क्या आपको पीरियड्स के दौरान दर्द होता है? ऐसा दर्द जो आपको बिस्तर से उठने न दे, चलने न दे, काम न करने दे…अगर हां, ताे हो सकता है कि आप एंडोमेट्रियोसिस की बीमारी से जूझ रही हों। यह गर्भाशय में होने वाली बीमारी है। इससे इनफर्टिलिटी की दिक्कत तक हो सकती है। यह बीमारी 20-30 साल की उम्र में पकड़ में आती है। इससे कटरीना कैफ, श्रुति हसन और टीवी एक्ट्रेस सुमोना चक्रवर्ती भी जूझीं।
आइए आपको बताते हैं कि एंडोमेट्रियोसिस क्या होता है?
यूट्रस के बाहर बन जाते हैं पैच
नोएडा सेक्टर-110 के कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में गायनाकोलॉजिस्ट मीरा पाठक ने वुमन भास्कर को बताया कि यूट्रस के अंदर जो एंडोमेट्रियम लाइनिंग होती है, उसी तरह की लाइनिंग यूट्रस के बाहर कहीं भी हो सकती है। ये टिशू होते हैं जो ओवरी, ब्लेडर, फैलोपियन ट्यूब और आंतों के ऊपर कहीं भी हो सकते हैं।
पीरियड्स होते ही शुरू हो जाता है दर्द
यूं तो पीरियड्स के दौरान हर लड़की को दर्द होता है लेकिन कुछ को असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। एंडोमेट्रियोसिस में जब तक लड़की को पीरियड्स नहीं होते तब तक वह ठीक रहती है।
जब पीरियड्स होने लगते हैं तब एंडोमेट्रियम लाइनिंग खून के साथ रिएक्शन देने लगती है। यह ठीक वैसे है जैसे यूट्रस की लाइनिंग देती है।
हर बार पीरियड्स होने पर पैच बनने की वजह से शरीर के उस भाग पर खून जमा होता रहता है। इससे सिस्ट बन जाता है।
अगर आंतों के ऊपर पैच बनता है तो पीरियड्स के दौरान महिला को डायरिया, ब्लोटिंग और असहनीय पेट में दर्द होगा। अगर पैच ब्लेडर पर है तो बार-बार पेशाब आएगा।
सबसे ज्यादा दिक्कत आती है ओवरी पर। इसे चॉकलेट सिस्ट कहते हैं।
संबंध बनाते हुए होता है असहनीय दर्द
अगर किसी महिला को संबंध बनाते हुए बहुत दर्द हो तो यह एंडोमेट्रियोसिस का संकेत हो सकता है। अगर टिश्यू वजाइना या यूट्रस के निचले हिस्से में जमा हो जाएं तो यह संबंध बनाते हुए दर्द करते हैं। इस दर्द को मेडिकल भाषा में डिस्पॉरेनिया कहा जाता है।
मां बनने की खुशी छिन सकती है
एंडोमेट्रियोसिस में टिश्यू के बढ़ने से ओवूलेशन में दिक्कत आने लगती हो। यह इनफर्टिलिटी का कारण बनती है। यह तब होता है जब लंबे समय से किसी महिला को यह बीमारी हो।
डॉ. मीरा के अनुसार इस तरह के मामलों में महिला को आईवीएफ कराने की सलाह दी जाती है।
लेप्रोस्कोपी से ही पकड़ में आती है बीमारी
अल्ट्रासाउंड करने पर सिस्ट का तो पता चल सकता है लेकिन लेप्रोस्कोपी से ही एंडोमेट्रियोसिस पकड़ में आता है।
जब महिला मां नहीं बन पा रही होती तो कई तरह के टेस्ट कराएं जाते हैं। जब सब ठीक होता है लेकिन वजह नहीं पता चल पाती, तब लेप्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता है। अगर सिस्ट का आकार बड़ा हो तो सर्जरी की जाती है।
एंडोमेट्रियोसिस का कोई इलाज नहीं
