कई लोगों को पब्लिक प्लेस में यूरिन पास करने में परेशानी होती है। आसपास मौजूद लोगों की वजह से वो टॉयलेट आने के बावजूद वॉशरूम जाने से बचते हैं। अगर वे वॉशरूम चले भी गए, तब भी वो यूरिन पास नहीं कर पाते। इस कंडीशन को शाय ब्लैडर सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। इस स्थिति के बारे में बता रही हैं अपोलो हॉस्पिटल की सीनियर कन्सल्टेंट ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रंजना शर्मा और बत्रा हॉस्पिटल के सीनियर कन्सल्टेंट साइकेट्रिस्ट डॉ. धर्मेंद्र सिंह।
शाय ब्लैडर सिंड्रोम क्या है?
शाय ब्लैडर सिंड्रोम को मेडिकल की भाषा में पैरुरिसिस कहा जाता है। इसके शिकार लोगों को पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करने में असहजता महसूस होती है। उन्हें लगता है कि आसपास के लोग उनके द्वारा यूरिन पास करने की आवाज सुन लेंगे, जिसकी वजह से उन्हें शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। किसी व्यक्ति में अगर पैरुरिसिस की स्थिति गंभीर हो जाती है, तो उसे पी-फोबिया, सायकोजेनिक यूरिनरी रिटेंशन या एविडेंट पैरुरिसिस के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थिति से जूझ रहे व्यक्ति को घर में भी यूरिन पास करने में कठिनाई महसूस करता है। उसके दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि जब वह घर पर अकेले हो, तभी यूरिन पास कर पाएगा।
क्या होते हैं इसके लक्ष्ण?
क्यों होती है शाय ब्लैडर सिंड्रोम की समस्या?
डॉ. रंजना शर्मा कहती हैं कि इस समस्या की कई वजह हो सकती है। इससे गुजरने वाले लोगों को प्राइवेसी की परेशानी होती है। उन्हें अपने रूटीन में भी कई काम करने में असहजता महसूस होती है। कई बार ऐसा होने की वजह परिवार का माहौल होता है। लोग घर के किसी सदस्य को ऐसा करते हुए देखते हैं और खुद में उनकी आदत उतार लेते हैं। शाय ब्लैडर सिंड्रोम की वजह से पेल्विक फ्लोर के मसल्स पर असर पड़ सकता है या किडनी से जुड़ी परेशानी भी हो सकती है।
वहीं साइकेट्रिस्ट डॉ. सिंह बताते हैं कि यह समस्या शारीरिक या मानसिक हो सकती है। बचपन में हुए किसी एब्यूज (मानसिक प्रताड़ना) की वजह से भी लोगों में यह परेशानी देखी जाती है।जिन बच्चों को पेरेंट्स हमेशा कंट्रोल करते हैं या उन पर सामाजिक ढांचे में ढलने का दबाव बनाते हैं, उन बच्चे में पैरुरिसिस होने की आशंका होती है। हालांकि कई बार यह दिक्कत जेनेटिक भी हो सकती है।
इस समस्या से निपटने के तरीके क्या हैं?
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