2016 में निशा रामासामी की तीन महीने की बेटी को स्किन से जुड़ी समस्या एटोपिक डर्मेटाइटिस हुई जिसमें त्वचा लाल हो जाती है और उस पर खुजली होती है। तभी उन्हें ये भी लगा कि इस बच्ची को प्लास्टिक के खिलौनों से एलर्जी है।
चेन्नई में रहने वाली निशा एक मॉन्टेसरी टीचर हैं। जब उसने अपनी बेटी को घुटनों के बल इधर-उधर चलते और कई चीजों के साथ खेलते हुए देखा तो उसे ये लगा कि क्यों न कुछ ऐसे खिलौने बनाए जाए जिससे बेटी को स्किन एलर्जी होने का डर न रहे। अपनी इसी सोच के साथ निशा ने कारपेंटर की मदद से लकड़ी के खिलौने बनाए।
वैसे भी मार्केट में न्यू बोर्न से लेकर तीन साल तक के बच्चों के लिए मिलने वाले खिलौनों की संख्या काफी कम है। निशा कहती हैं - ''यही वो उम्र होती है जब एक शिशु का विकास होता है और वो बोलना सीखता है। इसलिए इस उम्र के बच्चों का खास ध्यान रखा जाना चाहिए''।
तब निशा ने नीम की लकड़ी से शिशु के लिए टीथर और रेटल्स बनाना शुरू किया। निशा के अधिकांश मिलने-जुलने वाले लोग भी पैरेंट्स हैं। उन्हें निशा का ये क्रिएशन बहुत पसंद आया। उन्होंने अपने बच्चों के लिए भी निशा को इसी तरह के खिलौने बनाने के ऑर्डर दिए। यहीं से निशा के फाउंडेशन 'अरिरो वुडन टॉयज' की शुरुआत हुई। निशा ने पति वसंत के साथ मिलकर 2018 में इसे शुरू किया।
अपने स्टार्ट अप को आगे बढ़ाने के लिए इस कपल ने स्वीडन, इंडोनेशिया और चीन की यात्रा कर वहां बनने वाले खिलौनों के बारे में जानकारी ली। इन्होंने ये भी जाना कि इन खिलौनों पर किस तरह का पेंट होता है और इन्हें स्टोर करके अधिक समय तक कैसे रखा जाता है।
वहां से लौटने के बाद निशा ने लोकल कारीगरों को खिलौने बनाने से जुड़ी कई बारीकियों को सीखाया। अपने स्टार्ट अप के जरिये निशा नौनिहालों के लिए पजल्स, रेटल्स, टीथर्स, स्लाइडर्स, स्टेप स्टूल और इंडोर जिम एसेसरीज डिजाइन करती हैं। उनके बनाए प्रोडक्ट्स अमेजन और फ्लिपकार्ट सहित 20 प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। फिलहाल निशा के इस स्टार्ट अप से 200 कारीगरों को रोजगार मिल रहा है।
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