अभी निसंतान महिलाओं को IVF की मदद से 45 साल की उम्र तक मां बनने की इजाजत है। लेकिन बुधवार को लोकसभा ने ‘असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) यानी एआरटी बिल 2020’ पास होने के बाद संतानहीन महिलाएं आईवीएफ की मदद से 50 साल की उम्र तक मां बन सकेगी। एग डोनर महिलाओं को मिलने वाले मेहनताने में सुधार होगा और उनकी सेहत का ख्याल भी रखा जाएगा।
कुछ डॉक्टर्स ने उनका नाम न जाहिर होने की शर्त पर बताया कि कुछ सेंटर्स में तो प्रशिक्षित डॉक्टर, एम्ब्रयोलॉजिस्ट, एनिस्थिस्ट की टीम तक नहीं होती व डोनर की सहमति के बिना ही एग निकाल लिए जाते हैं। सबसे बड़ा क्राइम तो यह है कि एग डोनर की उम्र तक नहीं देखी जाती। एआरटी कानून के लागू होने के बाद इस अनियंत्रित व्यवस्था पर लगाम लगेगी।
महिलाओं की होगी स्थिति मजबूत
इस बिल के कानून में बदलते ही निंसतान दंपतियों और डोनर्स के हितों की रक्षा होगी। बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ में मेडिकल सर्विसेज के हेड डॉ. पंकज तलवार के अनुसार, “अभी तक 18 साल से 45 साल की उम्र की महिलाओं को एआरटी की मदद से मां बनने का अधिकार था लेकिन इनफर्टिलिटी बढ़ने के कारण इस कानून के लागू होने के बाद निसंतान महिला 50 साल की उम्र तक मां बनने की कोशिश कर पाएगी।
बहुत सारी महिलाओं के शरीर में ‘एग’ की कमी होती है। इनके लिए एग डोनर की सुविधा ली जाती है। इस कानून के आने के बाद यह सुनिश्चित हो जाएगा कि कौन स्त्री एग डोनेट कर सकती है और कितने एग डोनेट कर सकती है। एग डोनर्स को बीमा की सुविधा भी मिलेगी।”
निसंतान दंपतियों की उम्मीद होगी आसान
अभी तक इनफर्टिलिटी सेंटर और क्लिनिक्स इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साल 2014 में बने गाइडलाइन्स के मुताबिक काम कर रहे हैं। इस कानून के आने के बाद मेडिकल ट्रीटमेंट की इस प्रक्रिया में गलती होने पर पेशेंट की स्थिति पहले से मजबूत होगी और डॉक्टर्स की जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाएगी।
देश के किसी भी कोने में रह रहे जरूरतमंदों को आईवीएफ सेंटर्स और उसमें मौजूद सुविधाओं की सही जानकारी होगी। उन्हें किसी थर्ड पार्टी की सूचनाओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। पेशेंट की सेफ्टी अहम हो जाएगी व उन्हें अधिकारों से लैस किया जाएगा। सरोगेट मदर और एग डोनर महिला की मानसिक और शारीरिक तकलीफें कम होगी।
स्कैनर के अंदर आ जाएंगे आईवीएफ सेंटर्स
डॉ. पंकज तलवार बताते हैं, “ पूरे देश मे चल रहे ऐसे क्लीनिक कानून के दायरे में ही रह कर काम करेंगे। इस कानून के तहत नेशनल और स्टेट के स्तर पर बोर्ड बनेंगे और सभी पहलुओं पर जांच करने के बाद ही सेंटर्स को आईवीएफ करने की अनुमति मिलेगी।
एआरटी क्लीनिक और एआरटी बैंक के काम के तरीके स्पष्ट हो पाएंगे। इस कानून में डोनर और सरोगेट को इन्श्योरेंस कवर देने की बात भी की गई है। यूएस, यूके, कनाडा में बहुत ही पहले से इस तरह के कानून मौजूद हैं। इस कानून के बाद देश के सभी आईवीएफ सेंटर्स स्कैनर के अंदर आ जाएंगें। इन सेंटर्स पर काम करने वाले डॉक्टरों की ट्रेनिंग, लेबोरेट्री और मशीनों का स्तर भी जांचा जाएगा। ऐसे सभी क्लीनिक्स के नतीजों का लेखा-जोखा सरकार को देना होगा। डेटा सामने आने से पेशेंट अपने लिए सही सेंटर चुन पाएंगें।”
IVF का बाजाार
आज पूरे विश्व में करीब 90 लाख बच्चे आईवीएफ की मदद से जन्म ले रहे हैं। ‘इंडियन आईवीएफ मार्केट आउटलुक 2020’ की रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2020 के बीच आईवीएफ मार्केट में 15 % की बढ़त हुई। ‘आरएनसीओएस’ बिजनेस कंसल्टेंसी सर्विसेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में कई वजहों से इनफर्टिलिटी बढ़ी हैं, जिसमें अधिक उम्र में शादीे होना और लाइफस्टाइल को जिम्मेदार ठहराया गया है।
यूनाइटेड नेशन्स के डेटा के अनुसार भारत में इनफर्टिलिटी रेट बढ़ी है। साल 2021 में प्रति महिला बर्थ फर्टिलिटी रेट 2.179 रहा, जो साल 2020 की तुलना में .95% कम है। इस तरह कई लगातार सालों से कमी देखी जा रही है।
कानून को लेकर थोड़ा संशय
एडवांस फर्टिलिटी एंड गायनी सेंटर की डॉक्टर काबेरी बनर्जी के अनुसार, “अभी तक ऐसे सेंटर्स आईसीएमआर की गाइडलाइन्स के दायरे में ही हैं। नए कानून के आने के बाद एग डोनर और स्पर्म डोनर का बैंक अलग होगा। इससे डोनर्स के हितों की रक्षा होगी। अभी कई बार एग और स्पर्म डोनेशन एजेंसी डायरेक्ट क्लीनिक से संपर्क करती हैं। डॉ. कावेरी इस बात पर जोर देती हैं कि नए कानून के अंदर केवल एक बार एग डोनेशन की अनुमति होगी। शरीर से निकाले जाने वाले एग की संख्या भी सीमित की गई हैं। इससे मुश्किल आएगी।
डोनर महिला से निकाले जाते हैं 12-14 एग
आईवीएफ के लिए आने वाली महिलाएं बड़ी उम्र की होती हैं। उनमें एग्स नहीं बन पाते, तो उनको डोनर्स का एग ऑफर करना पड़ता है पर आज डिमांड के हिसाब से एग डोनर्स उपलब्ध नहीं हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि महिलाओं में 35 साल की उम्र के बाद एग कमजोर हो जाते हैं। अभी एक एग डोनर महिला से 12 से 14 एग निकाले जाते हैं। इसकी संख्या भी सीमित कर 7 कर दी जाएंगी, तो मुश्किलें बढ़ेंगी। आईवीएफ हर बार सफल नहीं हो पता ऐसे में जिस महिला से 7 एग्स निकाले जा चुके हैं, उससे दोबारा मदद नहीं ली जा सकेगी। फिर से सही नया एग डोनर ढूढ़ेगा।
केंद्र और राज्य के अलग नियम से भ्रम की स्थिति
ज्यादातर चिकित्सकों का कहना है कि इस कानून में थोड़े और सुधार होना चाहिए। कानून में नेशनल और स्टेट गवर्मेंट दोनों के एडवायजरी बोर्ड होने की बात की गई है लेकिन इससे कंफ्यूजन की स्थिति पैदा होगी। आईवीएफ सेंटर्स पूरे देश में एक ही कानून होना चाहिए।
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