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शंख बजाने से ब्लड प्रेशर होता है कंट्रोल:बर्लिन यूनिवर्सिटी का शोध-शंख की ध्वनि से मरते हैं बैक्टीरिया, सुबह-शाम ही बजाना लाभदायक

नई दिल्ली4 महीने पहलेलेखक: संजय सिन्हा
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क्या आपने शंख बजाया है। अगर नहीं तो इसे बजाना सीख लीजिए, क्योंकि इसके आध्यात्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक लाभ भी हैं। शंख की ध्वनि से न केवल पर्यावरण शुद्ध होता है बल्कि कई तरह की बीमारियां भी ठीक होती हैं।

बर्लिन यूनिवर्सिटी और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने शोध में बताया है कि किसी क्षेत्र में नियमित रूप से शंखनाद किया जाता है तो वहां माइक्रोब्स या हानिकारिक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।

थॉयराइड रोगियों और फेफड़े के लिए राहत देती है शंख की ध्वनि

शंख की ध्वनि का एक विशेष वेवलेंथ और फ्रिक्वेंसी होती है। जब इसे बजाते हैं तो हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क पर सकारात्मक असर पड़ता है। थॉयराइड और अस्थमा के रोगियों को इससे राहत मिलती है। थॉयराइड में हार्मोन सेक्रेशन पर नियंत्रण होता है। शंख फूंकने में सांस लेने और छोड़ने से हमारे फेफड़े की मांसपेशियां काफी एक्टिव होती हैं। इससे फेफड़ा फैलता है। दिल्ली के शादीपुर स्थित आरकेएलसी मेेट्रो हॉस्पिटल के पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. आरके यादव बताते हैं कि किसी भी तरह का म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट जब बजाते हैं तो इससे हमारे फेफड़े फैलते हैं। यानी फेफड़े में ऑक्सीजन लेने और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने की प्रक्रिया बेहतर होती है। गैस एक्सचेंज सेंटर में जो कमियां होती हैं वो दूर होती हैं। शंख फूंकने में भी ऐसा ही होता है।

1 जनवरी 2022 को वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में 1008 शंखों से शंखनाद किया गया था। इसमें उम्र में सबसे छोटे चार साल के वेदांश ने भी शंख बजाया था।
1 जनवरी 2022 को वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर में 1008 शंखों से शंखनाद किया गया था। इसमें उम्र में सबसे छोटे चार साल के वेदांश ने भी शंख बजाया था।

शंख की ध्वनि के पीछे ये है विज्ञान

उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर राजीव शर्मा ने इंडियन साइंस कांग्रेस में एक शोध पत्र पढ़ा था जिसका नाम था ‘ब्लोइंग ऑफ शंख: एन इंडेजिनस ट्रेडिशन फॉर फिटनेस एंड वेलनेस’। उन्होंने बताया है कि शंख बजाना मानव शरीर और मस्तिष्क के लिए एक यूनिक एक्सरसाइज है। इससे प्रोस्ट्रेट, यूरिनरी ट्रैक्ट, फेफड़ा, छाती और गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। इसकी ध्वनि से न केवल मानसिक तनाव घटता है बल्कि मेडिटेशन में भी मदद मिलती है।

शरीर में अंदर की ओर खिंचती हैं मांसपेशियां

राजीव शर्मा ने बताया है कि जब शंख बजाया जाता है तब हम सांस लेते हैं छोड़ते हैं। इस प्रक्रिया में लंग्स, स्टोमेक और नाभि का एरिया अंदर की ओर पुश होता है। एब्डोमन की मांसपेशियों में खिंचाव आता है। साथ ही रेक्टल मसल्स भी स्ट्रेच होता है। सांस लेने और छोड़ने से नाभि का एरिया भी फैलता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि शंख बजाने के समय ब्लड का फ्लो सिर और ब्रेन की तरफ होता है। शंख बजाना यूरिनरी ब्लाडर के लिए भी बढ़िया एक्सरसाइज है।

