था और तूफान ऐसा आता कि कभी थमने का नाम न लेता। सुनामी ऐसी आती कि सब कुछ अपने साथ बहा ले जाती।

शिखर ने माया की याद में किताब ही लिख डाली, जिसका नाम था 'आर्काइव चैट्स।' शिखर ने उसकी बातों को कलमबद्ध कर दिया, ताकि पूरी दुनिया को पता चल सके कि आखिर एक विवाहित स्त्री दोबारा प्रेम में क्यों नहीं कर सकती। क्यों माया ने दूसरी मोहब्बत को आर्काइव चैट्स में ही समेटे रखा या यूं कहें छुपा कर रखा? आखिर क्यों आदित्य के इतना चाहने पर भी वह उसकी न हो सकी थी और न वो उसका? क्या सचमुच समाज की खातिर प्यार, इश्क और मोहब्बत को सीने में दफन करके आगे बढ़ना चाहिए? आखिर क्यों इसे ढाई आखर प्रेम का कहा जाता है, यह प्यार कभी पूरा क्यों नहीं हो सकता?

शिखर को माया की इस बात का पता ज़ाहिर है उसके फोन से ही लगा। जो माया के बाद शिखर को मिला। शिखर ने भी 'आर्काइव चैट्स' किताब में एक संदेश माया के लिए लिखा था… ‘माया काश, तुम मुझे यह बात पहले बता देती तो मैं खुद तुम्हें तुम्हारी मोहब्बत सौंप देता।’ फिर अचानक शिखर को याद आया कि अक्सर माया क्यों उसके साथ Q&A खेला करती थी। आर्काइव चैट्स की बातें भी वह काफी साझा कर चुकी थी। वह अकसर पूछती थी, ‘शिखर तुम्हें किसी विवाहित स्त्री से प्रेम होगा तो क्या तुम जाना चाहोगे?’ शिखर खीझकर जवाब देता, “क्या बेहूदा सवाल है यह?”

ज़ाहिर है माया को उसके सवालों के जवाब नहीं मिले। माया, दरअसल आदित्य से बेइंतहा मोहब्बत करती थी और आदित्य भी माया से। दोनों ही विवाहित थे। माया, शिखर की पत्नी थी और आदित्य नेहा का पति। दोनों अपनी-अपनी शादी में खुश थे, जब तक वे एक दूसरे से नहीं मिले थे। एक दूसरे से मिलने के बाद से ही दोनों का चैन खो गया था। दोनों एक दूसरे के लिए ऑक्सीजन का काम कर रहे थे। शायद एक दूसरे के बिना अधूरे भी थे। दोनों ही इतने मजबूर थे कि न अपने दिल की बात कह सकते थे, न मन की कर सकते थे।

ऐसे में एक दिन ऐसा आया, जब माया और आदित्य दोनों ने फैसला किया अब कभी नहीं मिलेंगे। कोई किसी को नहीं ढूंढेगा, न चैट में, न फेसबुक, न इस्टा पर। अपने-अपने आर्काइव चैट्स में सब यादों को, बातों को समेट कर, संजो कर रख देंगे और एक दूसरे को ब्लॉक कर देंगे। सिर्फ तस्वीरों में ढूंढेंगे, तस्वीरों से बातें होंगी। न कोई देखेगा, न कोई सुनेगा। हम होंगे और हमारी सांसें होंगी। माया का मन जो कहता उसे वह आर्काइव चैट्स में लिख छोड़ती। न जाने दिन भर कितनी ही चैट्स आदित्य को भेजा करती थी। वह सोचती, ऐसे ही आदित्य भी कर रहा होगा।

अब माया इस दुनिया में तो नहीं है, पर उसका आर्काइव चैट्स की वजह से फोन स्पेस फुल होने के नोटिफिकेशन अभी भी आ रहे हैं। आज शिखर के सामने माया के मन के पन्ने खुले पड़े हैं।

शिखर को लगा कि इस अनकहे रिश्ते को किताब के तौर पर लाऊं तो शायद आदित्य से मुलाकात हो सके। माया को तो न समझ सका, शायद आदित्य के जरिए माया को समझ सकूं। काश कि माया का चैट बॉक्स मैं पहले ही देख लेता और अपने इस रिश्ते से उसे मुक्त कर सकता। किताब के आखिरी पन्ने को पढ़ते वक्त शिखर की आंखें भर आईं। सचमुच यह मन की ‘आर्काइव चैट’ है।

- गीतांजलि

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