ग्रेस ने प्रीमैच्योर बेबी को जन्म दिया। न उसे प्यार कर पाई, न उसकी बलैया ली। मां की ममता पर कोविड ने बुरी नजर लगा दी और मां कोमा में चली गई। आखिर कोविड की वजह से कब कोमा की स्थिति बन जाती है।
प्रीमैच्योर को नहीं मिला मां का प्यार
क्रिसमस 2020 की शाम तक इंग्लैंड की सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ग्रेस को पता चल चुका था कि वे कोविड की सीरियस पेशेंट बन चुकी हैं। उनका ऑक्सीजन लेवल बिल्कुल नीचे चला गया था। दो महीने बाद उनका और उनके बॉयफ्रेंड ली का बच्चा दुनिया में आनेवाला था लेकिन अब दोनों खतरे में थे।
ग्रेस का बेटा साइप्रस सही सलामत जन्म लिया। प्रीमैच्योर होने की वजह से उसे एनआईसीयू में और कोविड के कंडीशन को देखते हुए ग्रेस को आईसीयू में रखा गया। ग्रेस का ऑक्सीजन लेवल नीचे चला गया। उनके अंग साथ छोड़ने लगे। कोमा में जाने के पहले बॉयफ्रेंड ली को गुडबाय कहा। 18 जनवरी को वह कोमा में चली गई। ग्रेस कुछ ही महीनों में होश में आ गई लेकिन उन्हें अफसोस है कि कोमा की वजह से अपने प्रीमैच्योर बेटे को प्यार और उसकी देखभाल नहीं कर पाई।
बेहोशी कब बन जाती है दर्द
दिल्ली स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल (शालीमार बाग) के क्रिटिकल केयर विभाग के निदेशन डॉ. पंकज कुमार के अनुसार, “कोराेना के बाद कई वजहों से पेशेंट बेहोश हो सकता है। इसकी एक सबसे बड़ी वजह होती है कि कोराेना का सीधा असर मरीज के फेफड़ों पर पड़ता है। फेफड़ों के कारण शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में ब्रेन के अंदर ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाती है।
अगर केवल 3 मिनट तक भी ऐसी स्थिति रहती है, ताे ब्रेन डैमेज की आशंका रहती है। खासकर उनलोगाें में जिनमें ऑक्सीजन का सैचुरेशन 90 से कम होता है। मेडिकल डिक्शनरी में इसे हाइपॉक्सिक ब्रेन इंजुरी के नाम से भी जानते हैं।
दिमाग को कर देता है छलनी-छलनी
कई बार कोरोना ब्रेन ( फेफड़े के जरिए नहीं) को सीधा असर करता है। ब्रेन में खून के थक्के जम जाते हैं। इससे ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। इसमें भी पेशेंट बेहोश होकर कोमा में चले जाते हैं। कुछ मामलों में कोविड की वजह से ब्रेन के अंदर ब्लीडिंग हो जाती है। इसे आमतौर पर ब्रेन हैमरिज कहा जाता है। कोरोना का लिवर पर बुरा असर पड़ने से या प्लेटलेट्स कम होने की वजह से ऐसा होता है।
कुछ वायरस में ब्रेन फीवर या मेनिंगोइफेलाइटिस होती है। यह कोरोना वायरस के कारण भी हो सकता है। कोरोना की वजह से दौरे आ जाते हैं इससे भी पेशेंट बेहोश हो जाता है। ब्रेन का वाइट मैटर में सूजन आ जाती है। कोरोना में भी इनसेफलाइटिस हो जाती है। इससे ब्रेन प्रभावित होता है। पेशेंट बेहोश हो सकता है या कोमा में जा सकता है।
कोविड में कोमा में जाने से बचें
डॉ. पंकज बताते हैं कि कोविड के समय ऑक्सीजन लेवल को मापते रहना चाहिए अगर यह 90 से कम हो जाता है, तो तुरंत ऑक्सीजन लगवाना चाहिए। कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज का ऑक्सीजन लेवल सही हो लेकिन वह होश खोने लगता है। यह ब्रेन इंसेफ्लाटिस के संकेत हैं। ऐसे में तुरंत इलाज करना चाहिए।
यह भी पाया गया है कि पेशेंट को दौरे पड़ने लगे हो। दौरे पड़ना यह बताता है कि दिमाग में कुछ दिक्कत शुरू हो रही है। कई बार हाथ-पैर हरकत करना बंद कर देता है, यह स्थिति पैरालिसिस की होती है। पैरालिसिस यह बताता है कि ब्रेन में कुछ प्रॉब्लम आ रही है। ये सभी कोमा में जाने के अर्ली वॉर्निंग हैं।
प्रेग्नेंट महिलाएं पर रहती हैं कोरोना की बुरी नजर
यूएसए की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट की ओर से की गई स्टडी में पाया गया कि सामान्य प्रेग्नेंट वुमन की तुलना में कोविड-19 से पीड़ित गर्भवती महिलाओं में प्रेग्नेंसी से जुड़ी अधिक परेशानियां पाई गई हैं।
इसके वायरस की वजह से कोविड में हेल्थ रिस्क बढ़ जाता है। 2400 प्रेग्नेंट वुमन पर हुई स्टडी के मुताबिक, इस वायरस की वजह से सामान्य से लेकर गंभीर काेविड संक्रमण से जूझ रही गर्भवती महिलाओं में प्रीटर्म डिलीवरी के चांसेज अधिक होते हैं।
प्रेग्नेंट वुमन पर कोविड का अधिक खतरा
अध्ययनों में यह पाया गया कि कोविड से संक्रमित प्रेग्नेंट वुमन में सिजेरियन होने की आशंका, समान्य प्रेग्नेंसी से 13% अधिक होती है। इतना ही नहीं कोविड संक्रमित गर्भवती महिलाओं के साथ और भी दिक्कतें आती हैं जैसे उनमें प्रीटर्म डिलीवरी की आशंका नॉर्मल प्रेग्नेंट वुमन से 12.8% अधिक होती है। केवल कोविड संक्रमित मां ही नहीं न्यूबॉर्न पर भी खतरा मंडराता है।
कोविड संक्रमित गर्भवती महिलाओं में नवजात के मृत्यु के भी अधिक चांसेज होते हैं। डॉ. पंकज कुमार के मुताबिक, "बेहतर होगा अगर ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से मिला जाए। सपोर्टिव केयर से लंबे समय तक के बुरे असर से बचा जा सकता है।"
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