बच्चा लगातार खांस रहा है, उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही है, उसे बुखार भी है, तो यह निमोनिया होने के लक्षण हो सकते हैं। निमोनिया होने पर बच्चे तेजी से सांस लेने लगते हैं। सामान्य रूप से सांस लेने पर छाती फैलती है लेकिन निमोनिया की स्थिति में यह सिकुड़ जाती है। यह खतरनाक है। यही वजह है कि छोटे बच्चों में निमोनिया को किलर डिजीज के रूप में जाना जाता है। हमारे देश में यह बीमारी बच्चों की साइलेंट किलर बन चुकी है।
हर 39 सेकंड पर एक शिशु की मृत्यु
कोविड और अब उसके बाद ओमिक्रोन के अनुभवों ने फेफड़ों के इंन्फेक्शन को लेकर आगाह किया है। बड़ों की तुलना में बच्चों में इस तरह के संक्रमण सामने नहीं आए लेकिन डेटा बताते हैं कि छोटे बच्चों में निमोनिया एक किलर डिजीज की तरह है।
भारत में बच्चों के बीच निमोनिया बहुत ज्यादा पाया जाता है। यूनिसेफ की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 1 लाख 27 हजार बच्चे निमोनिया से जान गंवा बैठे।हर 39 सेकंड में एक बच्चे की जान इस बीमारी की वजह से चली जाती है। जो बच्चे तंग घरों या छोटी जगहों में रहते हैं, उनको निमोनिया जल्दी अपनी चपेट में लेता है।
जिन घर में वेंटिलेशन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती है, वहां इस रोग की आशंका बढ़ जाती है। जिन इलाकों में पॉल्यूशन की प्राॅब्लम हो, वहां भी बच्चों के साथ ऐसी दिक्कतें आती है।
क्याें रुक जाती है हंसते-खेलते बच्चों की सांस
गुरूग्राम स्थित मणिपाल हॉस्पिटल के पीडियाट्रिशियन और निओनेटोलॉजिस्ट डॉ. सचिन जैन के अनुसार, “फेफड़ा बहुत छोटी-छोटी थैलियों से बनता है। इन थैलियों को एल्विओली के नाम से जानते हैं।
स्वस्थ शिशु के सांस लेने पर यह हवा से भर जाती हैं। लेकिन निमोनिया से पीड़ित बच्चों में यह एल्विओली पस (मवाद) और फ्लूइड(पानी) से भर जाती हैं। इसलिए सांस के लिए जरूरी ऑक्सीजन बच्चे को नहीं मिल पाती और सांस लेने में दिक्कत आने लगती है।
कई बार सही समय पर या सही इलाज नहीं मिलने के कारण सांस लेने की प्रक्रिया पूरी तरह फेल हो जाती है, जो मृत्यु की वजह बनती है।”
सांस के रोग से संक्रमित लोगों को बच्चे से दूर रखें
डॉ. सचिन जैन बताते हैं, “ निमोनिया को एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है लेकिन अभी भी केवल एक-तिहाई बच्चों को ही ये दवाएं मिल पाती हैं। आमतौर वायरस, बैक्टीरिया और फंगस की वजह से निमोनिया होता है।
इम्युनाइजेशन, न्यूट्रीशन और इसके लिए जिम्मेदार पर्यावरण पहलुओं को कंट्रोल कर निमोनिया को होने से रोका जा सकता है। बच्चों के नाक और गले में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया की वजह से लंग में इन्फेक्शन हो जाता है। आसपास मौजूद किसी व्यक्ति के छींकने और खांसने से हवा में इसका संक्रमण फैलता है। यह भी बच्चों में संक्रमण की वजह बनता है।”
डराते हैं ये आंकड़े
निमोनियl बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए खतरनाक माना गया है। पांच साल तक के बच्चों में इस बीमारी की पहचान किलर डिजीज के रूप में होती है। हर साल इस बीमारी से 8 लाख बच्चे दुनिया से अलविदा कह देते हैं। इनमें करीब 1.5 लाख नवजात शिशु होते हैं।
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार निमोनिया की वजह से हर 39 सेकंड्स में एक शिशु की मृत्यु हो जाती है। सरकार की ओर से चाइल्डहुड निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सांस (SAANS : Social Awareness and Action Plan to Neutralise Pneumonia Successfully ) नाम का कैम्पेन शुरू किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि यह बच्चों में निमोनिया खत्म करने के लिए लोगों को जागरूक बनाएगा । नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की साल 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार चाइल्डहुड निमोनिया के मरीजों की संख्या 73% से घटकर 69 % हो गई है।
अनदेखी करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं
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