शंख में होता है 100% कैल्शियम

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोलॉजी के गेस्ट लेक्चरर डॉ. इंद्र बली मिश्रा बताते हैं कि शंख में 100 प्रतिशत कैल्शियम होता है। मंदिरों में या ऐसे भी घरों में रात में इसमें जल भरकर रखा जाता है। इससे पानी में कैल्शियम घुल जाता है। इस पानी को सब पर छिड़का जाता है। जब शरीर पर यह पानी जाता है तो आसपास मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं। यह पानी पीने से तो और लाभ होता है। शरीर को अतिरिक्त कैल्शियम मिलता है।

किसी अच्छे इंस्ट्रक्टर से ही सीखें शंख बजाना

यदि शंख सही तरीके से बजाया जाए तो इससे हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि शंख बिना सीखे नहीं बजाएं। इसके लिए अनुभवी शिक्षक या इंस्ट्रक्टर की जरूरत होती है।

गुजरात के टेक्सटाइल सिटी सूरत में शंख ध्वनि क्लब चलाने वाले भरत शाह ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ‘शंखनाद’। भरत सूरत म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन से रिटायर्ड इंजीनियर हैं। हर दिन सुबह में खास समय पर उनके साथ दर्जनों लोग शंख बजाते हैं। उन्होंने 10 हजार से अधिक लोगों को अब तक शंख बजाने की ट्रेनिंग दी है।

वो बताते हैं कि शंख की ध्वनि भी भ्रामरी प्राणायाम से जुड़ी है। इससे फिजिकल, मेंटल और स्पीरिचुअल रिलीफ मिलती है।

बजाते समय आसमान की तरफ रखें शंख

डॉ. इंद्र बली मिश्रा बताते हैं कि खड़े होकर शंख बजाते समय आपका मुख ऊपर की तरफ हो। साथ ही शंख भी आसमान की तरफ होना चाहिए। वो बताते हैं कि पंचतत्व में ध्वनि का महत्वपूर्ण स्थान है। आवाज के लिए खाली स्थान होना चाहिए। इसलिए ऊपर की ओर मुंह करके शंख फूंकना सबसे बेहतर माना गया है।

इसे पद्मासन में भी बैठकर बजाया जा सकता है। इसमें रीढ़ और गर्दन को सीधा रखा जाए तो शंख सही तरीका से बजाया जा सकता है। जितना हो सकता है जोर से सांस लें, छोड़ें और फिर सांस लें। दो से तीन बार ऐसा करें। शंख फूंकने के दौरान मुंह से सांस नहीं लें। शंख के मुंह को होठों के बीच में रखें (हल्का दाहिने ओर) और धीरे-धीरे इसमें हवा फूंकें। इसे लगातार कई बार करें। हालांकि पहले प्रयास में ध्वनि निकालना मुश्किल होता है।

कैसे पहचानें असली और नकली शंख

डॉ. इंद्र बली मिश्रा बताते हैं कि आजकल बाजार में नकली शंखों की भरमार है। बनावटी शंख भी मिलते हैं। इसलिए असली शंख की पहचान करना जरूरी है। जब शंख खरीदने जाएं तो शांत जगह पर बजाकर देखें। देखें कि बजाने में बहुत जोर तो नहीं लगाना पड़ रहा। बजाने के बाद शंख को तुरंत कान के पास ले जाएं। अगर असली शंख है तो इसकी ध्वनि शंख के भीतर गूंजते रहती है। ध्यान से सुनने पर इसमेें समुद्र की लहरों जैसी आवाज आती है।