एंडोमेट्रियोसिस का कोई इलाज नहीं है। लेकिन डॉक्टर इसके दर्द से बचाने के लिए कई तरह का ट्रीटमेंट करते हैं। जैसे पीरियड्स के दर्द से राहत दिलाने के लिए डेनोजोल नाम की दवा दी जाती है। पीरियड्स बंद होंगे तभी दर्द बंद होता है।
कुछ डॉक्टर बर्थ कंट्रोल पिल्स देकर हॉर्मोन ट्रीटमेंट देते हैं। इससे एस्ट्रोजन लेवल कम होता है जिससे शरीर में अनचाहे टिश्यू नहीं बनते। हालांकि इससे इनफर्टिलिटी में सुधार नहीं होता।
बच्चा होने के बाद मेडिकल मेनोपॉज
डॉ. मीरा कहती हैं कि इसका दर्द मेनोपॉज के बाद छूमंतर हो जाता है क्योंकि शरीर में एस्ट्रोजन रिलीज नहीं होते।
जिन महिलाओं को मां बनने में दिक्कत आती है, उनका आईवीएफ करने के बाद जब बच्चा पैदा होता है तो मेनोपॉज कर दिया जाता है। इसे मेडिकल मेनोपॉज कहा जाता है। इसके लिए दवा दी जाती है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी इस दर्द से 9 महीनों के लिए छुटकारा मिलता है।
ग्लूटन फ्री डाइट को अपनाएं
डायटीशियन कामिनी सिंह ने बताया कि एंडोमेट्रियोसिस में ग्लूटन फ्री डाइट लेनी चाहिए। डेयरी प्रोडक्ट जैसे दूध, दही, पनीर भी नहीं खाना चाहिए। फल और सब्जियों को ज्यादा डाइट में शामिल करना चाहिए। इसके अलावा कैफीन और जंक फूड से परहेज करें।
कटरीना कैफ ने कराई थी सर्जरी
बॉलीवुड एक्ट्रेस कटरीना कैफ को 28 साल की उम्र में एंडोमेट्रियोसिस का पता चला था। साल 2009 में उन्होंने सर्जरी कराई। सेलिना जेटली भी इस दर्द को सहन कर चुकी हैं। कमल हसन की बेटी श्रुति हसन ने जून 2022 में अपने फैंस को सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर इस बीमारी के बारे में खुलासा किया।
द कपिल शर्मा शो में भूरी का किरदार निभाने वालीं सुमोना चक्रवर्ती ने 2021 में बताया कि वह एंडोमेट्रियोसिस की स्टेज 4 से गुजर रही हैं। साल 2011 से वह इस बीमारी से लड़ रही हैं।
केरल और पश्चिम बंगाल में ज्यादा मरीज
भारत में 2.5 करोड़ महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस का शिकार हैं। एक सर्वे में इससे 50% महिलाओं में इनफर्टिलिटी की दिक्कत इसी कारण से होती है। ज्यादातर मामलों में 28 साल की उम्र में इसका पता चलता है, लेकिन उम्र 30 के पार हो जाए तो बांझपन का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
इसके सबसे ज्यादा मामले केरल और पश्चिम बंगाल में देखे जाते हैं। कर्नाटक में 44% महिलाओं में इसके कोई लक्षण नहीं मिले। लेप्रोस्कोपी के जरिए इसका पता चल पाया।
हफ्ते के 10.8 घंटे होते हैं काम प्रभावित
साल 2013 में एक रिपोर्ट के अनुसार एंडोमेट्रियोसिस का पता चलने में आमतौर पर 6.7 साल का वक्त लगता है। इस दौरान महिलाएं हफ्ते के 10.8 घंटे दर्द से परेशान रहती हैं जिसका असर उनके काम को प्रभावित करता है।
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