गरमी आते ही सर्दी में बना कफ पिघलना शुरू कर देता है। इसके बावजूद यह पूरी तरह से खत्म नहीं होता है। अधपका कफ गले में फंस जाता है और तकलीफ देता है। इस मौसम में दोपहर को गरमी और रात को ठंड लगती है। इससे ज्यादातर लोगों को सर्दी, खांसी और कफ की दिक्कत होती है।
कई बार दवाइयां लेने के बावजूद भी कफ नहीं निकलता है। खांसी होने लगती है, चिपचिपा और गाढ़ा बलगम निकलने लगता है। खांसने से गला छिल जाता है। गला छिलने की वजह से वहां पर इंफेक्शन हो जाता है, जो फेफड़ों तक पहुंच जाता है। इससे फेफड़े और सांस से जुड़े अंगों पर बुरा असर पड़ता है।
छोटी उम्र में कफ की तकलीफ अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में कफ अधिक बनता है। बच्चों को ताकत के लिए दूध दिया जाता है लेकिन दूध से कफ बढ़ता है। साथ ही इसमें मिल्क पाउडर मिलाने से कफ और भी बढ़ जाता है।
मक्के को ज्वार की तुलना में भारी माना गया है। इससे मक्के के पॉपकॉर्न के बजाय छोटी ज्वार पॉप अधिक असरदार माना गया है। भले ही होली खत्म हो गई हो और आप किसी वजह से ज्वार या चनबूट नहीं खा पाए हैं, तो अब भी वक्त है। इस बदलते मौसम में दिन में गरमी बढ़ जाती है और रातें ठंडी हो जाती है। ऐसे में इसे खाना सेहत के लिए असरदार होगा। इस मौसम में होने वाली बीमारियों को दूर रखने का काम करेगा।
तिल के तेल में हींग डालकर ज्वार या चने को भून लें। इसमें नमक और हल्दी जरूर मिलाएं। हींग और तिल के तेल की वजह से गैस ( कच्चे चने और ज्वार से होने वाला गैस) नहीं बनेगा, पाचन खराब नहीं होगा और पेट फूलने की दिक्कत नहीं होगी। इसमें नमक और हल्दी गले में मौजूद कफ को दूर करेगा। इसे खाने से गले, पेट और फेफड़े में मौजूद कफ को खुरच-खुरच कर खुद ही निकलने लगते हैं
होलिका दहन के दिन लोग सुबह से भुना चना और ज्वार खाकर उपवास रखते हैं। यह अंदर के जमे कफ को निकालने का काम करता है। शाम को होलिका दहन के समय आग के पास खड़े होने से यह कफ पक जाता है और इससे छुटकारा हो जाता है।
आयुर्वेद में कहा गया है कि चिकने और भारी कफ से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो विपरीत गुणों वाली चीजों को खाएं। विपरीत गुणों से मतलब, हल्के आहार से है। यह आसानी से पचता है। ज्वार की धानी और चना पचने में हल्का और कफ खत्म करने वाला माना गया है। इसे खाने से खांसी की चिपचपाहट कम होती है और शरीर से निकल जाता है।
हर होली के बाद अपनाएं ये टिप्स
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