शंख को पहचानने का एक तरीका पानी में डालना भी है। अगर असली शंख है तो यह पानी के ऊपर आ जाता है। हालांकि आजकल बाजार में मिल रहे नकली शंख भी पानी में ऊपर आ जाते हैं। पहले के समय में शंख को अनाज में रखने की बात कही जाती थी। अनाज में इसे अंदर डालने पर यह ऊपर आ जाता है। लेकिन यह बहुत साइंटिफिक नहीं है। असली शंख अपनी ध्वनि से ही पहचाना जाता है। बनावटी शंख की ध्वनि में इरीटेशन वाली आवाज होती है जैसे चरचराहट की आवाज आना। लेकिन असली शंख में जो ध्वनि निकलती है उसमें गंभीरता होती है।

पांचजन्य शंख है सबसे बेहतर

सभी तरह के शंखों में पांचजन्य शंख को सबसे बेस्ट माना गया है। भगवद गीता में भी पांचजन्य शंख के बारे में बताया गया है। एक कहानी यह है कि भगवान कृष्ण ने पंचजन्य शंख निकाला और ऋषि ध्रुव के कान के पास रखा। इससे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।

पंचजन्य शंख में पांच पार्ट होते हैं इसे सिंहानुसा कहते हैं। यह साइज में काफी बड़ा होता है। हालांकि यह कम मिलता है। महाभारत में भी युद्ध के पहले और शाम में समाप्त होने के पहले पंचजन्य शंख से शंखनाद किया जाता था। वो कहते हैं कि शंख की ध्वनि ब्रह्मांड से जुड़ी है। शंख में ऊं की ध्वनि होती है।

अभी अधिकतर शंख ओडिसा से आते हैं जो साइज में छोटे होते हैं।

सुबह-शाम ही बजाएं शंख

डॉ. इंद्र कहते हैं कि शंख की ध्वनि से नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। पुराणों में माना गया है कि शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना लगभग समान है। नासा के शोध में भी बताया गया है कि शंख से निकली ध्वनि खगोलिया ऊर्जा से मिलती है। इससे रोगाणु मरते हैं। नई ऊर्जा का संचार होता है। वो कहते हैं सुबह और शाम सूर्य की किरणें तेज नहीं होतीं। इस दौरान शंख बजाने का असर होता है। वायुमंडल में जो कीटाणु होते हैं वो नष्ट हो जाते हैं। लेकिन दोपहर या किसी दूसरे समय सूर्य की किरणें तेज होती हैं ऐसे में शंख की ध्वनि ज्यादा असर नहीं दिखा पातीं।

1 जनवरी 2022 को वाराणसी में 1008 शंखों से हुआ था शंखनाद

इसी साल 1 जनवरी को बाबा विश्वनाथ मंदिर में 1008 लोगों ने शंखनाद किया था। डॉ. इंद्र बली मिश्रा बताते हैं कि शंख बजाने की कोई उम्र नहीं होती। इसे किसी भी उम्र में बजाया जा सकता है। विश्वनाथ मंदिर में चार साल के वेदांश मिश्र ने शंख बजाया था।

शंख की आकृति से वेव वाइब्रेशन

जब शंख को आप अपने कान के पास ले जाएंगे और ध्यान से सुनेंगे तो इसमें बहुत धीरे-धीरे वैसी ही ध्वनि सुनाई पड़ती है जैसे समुद्र की लहरें हौले-हौले आ रही हों। वास्तव में पृथ्वी की कॉस्मिक एनर्जी या नेचुरल वाइब्रेशन शंख में प्रवेश करने पर मैग्निफाइड हो जाती है। शंख से साउंड वाइब्रेशन होता है। यह वातारण में फैले प्रदूषण को भी कम करता है। शंख बजाने से साइकोलाॉजिकल वाइब्रेशंस निकलते हैं जिससे व्यक्ति में डिटरमिनेशन और विलपावर बढ़ता है।

पंडित श्रीपति त्रिपाठी बताते हैं कि शंख बजाने से बीमारी ही दूर नहीं होती बल्कि चेहरे की चमक भी बढ़ती है। चेहरे से झुर्रियां खत्म होती हैं। शंंख बजाने से चेहरे के मसल्स में खिंचाव उत्पन्न होता है और झुर्रियां गायब हो जाती हैं।

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