गर्मियों के दिन हैं। बाजार में कई तरह के जूसी फल मिल रहे हैं। बाहर से इन फलों में चमक होती है अंदर से ये कच्चे होते हैं। आर्टिफिशियल रूप से पकाए गए ये फल हेल्थ के लिए हानिकारक होते हैं। लंबे समय तक रेगुलर इन्हें खाने वाले कैंसर, आंतों के अल्सर, सांस लेने में तकलीफ आदि से पीड़ित हो जाते हैं।
दिल्ली के शादीपुर आरकेएलसी मेट्रो हॉस्पिटल के पल्मनोलॉजिस्ट डॉ. राकेश कुमार यादव बताते हैं कि कृत्रिम रूप से पके फल खाने से शरीर के अलग-अलग अंग प्रभावित होते हैं। सबसे ज्यादा बुरा असर उन लोगों पर पड़ता है जो कार्बाइड या एथेफॉन के स्टोरेज आदि से जुड़े होते हैं।
इन्हें अकुपेशनल लंग्स डिजीज होने की संभावना रहती है। सांस फूलना, खांसी होना इसके प्राइमरी लक्षण होते हैं। रेस्पेरेटरी फेल की भी स्थिति बनती है। यानी धमनियों में ऑक्सीजन पूरी तरह सप्लाई नहीं हो पाती। गंभीर मरीज को कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है।
पाचन तंत्र पर पड़ता है असर
कार्बाइड से पकने वाले फलों को खाने से पाचन तंत्र गड़बड़ हो जाता है। इससे पेट के अंदर की टीश्यूज डैमेज होती हैं। आंतों में भी परेशानी शुरू हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक ऐसे फलों को खाता है तो उसे पेप्टाइड अल्सर हो सकता है। आंतें गल सकती हैं।
गर्भवती महिलाएं ऐसे फल न खाएं
डॉक्टरों का कहना है कि प्रेगनेंट महिलाओं को कृत्रिम फलों को खाने से बचना चाहिए। इससे न केवल उनका स्वास्थ्य खराब होता है बल्कि होने वाले बच्चा भी बीमार होता है। इस बात की आशंका रहती है कि नवजात को सांस लेने में तकलीफ हो। साथ ही पाचन तंत्र में भी गड़बड़ी हो सकती है।
घटती है मेमोरी
कार्बाइड या एथेफॉन से पके फलों को खाने से मेमोरी भी घटती है। इस पर हुए शोध में बताया गया है कि कार्बाइड में मौजूद एसिटिलिन गैस से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर हो सकता है। दौरे पड़ सकते हैं। सिजोफ्रेनिया के भी शिकार हो सकते हैं।
खाने से पहले फलों को चार-पांच घंटे पानी में रखें
रांची सदर अस्पताल में डाइटीशियन ममता कुमारी का कहना है कि जिन फलों को समय से पहले पकाया जाता है उन्हें न खाना ही बेहतर है। हम सभी इसके नुकसान को जानते हैं पर फिर भी खाते हैं। इस स्थिति में फलों को ठीक से धोकर खाना चाहिए। संभव हो तो फलों को चार से पांच घंटे पानी में डाल कर रखें। इससे काफी हद तक केमिकल को कम किया जा सकेगा।
गाइडलाइन का करें पालन
फूड टेस्टिंग लेबोरेटरी रांची के स्टेट फूड एनालिस्ट चतुर्भुज मीणा बताते हैं कि कार्बाइड को पहले ही बैन किया जा चुका है। अगर कोई कार्बाइड से फलों को पकाता है तो इसमें सजा का प्रावधान है। आजकल इसकी जगह पर एथेफॉन केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है।
फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार, 10 किलो आम को पकाने के लिए 0.5 प्रतिशत से ज्यादा एथेफॉन का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। एथेफॉन सैशे के रूप में आसानी से मिल जाता है। तीन ग्राम का एक सैशे होता है जिसमें 20 प्रतिशत एथेफॉन होता है। व्यापारी इस गाइडलाइन को भी फॉलो नहीं करते। 10 किलो आम को पकाने के लिए नौ ग्राम एथेफॉन यूज करते हैं जो हेल्थ के लिहाज से खतरनाक है।
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