राजनीतिक गलियारे हों, बॉलीवुड के सीन हों या मीम्स का बाजार हो… सभी तरफ महिलाओं के खुलकर हंसने को ‘चुड़ैल’ और ‘राक्षसी’ की हंसी या ‘बेशर्म’ हंसी से जोड़ा जाता है। परिवारों में लड़कियों को बचपन से हंसने का सलीका सिखाया जाता है।
अगर कोई लड़की चार लोगों के सामने जोर से हंस दे तो बाहर वालों के जाने के बाद परिवार वाले उसकी अच्छे से खबर लेंगे, ये तय है। आज विश्व हास्य दिवस (World Laughter Day) पर जानते हैं कि आखिर लड़कियों के खुलकर हंसने पर इतनी पाबंदी क्यों है? क्या हंसने से वे किसी का नुकसान करती हैं, किसी कानून का उल्लंघन होता है या समाज उन्हें हंसने का हक ही नहीं देना चाहता?
लड़की के खाने और नहाने का पता न चले, क्यों?
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में प्रोफेसर मधु कुशवाहा जेंडर के मुद्दों पर लंबे समय से काम कर रही हैं। वे कहती हैं, ‘पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों की हंसी, खानपान, रहन-सहन सब नियंत्रित किया जाता है। लड़कियों को अपनी भावनाओं पर कंट्रोल करना सिखाया जाता है।'
‘अच्छी लड़की’ बनने की यह ट्रेनिंग घर की बड़ी औरतों पर सौंपी जाती है, ताकि घर के पुरुषों की इज्जत बनी रहे और लड़की पर ‘बुरी बेटी’ का टैग न लगे। भावनाओं को मारकर, दबाकर लड़कियों को मर्यादित रखना, घर की औरतों की जिम्मेदारी बना दी जाती है। जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। जो बेटियां पितृसत्ता के बनाए नियमों को नहीं मानतीं, समाज उन पर ‘गंदी लड़की’ का ठप्पा लगा देता है।
पुरुष प्रधान व्यवस्था से आई ऐसी समझ
भोपाल के बंसल अस्पताल में साइकेट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि हमारे समाज की संरचना मानवीय मूल्यों पर आधारित न होकर लिंग आधारित है। लड़कियां अगर खुलकर हंस देंगी तो पुरुष की बेइज्जती हो जाएगी, वे अमर्यादित, बेशर्म, राक्षसी, चुड़ैल कहलाएंगी। हंसी तो फंसी की तर्ज पर लड़कियां का हंसना तक प्रेम से जोड़ दिया जाता है।
यही नहीं, फिल्मों में भी जो महिला कौमेडियन दिखाए जाते हैं, उनका शरीर या तो बहुत मोटा होगा, कोई दांत टूटा होगा..यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो जिन महिला कौमेडियन के साथ बॉडी शेमिंग के इशू होते हैं, उन्हें हंसी का पात्र बनाया जाता है, क्यों।
खुलकर न हंसने से क्या नुकसान होता है?
डॉ. सत्यकांत के मुताबिक, ‘वर्षों से जब बेटियों की भावनाओं को दबाया जाता है, उन्हें खुलकर अपनी बात कहने या इमोशन को एक्सप्रेस करने का मौका ही नहीं दिया जाता, तो भविष्य में उनके व्यक्तित्व में बाधा दिखाई देने लगती है। उनमें तनाव बढ़ता है, आत्मविश्वास में कमी आती है, टेंशन और एंग्जाइटी बढ़ती है।
हंसने से क्या फायदा होता है?
आज के वक्त में जब लोग स्ट्रेस से भरे हुए हैं। किसी को नौकरी का, किसी को पैसे का, किसी को महंगाई का तो किसी को रिश्तों का स्ट्रेस है। हंसने के लिए कोई टिकट ही नहीं खरीदना पड़ता तो हंसने में क्या बुराई है।
हंसने से ‘फील गुड हार्मोन’ यानी सिरोटोनिन का लेवल बढ़ता है। साथ ही स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल लेवल कम होता है। एंडोर्सिन निकलते हैं, जिससे मूड अच्छा होता है। वर्ल्ड लाफ्टर डे की शुरुआत करने वाले डॉ. मदन कटारिया की किताब ‘लाफ फॉर नो रीजन’ लाफ्टर योग के बारे में है और हंसी से जुड़े कई मिथक तोड़ती है।
जैसे जब हंसने का मन नहीं है तो कैसे हंसें, अगर आप खुश नहीं हैं तो कैसे हंस सकते हैं, क्या हंसने के लिए सेंस ऑफ ह्यूमर की जरूरत पड़ती है, क्यों बच्चे बहुत हंसते हैं और बड़े कम, मैं हंसना कैसे सीखूं? लड़कियां पुरुषों में सेंस ऑफ ह्यूमर देखती हैं? हंसी के फायदों के बारे में तभी जाना जा सकता है जब खुलकर हंसा जाए।
क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड लाफ्टर डे
11 जनवरी, 1998 को मुंबई में लाफ्टर योग मूवमेंट के संस्थापक डॉ. मदन कटारिया ने पहली बार लाफ्टर डे सेलिब्रेट किया। इस आयोजन का उद्देश्य समाज में बढ़ते तनाव को कम करना और खुशहाल जीवन जीने की कला सिखाना था। तब से हर साल मई के पहले रविवार को वर्ल्ड लाफ्टर डे सेलिब्रेट किया जाता है।
हंसें, हंसें और खुलकर हंसें…
योग में पांच वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले योग एक्सपर्ट उत्तम अग्रहरि का कहना है कि हंसने से सिर्फ मूड ही अच्छा नहीं होता है बल्कि चेहरे का ग्लो भी बढ़ता है। ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है। मोटापा दूर होता है। झुर्रियां कम होती हैं। तनाव, मूड स्विंग्स नहीं होते और डिप्रेशन से दूर रहते हैं। प्रेग्नेंट महिलाएं अगर हंसती हैं तो बच्चे भी खुशनुमा मिजाज के होते हैं। हंसने से बेटियां अगर स्वस्थ और खुशहाल होती हैं तो क्यों न हंसें। हंसें, हंसें, खुलकर हंसें…
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